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पद्मपुराणे
शार्दूलविक्रीडितम् एवं तौ गुणरत्नपर्वतवरौ विज्ञानपातालिनौ
____ लचीश्रीधुतिकर्कात्तिकान्तिनिलयौ चित्तद्विपेन्द्राङ्कुशौ । सौराज्यालयभारधारणदृढस्तम्भौ महीभास्करी
संवृत्तौ लवणाङ्कुशौ नरवरौ चित्रककर्माकरौ ॥२॥
____ आर्यावृत्तम् धीरौ प्रपौण्डनगरे रेमाते तौ यथेप्सितं नरनागौ।
लजितरवितेजस्को हलधरनारायणी यथायोग्यम् ।.८३॥ इत्याचे श्रीरविषेरणाचार्य प्रोक्त पद्मपुराणे लवणांकुशोद्भवाभिधानं नाम शतसंख्यं पर्व ॥१००॥
करनेवाले थे ॥८१॥ इस प्रकार वे दोनों भाई लवण और अंकुश गुणरूपी रत्नोंके उत्तम पर्वत 'थे, विज्ञानके सागर थे, लक्ष्मी श्री धुति कीर्ति और कान्तिके घर थे, मनरूपी गजराजके लिए
अंकुश थे, सौराज्यरूपी घरका भार धारण करनेके लिए मजबूत खम्भे थे, पृथिवीके सूर्य थे, मनुष्यों में श्रेष्ठ थे, आश्चर्यपूर्ण कार्योंकी खान थे ॥२॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि इस तरह मनुष्योंमें श्रेष्ठ तथा सूर्यके तेजको लज्जित करने वाले वे दोनों कुमार प्रपौण्ड नगरमें बलभद्र और नारायणके समान इच्छानुसार क्रीड़ा करते थे ॥३॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध तथा रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें लवणांकुश
की उत्पत्तिका वर्णन करनेवाला सौवां पर्व पूर्ण हुआ ॥१०॥
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