________________
जा अज्ञात है, जो अननुभूत है, जो अदृश्य है, जिसे हमने अब तक जाना नहीं, जिसका कोई भी स्वाद हमें उपलब्ध नहीं हुआ, जिसकी एक भी किरण से हम परिचित नहीं हैं—उसकी खोज कैसे शुरू हो? उसे हम खोजें कैसे? खोज के लिए भी थोड़ा-सा परिचय जरूरी है, उस दिशा में हम बढ़ें, उस दिशा की थोड़ी-सी झलक चाहिए। और उस यात्रा में हम अपने पूरे जीवन को लगा दें, यह तो तभी हो सकता है, जब जीवन से मूल्यवान है—वह अज्ञात, ऐसी हमारी प्रतीति हो । पर ऐसी कोई प्रतीति नहीं है, इसलिए श्रद्धा अति मूल्यवान हो जाती है।
श्रद्धा का अर्थ समझ लेना चाहिए। श्रद्धा का अर्थ है कि हमें कुछ भी पता नहीं परमात्मा का, हमें कुछ भी पता नहीं मोक्ष का, हमें कुछ भी पता नहीं कि मनुष्य के भीतर शरीर को पार करनेवाली कोई आत्मा भी है। लेकिन हमें ऐसे व्यक्ति से हमारा मिलन हो सकता है, जिसकी मौजूदगी उस अज्ञात की हमें खबर दे; ऐसे व्यक्ति के हम संपर्क में आ सकते हैं, जो परमात्मा को देख पा रहा है, जो मुक्त है, और जिसकी चेतना शरीर के पार जा चुकी है, जा रही है। ऐसे व्यक्ति में हमें झलक मिल सकती है। वह झलक सीधी नहीं होगी; प्रत्यक्ष नहीं होगी। परोक्ष होगी, उस व्यक्ति के माध्यम से होगी। लेकिन इसके अतिरिक्त धर्म की यात्रा में और कोई उपाय नहीं है। ऐसे व्यक्ति की निकटता में हमें जो प्रतीति होती है, उसका नाम श्रद्धा है। ___ महावीर को जब लोग देखते हैं तो एक बात तय हो जाती है...अगर देखते हैं तो, अगर सुनते हैं तो; अगर आंखें बन्द किये हैं और कान बंद किये हैं, और उन्होंने तय कर रखा है कि वे अपने से ऊपर कुछ भी नहीं देखेंगे क्योंकि अपने से ऊपर कुछ भी देखते ही पीड़ा शुरू होती है, संताप शुरू होता है, चिंता का जन्म होता है। जैसे ही हमें दिखाई पड़ता है कि कोई हमसे पार है, और हम जहां खड़े हैं, वही जीवन की अंतिम मंजिल नहीं है, वैसे ही बेचैनी शुरू होगी; प्यास जगेगी, और हमें चलना पड़ेगा; बैठे-बैठे फिर काम नहीं चल सकता । इस भय से कि कहीं यात्रा न करनी पड़े, हम अपने से ऊपर देखते ही नहीं। अगर महावीर जैसा व्यक्ति हमारे करीब भी आ जाए, तो हम उसे झुठलाने की सब तरह से कोशिश करते हैं।
लेकिन अगर कोई सरलता से, सहजता से महावीर, बुद्ध या कृष्ण को देखे तो एक बात पक्की हो जायेगी कि हम जैसे हैं, यह हमारा अंतिम होना नहीं है; यह हमारी नियति नहीं है, हमारा भविष्य महावीर में प्रगट हो जायेगा।
जिस आनंद से भरे हुए महावीर खड़े हैं, जिस मौन और शांति का उनके चारों तरफ वर्षण हो रहा है, उनकी आंखों से जिस अलौकिक की झलक आ रही है, उनके शब्दों से जिस शून्य का स्वर उठ रहा है, वह हमारा भी भविष्य हो सकता है; हम भी उस जगह कभी हो
403
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org