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________________ अंतस - बाह्य संबंधों से मुक्ति रस है। तब आप संबंध के ऊपर उठे । अगर दूर होने में रस है, तो अभी आसक्ति मौजूद है — सिर्फ उलटी हो गयी है। तो बुद्ध ने कहा है कि प्रियजनों के पास होने से सुख मिलता है; अप्रियजनों के दूर होने से सुख मिलता है - लेकिन सुख दोनों ही हालत में दूसरे से मिलता है। प्रियजन दूर जायें तो दुख देते हैं, अप्रियजन पास आयें तो दुख देते हैं - लेकिन दुख दूसरे से ही मिलता है दोनों हालत में । 'प्रिय' का भी संबंध है, 'अप्रिय' का भी संबंध है । विरक्ति का अर्थ अप्रिय का पैदा हो जाना नहीं है; क्योंकि अप्रिय एक संबंध है। विरक्ति का अर्थ है, संबंध ही न रहा, निर्भरता न रही; पास हूं कि दूर हूं, बराबर है। पास और में रंचमात्र का फर्क न रह जाये; निकट हूं या न निकट हूं, रंचमात्र का फर्क न रह जाये, तो व्यक्ति संबंध के ऊपर गया। अब दूसरा मूल्यवान नहीं रहा । अब मैं अपने लिए मूल्यवान हूं, दूसरा अपने लिए मूल्यवान है। दूसरे की आत्मा स्वतंत्र है, मेरी आत्मा स्वतंत्र है। ऐसी दो स्वतंत्रताओं का जन्म जब हो जाता तो बीच की गुलामी गिर जाती है। महावीर कहते हैं कि सभी सांसारिक संबंधों को छोड़ देता है, अंदर और बाहर के । क्योंकि ध्यान रहे, आप उनसे ही नहीं बंधे हैं जिनके पास हैं, उनसे भी बंधे हैं जिनके आप पास नहीं हैं। जिस फिल्म अभिनेत्री को आप चित्रपट पर, तस्वीर पर देख लेते हैं, उससे भी बंधे हैं। उससे कोई मुलाकात नहीं है, पहचान नहीं है, कभी देखा नहीं है; तस्वीर देखी है— उससे भी बंधे हैं। सपना देखते हैं उसका, उससे भी बंधे हैं । तो बाहर के ही संबंध नहीं है कि जिस घर में आप बैठे हैं, जो बच्चा आपका है, जो पत्नी आपकी है, पति आपका है, पिता-मां हैं— उनसे ही आप बंधे हैं, ऐसा नहीं है। शायद उनका तो आपको कभी स्मरण भी नहीं आता । ऐसा पति खोजना मुश्किल है, जिसको पत्नी का सपना आता हो ! खोज लें तो मुझे आप बताना। पत्नी का सपना आता ही नहीं। पति का भी सपना नहीं आता । सपने तो उनके आते हैं, जिनसे हमारी वासना अतृप्त है। सपने का मतलब ही अतृप्त वासना होती है । जिसको हम नहीं उपलब्ध कर पाते, उसका सपना आता है। जिसे उपलब्ध ही कर लिया, उसके सपने का कोई सवाल ही नहीं है। जिसका पेट भरा है, उसे रात भोजन के सपने नहीं आते। भूखे पेट आदमी को भोजन के सपने आते हैं। जो कमी है, अभाव है, उसका सपना निर्मित होता है। तो जो आपके पास हैं स्थूल रूप से, जिनसे आप जुड़े हैं, उनसे शायद ज्यादा जोड़ है भी नहीं। लेकिन जिनसे आप नहीं जुड़े हैं, उनसे आपके सपने जुड़े हैं और भीतरी जोड़ है। एक परिवार आपके आसपास दिखाई पड़ता है, जो वस्तुतः है। और एक परिवार आपके चित्त का है, जो आप बना रखे हैं । जो आप चाहते हैं कि होता। जो आपकी कामना का है। जो कभी पूरा नहीं होगा। क्योंकि पूरा होते ही वह आपकी कामना का नहीं रह जायेगा। पूरा होते ही आप दूसरा परिवार अपने आसपास बसाने लगेंगे। तो एक तो बाहर के संबंधों का जाल है और एक भीतर के संबंधों का जाल है। बायरन अंग्रेज कवि था, बहुत सी स्त्रियां उसके लिए दीवानी थीं और पागल थीं । जब बायरन को इंगलैंड से निष्कासित कर दिया गया, तो अनेक स्त्रियों ने आत्महत्या कर ली, जिन्होंने उसे देखा भी नहीं था - तस्वीर देखी थी या कभी दूर से किसी कवि-सम्मेलन में भीड़ में से देखा था। वे अपने निकटतम पति के लिए आत्महत्या करनेवाली नहीं थीं। लेकिन इस आदमी से कोई संबंध नहीं था, किसी तरह का स्थूल संबंध नहीं था - लेकिन मन के जाल थे। बायरन को उनका पता ही नहीं था, जिन्होंने उसके लिए आत्महत्या कर ली । जो अपने जीवन को दे सकते हैं, जरूर उनके बड़े गहरे भीतरी संबंध रहे होंगे, उनके सपनों में बायरन समाया रहा होगा । बाहर के संबंध हैं; भीतर के संबंध हैं। आप बाहर के संबंध से भाग सकते हैं, बहुत आसान है। क्योंकि घर से भाग जाने में कोई Jain Education International 541 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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