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## Padma Purana:
**Chapter 88:**
The death of Sahasagata, leaving behind his son Sitodanta. The arrival of Vibhishana's chariot, the acquisition of the Vidya of Haripadma.
**Chapter 89:**
Indrajit, Kumbhakarna, and Meghanada bound by the Naga-pasha. Lakshmana struck by the Shakti, and the removal of the arrow by Vishalya.
**Chapter 90:**
The entry of Ravana into the Jineshvara temple and his praise. The attack on Lanka by the Vidhyadhara Kumaras of Kटक. The return of the Vidhyadhara Kumaras to Kटक due to the influence of the Devas.
**Chapter 91:**
The acquisition of the Chakra-ratna by Lakshmana. The death of Ravana. The lamentations of his wives. The arrival of the Kevali.
**Chapter 92:**
The initiation of Indrajit and others. The reunion of Rama and Sita. The arrival of Narada. The return of Rama to Ayodhya.
**Chapter 93:**
The description of the previous birth of Bharata and the elephant Trilokamandana. The renunciation of Bharata. The expansion of the kingdom of Rama and Lakshmana.
**Chapter 94:**
The acquisition of Manorama by Lakshmana, whose chest was embraced by Rajalakshmi. The death of Madhu and Lavana in the battle.
**Chapter 95:**
The outbreak of the disease Mariroga in Mathura and other countries due to the wrath of Dharanendra. The removal of the disease by the influence of the Saptarshis. The expulsion of Sita from her home and her lamentations.
**Chapter 96:**
The protection of Sita by King Vajrajangha. The birth of Lavanakusha. The conquest of other kings by Lavanakusha upon growing up, leading to the expansion of Vajrajangha's kingdom. Finally, their battle with their father, Ramachandraji.
**Chapter 97:**
The arrival of the Devas to celebrate the attainment of Kevalgyan by the Sarvabhusana Muni. The removal of the accusation against Sita through the Agnipariksha. The description of the future births of Vibhishana.
**Chapter 98:**
The penance of the army commander, Krtaantavakra. The anger of Rama and Lakshmana's sons during the Swayamvara. The initiation of Lakshmana's sons. The death of Bhamandala due to lightning.
**Chapter 99:**
The initiation of Hanuman. The death of Lakshmana. The penance of Rama's sons. The immense grief of Rama due to the separation from his brother.
**Chapter 100:**
The initiation of Rama due to the enlightenment provided by his friend, the Deva of his previous birth. The attainment of Kevalgyan. The attainment of Nirvana.
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पद्मपुराणे
निधनं साहसगतेः सीतोदन्तं विहायसा । यानं विभीषणायानं विद्यातिं हरिपद्मयोः ||८८ || इन्द्रजित्कुम्भकर्णाब्दस्वरपन्नगबन्धनम् । सौमित्रशक्तिनिर्भेदविशल्याशल्यताकृतिम् ॥८९॥ रावणस्य प्रवेशं च जिनेश्वरेगृहे स्तुतिम् । लङ्काभिभवनं प्रातिहार्यं देवैः प्रकल्पितम् ॥९०॥ चक्रोत्पत्तिं च सौमित्रेः कैकसेयस्य हिंसनम् । विलापं तस्य नारीणां कैवल्यागमनं ततः ||११||
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मिन्द्रजिदादीनां सीतया सह संगमम् । नारदस्य च संप्राप्तिमयोध्याया निवेशनम् ||१२|| पूर्वजन्मानुचरितं गजस्य भरतस्य च । तत्प्रव्रज्यं महाराज्यं सीरचक्रप्रहारिणोः ॥९३॥ लाभं मनोरमायाश्च लक्ष्म्यालिङ्गितवक्षसः । संयुगे मरणप्राप्तिं सुमधोर्लवणस्य च ॥ ९४ ॥ मथुरायां सदेशायामुपसर्गविनाशनम् । सप्तर्षिसंश्रयात् सीतानिर्वासपरिदेवने ॥ ९५ ॥ वज्रजङ्घपरित्राणं लवणांकुशसंभवम् । अन्यराज्यपराभूतिं ' पित्रा सह महाहवम् ||१६|| सर्वभूषणकैवल्य संप्राप्तावमरागमम् । प्रातिहार्यं च वैदेह्या विभीषणभवान्तरम् ||१७|| तपः कृतान्तवक्रस्य परिक्षोभं स्वयंवरे । श्रमणत्वं कुमाराणां प्रभामण्डलदुर्मृतिम् ||१८|| दीक्षां पवनपुत्रस्य नारायणपरासुताम् । रामात्मजतपः प्राप्तिं पद्मशोकं च दारुणम् ॥९९॥ पूर्वाप्तदेवजनिताद् बोधान्निर्प्रन्थताश्रयम् । केवलज्ञानसंप्राप्तिं निर्वाणपदसंगतिम् ॥१००॥
छेदा जाना तथा सुग्रीवका रामके साथ समागम होना || ८७|| सुग्रीवके निमित्त राम साहस मारा, रत्नजटीने सीताका सब वृत्तान्त रामसे कहा, रामने आकाशमार्ग से लंकापर चढ़ाई की, विभीषण रामसे आकर मिला और राम तथा लक्ष्मणको सिंहवाहिनी गरुडवाहिनी विद्याओं की प्राप्ति हुई ||८८|| इन्द्रजित् कुम्भकर्ण और मेघनादका नागपाशसे बाँधा जाना, लक्ष्मणको शक्ति लगना और विशल्याके द्वारा शल्यरहित होना ||८९ || बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करनेके लिए रावणका शान्तिनाथ भगवान् के मन्दिर में प्रवेश कर स्तुति करना, रामके कटकके विद्याधरकुमारोंका लंकापर आक्रमण करना, देवोंके प्रभावसे विद्याधर कुमारोंका पीछे कटकमें वापस आना ॥९०॥ लक्ष्मणको चक्ररत्नकी प्राप्ति होना, रावणका मारा जाना, उसकी स्त्रियोंका विलाप करना तथा केवलीका आगमन ||९|| इन्द्रजित् आदिका दीक्षा लेना, रामका सीताके साथ समागम होना, नारदका आना और श्रीरामका अयोध्या में वापस आकर प्रवेश करना ॥ ९२ ॥ भरत और त्रिलोकमण्डन हाथी के पूर्वभवका वर्णन, भरतका वैराग्य, राम तथा लक्ष्मणके राज्यका विस्तार ||२३|| जिसका वक्षःस्थल राजलक्ष्मीसे आलिंगित हो रहा था ऐसे लक्ष्मणके लिए मनोरमाकी प्राप्ति होना, युद्ध में मधु और लवणका मारा जाना ||१४|| अनेक देशोंके साथ मथुरा नगरीमें धरणेन्द्र के कोपसे मरीरोगका उपसगं और सप्तर्षियोंके प्रभावसे उसका दूर होना, सीताको घरसे निकालना तथा उसके विलापका वर्णन || ९५|| राजा वज्रजंघके द्वारा सीताकी रक्षा होना, लवणांकुशका जन्म लेना, बड़े होनेपर लवणांकुशके द्वारा अन्य राजाओंका पराभव होकर वज्रजंधके राज्यका विस्तार किया जाना और अन्तमें उनका अपने पिता रामचन्द्रजी के साथ युद्ध होना ||१६|| सर्वभूषण मुनिराजको केवलज्ञान प्राप्त होनेके उपलक्ष्यमें देवोंका आना, अग्निपरीक्षा द्वारा सीताका अपवाद दूर होना, विभीषणके भवान्तरोंका निरूपण ||१७|| कृतान्तवक्र सेनापतिका तप लेना, स्वयंवर में राम और लक्ष्मणके पुत्रोंमें क्षोभ होना, लक्ष्मणके पुत्रोंका दीक्षा धारण करना और विद्युत्पात से भामण्डलका दुर्मरण होना ||९८ || हनुमान्का दीक्षा लेना, लक्ष्मणका मरण होना, रामके पुत्रोंका तप धारण करना और भाईके वियोगसे रामको बहुत भारी शोकका उत्पन्न होना ||१९|| पूर्वभवके मित्र देवके द्वारा उत्पादित प्रतिबोधसे रामका दीक्षा लेना, केवल
१. जिनशान्तिगृहं शुभम् म. । २. सौमित्रः [?] । ३. तत्प्राव्रज्यां म । ४ प्रहारिणः म । ५. पराभूति: म. । ६. वक्त्रस्य म. । ७. दुर्मतिम् म. ।
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