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महावीर-वाणी भाग : 2
है, स्थूल है। लेकिन महावीर यह नहीं कहते कि संबंधियों को छोड़ देती है, महावीर कहते हैं, संबंधों को छोड़ देती है। __ संबंध बड़ी अलग बात है। पत्नी वहां है, और पत्नी से मैं हजार मील दूर भी हो जाऊं, तो भी संबंध के टूटने का कोई मतलब नहीं है। संबंध बहुत इलास्टिक है; इन्फिनिटली इलास्टिक है। पत्नी दस हजार मील दूर हो, तो दस हजार मील दूर तक मेरा संबंध फैल जायेगा। वह धागा बना रहेगा। उसको तोड़ना मुश्किल है।
पत्नी को चांद पर भेज दो-कोई फर्क नहीं पड़ता, यहां से लेकर चांद तक संबंध का धागा फैल जायेगा। वह कोई भौतिक घटना नहीं है कि उसको कोई अड़चन हो। वह मानसिक घटना है। शायद पत्नी दूर हो, तो संबंध ज्यादा भी हो जाये। ___ अकसर तो ऐसा ही होता है लोगों को। पत्नी को फिर से प्रेम करना हो, तो मायके भेज देना जरूरी होता है। थोड़ा फासला हो, फिर रस भर आता है। थोड़ा फासला हो, फिर आकांक्षा जग जाती है। व्यक्ति दूर हो, तो उसकी बुराइयां दिखनी बंद हो जाती हैं, और भलाइयों का खयाल आने लगता है। व्यक्ति पास हो, तो बुराइयां दिखती हैं और भलाइयां भूल जाती हैं।
थोड़ा फासला चाहिए। ज्यादा फासला कभी-कभी हितकर हो जाता है। महावीर कहते हैं, संबंधी नहीं, संबंध छूट जाते हैं। वह जो मेरे भीतर से निकलता है धागा संबंध का, वह गिर जाता है। पत्नी अपनी जगह होगी, मैं अपनी जगह होऊंगा। कोई घर से भाग जाना भी आवश्यक नहीं है, लेकिन बीच से वह जो पति और पत्नी का पागलपन था, वह विदा हो जायेगा। वह जो पजेस' करने की धारणा थी, वह छूट जायेगी। वह जो दूसरे का शोषण करने की व्यवस्था थी, वह टूट जायेगी। दूसरे से सुख या दुख मिलता है, यह भाव गिर जायेगा। पत्नी पहली दफा एक व्यक्ति बनेगी, और मैं भी पहली दफा एक व्यक्ति बनूंगा, जिनके बीच खुला आकाश है, कोई संबंध नहीं; जिनके बीच संबंधों की जंजीरें नहीं हैं; जो दो निजी व्यक्तित्व हैं और परिपूर्ण स्वतंत्र हैं। ___ जब दो व्यक्ति परिपूर्ण स्वतंत्र हो जाते हैं, तो छोड़ने या पकड़ने का दोनों ही सवाल नहीं रह जाते। तब यह भी आवश्यक नहीं है कि मैं पत्नी के साथ घर में रहं ही और यह भी आवश्यक नहीं है कि मैं पत्नी को छोड़कर चला ही जाऊं। दोनों घटनाएं घट सकती हैं। जनक घर में ही रह जाते हैं, महावीर घर छोड़कर चले जाते हैं। यह व्यक्तियों पर निर्भर होगा। लेकिन इसको थोड़ा समझ लेना जरूरी है। ___ जो आसक्त व्यक्ति है, उसके लिए यह समझना बहुत कठिन है। आसक्त दो काम कर सकता है : या तो जिससे आसक्त है, उसके पास रहे और अगर विरक्त हो जाये, तो उससे दूर जाये। __ आसक्ति जिससे है, उसके हम पास रहना चाहते हैं। इसे थोड़ा समझें। जिससे हमारी आसक्ति है, हम चाहते हैं चौबीस घण्टे उसके पास रहें, क्षणभर को न छोडें। और अकसर हम अपने प्रेम को इसी में नष्ट कर लेते हैं। क्योंकि चौबीस घण्टे जिसके साथ रहेंगे, उसके साथ रहने का मजा ही खो जायेगा। और चौबीस घण्टे जिसके साथ रहेंगे, उसके साथ सिवाय कलह और दुख के कुछ भी न बचेगा।
लेकिन आसक्ति का एक स्वभाव है कि जिससे हमारा लगाव है, उसके पास ही रहें चौबीस घण्टे, एक क्षण को न छोड़ें। विरक्ति जिससे हमारी हो जाये, जिसको हम विरक्ति कहते हैं, मतलब आसक्ति उलटी हो जाये तो उसके हम पास नहीं होना चाहते क्षणभर । उससे हम दूर हटना चाहते हैं।
जो विरक्ति दूर हटना चाहती है, वह आसक्ति का ही उलटा रूप है। वह वास्तविक विरक्ति नहीं है। क्योंकि नियम काम कर रहा है; नियम वही है कि जिसे हम चाहते हैं, उसके पास और जिसे हम नहीं चाहते उससे दूर। लेकिन चाह, और चाह के विपरीत जो चाह है, उनमें कोई फर्क नहीं है। __विरक्ति का अर्थ यह है कि न तो हमें पास होने से अब फर्क पड़ता है, न दूर होने से फर्क पड़ता है। अब हम पास हों तो ठीक, और दर हों तो ठीक। दर हों तो याद नहीं आती, पास हों तो रस नहीं आता। न तो दूर होने में अब कोई रस है और न पास होने में कोई
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