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________________ महावीर वाणी भाग 2 उबलते हुए तेल में तुम्हें उबाला जायेगा। तुम प्यासे होओगे। आग बरसती होगी। पानी पास होगा। लेकिन तुम्हें पानी पीने को नहीं दिया जायेगा । रसेल यह कहता है कि जीसस के ये जो वचन हैं, अगर जीसस ने ही कहे हैं, तो जीसस साधु होने का गुण ही खो देते हैं। क्योंकि साधु दूसरे को ऐसा कष्ट देने की कल्पना भी करे, वह कल्पना भी बताती है कि दूसरे को कष्ट देने में रस है; हिंसा है। दूसरे को बुरा कहना हिंसा है। दूसरे को बुरा मानना हिंसा है। निश्चित ही, जीसस ने ये वचन कहे नहीं हैं— पीछे जोड़े गये हैं। क्योंकि जीसस के मर जाने के डेढ़ सौ वर्ष बाद बाइबिल का संकलन शुरू हुआ। जिन लोगों ने संकलन किया, उनकी धारणाएं मैं यहां बोल रहा हूं; आप इतने लोग यहां बैठे हैं; अगर बाहर आपसे जाकर पूछा जाये कि मैंने क्या कहा - अभी, डेढ़ सौ वर्ष बाद नहीं - तो जितने यहां लोग हैं, उतने वक्तव्य होंगे। और मुश्किल हो जायेगा यह तय करना कि मैंने क्या कहा। क्योंकि आप वही नहीं सुनते, जो मैं कह रहा हूं। आप वही सुनते हैं, जो आप सुनना चाहते हैं। आप उसी को चुन लेते हैं; उसी को बड़ा कर लेते हैं; कुछ छोड़ देते हैं, कुछ बचा लेते हैं। जीसस के आठ शिष्यों ने बाइबिल के आठ वक्तव्य दिये हैं। वे सब भिन्न-भिन्न हैं; अपना-अपना वक्तव्य हैं असल में। डेढ़ सौ साल बाद जो लिखा गया है, वह उन लोगों का है जिन्होंने डेढ़ सौ साल बाद लिखा। ये वे लोग थे जो चाहते थे कि ईसाई होने से स्वर्ग; और जो ईसाई नहीं होता, उसे नर्क। लेकिन रसेल का तर्क सही है। अगर जीसस ने ही ये वचन कहे हैं, तो जीसस सारा गुण खो देते हैं । जिन्होंने नर्क सोचा है, उन्होंने सोचकर ही बता दिया कि उनके मन में भीतर गहरी हिंसा छिपी है। लेकिन साधु इसमें रस लेता है। लेकिन रस का कारण भी समझ लें 1 आप भोग रहे हैं - स्त्री को, धन को, महल को । साधु ने स्त्री छोड़ी, धन छोड़ा, महल छोड़ा - भूखा है, प्यासा है, नग्न है, सड़क पर पैदल चल रहा है। आप सब तरह का सुख भोग रहे हैं; वह सब तरह का दुख भोग रहा है। गणित साफ है। अगर वह कहीं भविष्य में आपके लिए दुख का आयोजन न कर ले, तो उसे खुद का दुख भोगना मुश्किल हो जायेगा। गणित को साफ कर लेगा वह : अपने लिए भविष्य में सुख का आयोजन; आपके लिए भविष्य में दुख का आयोजन । बात साफ हो गयी। और यह भी पक्का कर लेगा कि तुम जो सुख भोग रहे हो, वह क्षणिक है; और मैं जो सुख भोगूंगा स्वर्ग में, मोक्ष में, वह शाश्वत है। और तुम जो सुख भोग रहे हो, वह तो क्षणिक है; लेकिन तुम जो दुख भोगोगे नर्क में, वह अनंतकालीन है। यह बड़े मजे की बात है। क्षणिक सुख के लिए अनंतकालीन दुख कैसे मिल सकता है ? बट्रेंड रसेल ने वह भी तर्क उठाया है। ईसाइयत मानती है कि नर्क जो है, वह इटरनल है; उसका कभी अंत नहीं होगा। जो एक दफे नर्क में पड़ गया, वह पड़ गया । उससे निकलने की कोई जगह नहीं है। शाश्वत नर्क ! अब यह बड़े मजे की बात है कि क्षणिक सुख, उसके बदले में शाश्वत नर्क ! कहीं साथ नहीं बैठता। रसेल ने कहा है कि मुझ पर अगर कोई ठीक न्यायोचित व्यवस्था की जाये मेरे पापों की, तो जो मैंने पाप किये हैं वे और जो मैंने सोचे हैं, अगर वे भी जोड़ लिये जायें - तो भी मुझे सख्त अदालत चार साल, और चार साल से ज्यादा की सजा नहीं दे सकती। तो अनंत....! इसमें जरूर देनेवालों कुछ हाथ है। अनंत नर्क, जिसका फिर कोई अंत नहीं होगा ! उलटी बात भी समझ लेने जैसी है। क्षणिक सुख छोड़नेवाले लोग शाश्वत सुख पायेंगे। क्षणिक को छोड़कर शाश्वत कैसे पाया जा सकता है ? आखिर गणित कुछ तो साफ होना चाहिए। सिर्फ क्षणिक सुख भोगनेवाले लोग शाश्वत नर्क पायें । क्षणिक सुख छोड़नेवाले शाश्वत सुख पायें । इसमें देनेवालों का, हिसाब लगानेवालों का हाथ है। Jain Education International 470 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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