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________________ अंतस - बाह्य संबंधों से मुक्ति लोगों को आकर्षित कर लेता है। नहीं कि वह करना चाहता है— उसका होना ही, उसकी मौजूदगी चुंबक की तरह आपको खींचने लगती है। जो व्यक्ति किसी से प्रभावित होकर धार्मिक हो जाता है, वह धार्मिक होने का अवसर खो देता है। बहुत सचेत होने की जरूरत है । और जब तीर्थंकरों और पैगंबरों के करीब से गुजरने का मौका मिले, तब तो बहुत सचेत होने की जरूरत है; तब बहुत सावधान होने जरूरत है। नहीं तो खाई से निकले और गड्ढे में गिरे। कोई फर्क नहीं रह जाता। मोह नये ढंग से पकड़ लेता है, आसक्ति नये ढंग से पकड़ लेती है। अगर आपके अनुभव में ऐसी रेखा आ गयी है कि जीवन सिर्फ दुख है। बहुत लोगों को लगता है कि जीवन दुख है। लेकिन उनके लगने से विरक्ति पैदा नहीं होती। क्या कारण होगा? आपको भी बहुत बार लगता है, जीवन दुख है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि जीवन का स्वभाव दुख है। आपको ऐसा लगता है कि मैं असफल गया, इसलिए दुख है; कि ठीक परिवार न मिला, ठीक जगह न मिली, ठीक समय न मिला, सहयोग न मिला, संगी-साथी न मिले, प्रेमी न मिले, मैं असफल हो गया, इसलिए जीवन दुख है। जीवन दुख है, ऐसा आपको नहीं लगता। अपनी असफलता मालूम पड़ती है, क्योंकि कई लोगों का जीवन सुख मालूम होता है। यह बड़े मजे की बात है कि अपने को छोड़कर सभी का जीवन लोगों को सुख मालूम पड़ता है। और यह सभी को ऐसा लगता है । खुद को छोड़कर सब लोग लगते कि सुखी हैं— कैसे मुस्कुराते, आनंदित सड़कों पर गीत गाते चल रहे हैं ! एक मैं दुखी हूं। मगर यही प्रतीति सबकी है। बहुत लोग हैं, जो आपको भी सुखी मान रहे हैं। बहुत लोग आपसे ईर्ष्या कर रहे हैं। कि सभी लोग दुखी हैं। कोई अपनी गरीबी में दुखी है, कोई अपनी अमीरी में दुखी है। में दुखी है, लेकिन दुख का कोई भेद नहीं है, लोग दुखी हैं। जीवन दुख है, व्यक्ति का कोई सवाल नहीं है। अगर आपको ऐसा लगता है कि मैं दुखी हूं, तो फिर आप विरक्त नहीं हो सकते, आप नये जीवन की तलाश करेंगे। यही तो हम करते रहे हैं। यही तो हम करते रहे हैं जन्मों-जन्मों से। ऐसे जीवन की तलाश करेंगे - जहां सफलता मिले, धन मिले, समृद्धि मिले, यश मिले, पद-प्रतिष्ठा मिले। इस बार चूक गये, कोई हरजा नहीं, अगली बार नहीं चूकेंगे । जीवन व्यर्थ नहीं होता, एक जीवन व्यर्थ होता है - लेकिन हम दूसरे जीवन की तलाश में निकल जाते हैं। पुनर्जन्म का सूत्र यही है कि हमारी वासना जीवन से नहीं छूटती । एक जीवन व्यर्थ होता है तो दूसरे जीवन को पकड़ती है, दूसरा व्यर्थ होता है तो तीसरे को पकड़ती है। अंतहीन है यह शृंखला । जब महावीर कहते हैं, जीवन व्यर्थ है या बुद्ध कहते हैं, जीवन दुख है, तो उनका मतलब नहीं है कि आपका जीवन दुख है। उनका कहना यह है कि जीवन का स्वभाव, जीवन के होने का ढंग ही पीड़ा है। जब ऐसा स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे तो जो विरक्ति पैदा होती है, वह विरक्ति अंदर और बाहर के सभी सांसारिक संबंधों को तोड़ देती है। यहां एक और मजे की बात समझ लेना है। महावीर यह नहीं कहते कि संबंधियों को छोड़ देती है, कहते हैं, संबंधों को छोड़ देती है। यह जरा गहन है, नाजुक है। मेरी पत्नी है, तो जब मुझे विरक्ति का अनुभव होगा तो मैं पत्नी को छोड़ दूंगा - यह बहुत गौण और सीधी दिखाई पड़ने वाली बात Jain Education International ईर्ष्या पैदा ही न हो, अगर यह प्रतीति हो जाये कोई सफलता में दुखी है, कोई असफलता 539 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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