________________
द्वधशीतितमं पर्व
च्युतं मिपतितं भूमौ काञ्चीनू पुरकुण्डलम् । तासां तद्गतचित्तानां ध्वनयश्चैवमुद्गताः ॥४३॥ यस्यैषाङ्गता भाति प्रिया गुणधरा सती । देवी विदेहजा सोऽयं पद्मनाभो महेक्षणः ॥४४॥ निहतः प्रधने येन सुग्रीवाकृतितस्करः । वृत्रदैत्यपतेनप्ता स साहसगतिः खलः ॥४५॥ अयं लचमीधरो येन शक्रतुल्यपराक्रमः । हतो लङ्केश्वरो युद्धे स्वेन चक्रेण वक्षसि ॥४६॥ सुग्रीवोऽयं महासत्त्वस्तनयोऽस्यायमङ्गदः । अयं भामण्डलाभिख्यः सीतादेव्याः सहोदरः ॥४७॥ देवेन जातमात्रः सन्नासीद् योऽपहृतस्तदा । मुक्तोऽनुकम्पया भूयो दृष्टो विद्याधरेन्दुना ॥४८॥ उन्मादेन (?) वने तस्मिन् गृहीत्वा च प्रमोदिना । पुत्रस्तवायमित्युक्त्वा पुष्यवत्यै समर्पितः॥४६॥ एषोऽसौ दिव्यरत्नात्मकुण्डलोद्योतिताननः । विद्याधरमहाधीशो भाति सार्थकशब्दितः ॥५०॥ चन्द्रोदरसुतः सोऽयं सखि श्रीमान् विराधितः । श्रीशैलः पवनस्याऽयं पुत्रो वानरकेतनः ॥५॥ एवं विस्मययुक्ताभिस्तोषिणीभिः समुत्कटाः। लक्षिताः पौरनारीभिः प्राप्तास्ते पार्थिवालयम् ॥५२॥ तावत्प्रासादमूर्द्धस्थे पुत्रनेहपरायणे । सम्प्रस्रुतस्तने वीरमातराववतेरतुः ॥५३॥ महागुणधरा देवी साधुशीलाऽपराजिता । केकयी केकया चापि सुप्रजाश्च सुचेष्टिताः ॥५४॥ भवान्तरसमायोगमिव प्राप्तास्तयोरमा । मातरोऽयुः समीपत्वं मङ्गलोद्यतचेतसः ॥५५॥ ततो मातृजनं वीक्ष्य मुदितौ कमलेक्षणौ । पुष्पयानात् समुत्तीय लोकपालोपमद्यती ॥५६॥
अपूर्व वृष्टि की थी ॥४२|| जिनके चित्त राम-लक्ष्मणमें लग रहे थे ऐसी स्त्रियोंकी मेखला, नू पुर और कुण्डल टूट-टूटकर पृथिवी पर पड़ रहे थे तथा उनमें परस्पर इस प्रकार वार्तालाप हो रहा था ॥४३।। कोई कह रही थी कि जिनकी गोदमें गुणोंको धारण करनेवाली यह राजा जनककी पुत्री पतिव्रता सीता प्रिया विद्यमान है यही विशाल नेत्रोंको धारण करनेवाले राम हैं ॥४॥ कोई कह रही थी कि हाँ, ये वे ही राम हैं जिन्होंने सुग्रीवको आकृतिके चोर दैत्यराज वृत्रके नाती दुष्ट साहसगतिको युद्धमें मारा था ॥४।। कोई कह रही थी कि ये इन्द्र तुल्य पराक्रमके धारी लक्ष्मण हैं जिन्होंने युद्ध में अपने चक्रसे वक्षःस्थल पर प्रहार कर रावणको मारा था ॥४६॥ कोई कह रही थी कि यह महाशक्तिशाली सुग्रीव है, यह उसका बेटा अंगद है, यह सीतादेवीका सगा भाई भामण्डल है जिसे उत्पन्न होते ही देवने पहले तो हर लिया था फिर दयासे छोड़ दिया था और चन्द्रगति विद्याधरने देखा था ॥४७-४८॥ यही नहीं किन्तु हर्षसे युक्त हो उसे वनमें झेला था तथा 'यह तुम्हारा पुत्र है। इस प्रकार कहकर रानी पुष्यवतीके लिए सौंपा था। अपने दिव्य रत्नमयी कुण्डलोंसे जिसका मुख देदीप्यमान हो रहा है तथा जो सार्थक नामका धारी है ऐसा यह विद्याधरोंका राजा भामण्डल अत्यधिक शोभित हो रहा है ॥४६-५०॥ हे सखि ! यह चन्द्रोदरका लड़का श्रीमान् विराधित है ओर यह वानरचिह्नित पताकाको धारण करनेवाला पवनञ्जयका पुत्र श्रीशैल (हनूमान) है ॥५१॥ इस प्रकार आश्चर्य तथा संतोषको धारण करनेवाली नगरवासिनी स्त्रियाँ जिन्हें देख रही थीं ऐसे उत्कट शोभाके धारक सब लोग राजभवनमें पहुँचे ॥५२।। जब तक ये सब राजभवन में पहुंचे तब तक जो भवनके शिखर पर स्थित थी, पुत्रोंके प्रति स्नेह प्रकट करनेमें तैयार थीं तथा जिनके स्तनोंसे दूध भर रहा था ऐसी दोनों वीर माताएँ ऊपरसे उतर कर नीचे आ गई ॥५३॥ महागुणोंको धारण करनेवाली तथा उत्तम
से युक्त अपराजिता (कौशल्या) कैकयी (सुमित्रा'), केकया (भरतकी माता) और सुप्रजा (सुप्रभा) उत्तम चेष्टाको धारण करनेवाली तथा मङ्गलाचारमें निपुण ये चारों माताएँ साथ-साथ राम-लक्ष्मणके समीप आई मानो भवान्तरमें ही संयोगको प्राप्त हुई हो ॥५४-५५॥
__ तदनन्तर जो माताओंको देखकर प्रसन्न थे, जिनके नेत्र कमलके समान थे और जो लोकपालोंके तुल्य कान्तिको धारण करनेवाले थे ऐसे राम-लक्ष्मण दोनों भाई पुष्पक विमानसे उतर
१.न पतितं क०, ख०, म. । २. 'उन्नादेन' इति पाठेन भाव्यम् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org