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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 पुराना प्रेम भी चल रहा है।' लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा खोला आलमारी का, वह युवक-विद्यार्थी, जो कमरे में रहता था, घबरा गया। और उसने हकलाते हुए कहा कि सर, शी इज माइ सिस्टर। तो नसरुद्दीन ने कहा, 'द सेम ओल्ड लाइ—वही पुराना झूठ। सब वही चल रहा है।' - हर आदमी के जीवन में करीब-करीब वही दुहर रहा है, जो हर दूसरे आदमी के जीवन में दुहरा है। लेकिन एक सुविधा है, क्योंकि हमें दूसरे जीवन का कोई पता नहीं। हमसे पहले कितने लोग पृथ्वी पर हुए हैं ! असंख्यात ! वैज्ञानिक कहते हैं, जिस जगह पर आप बैठे हैं, कम से कम वहां दस आदमियों की लाशें दब चुकी हैं। पूरी पृथ्वी लाशों से भरी है। सारी जमीन की मिट्टी किसी न किसी आदमी के शरीर का हिस्सा रह बुकी है। लेकिन हमें उनके जीवन का कोई पता नहीं। इसलिए जब आप पहली दफा प्रेम में पड़ते हैं, तो आप सोचते हैं, ऐसा प्रेम पृथ्वी पर कभी नहीं हुआ। ऐसा ही प्रेम हुआ है। ऐसा ही अनुभव भी हुआ है दूसरे लोगों को, जब वे प्रेम में पड़े हैं कि बस, ऐसा कभी नहीं हुआ। जब आप सफल होते हैं तो शायद सोचते हैं, ऐसी सफलता की चमक जमीन पर कभी नहीं घटी। या जब आप असफल होते हैं, और उदासी से भर जाते हैं, तो सोचते हैं, शायद ऐसा दुख का पहाड़ कभी नहीं टूटा । यही सदा होता रहा है। हर आदमी के जीवन में मौसम की तरह चीजें वैसी ही घूमती रही हैं। लेकिन हमें दूसरे आदमियों का कोई पता नहीं है। इसलिए हर आदमी को लगता है, सब नया हो रहा है। कुछ भी नया नहीं हो रहा है। बहुत पुराना सूत्र है कि 'सूर्य के नीचे कुछ भी नया नहीं।' मगर प्रत्येक को ऐसा ही लगता है कि सब कुछ नया है। यह भ्रान्ति है। और जब तक यह भ्रान्ति न टूट जाए, तब तक हम मुक्त होने की चेष्टा में संलग्न नहीं होते। मुक्त होने की चेष्टा पैदा ही तब होती है, जब हमें ऐसा लगता है कि हम एक जाल में फंसे हैं, जैसे कि गाड़ी के चाक से हमें बांध दिया गया हो और गाड़ी घूमती चली जाती हो, और हम चाक के साथ घूमते चले जाते हैं। - इसलिए पूरब के मनीषियों ने जीवन की इस लम्बी यात्रा को 'आवागमन' कहा है; 'संसार' कहा है। संसार का अर्थ होता है : चाक-द व्हील। जिसमें वे ही आरे वापिस लौट आते हैं, और यह चक्र घूमता चला जाता है। यह जो चक्र है, जब तक आपको लग रहा है कि आप कुछ नया जी रहे हैं, तब तक इससे छूटने का आपको खयाल भी पैदा नहीं होगा। जैसे ही आपकी यह प्रतीति सघन हो जाए कि नया कुछ भी नहीं है, वही-वही दोहर रहा है, ऊब पैदा हो जायेगी। और वही ऊब अध्यात्म की तरफ पहला झुकाव बनती है। इसलिए बुद्ध और महावीर तो निरन्तर अपने शिष्यों को कहते थे कि तुम याद करो अपने पिछले जन्मों को। और उन्होंने रास्ते खोजे थे ध्यान के जिनसे पिछले जन्मों की स्मृति सजग हो जाती है। ___ उसे महावीर 'जाति-स्मरण' कहते हैं। खोजो अपने पिछले जन्मों को, और जब तुम्हारी स्मृति जगेगी, तब तुम बहुत हैरान हो जाओगे कि तुम जो आज कर रहे हो, ये तुम लाख बार कर चुके हो। यही लोभ, यही काम, यही आकांक्षा, यही दुख, यही दुख तुम इतनी बार कर चुके हो कि अगर याद भी आ जाए, तो मन विरक्त हो जाए। पुनरुक्ति इतनी हो चुकी है कि अब कहीं कोई रस नहीं है। लेकिन प्रकृति एक खेल खेलती है कि हर जन्म के बाद हमारा पिछले जीवन का पूरा का पूरा स्मृति का संग्रह बन्द हो जाता है। हर नये जन्म के साथ पुरानी स्मृतियों के संग्रह का द्वार बन्द हो जाता है। तब हमें सब फिर नया मालूम होने लगता है। फिर हम अ, ब, स से शुरू करते हैं। 444 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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