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________________ वर्णभेद जन्म से नहीं, चर्या से आपको पता है, सिर से बाल कम होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे आदमी की बुद्धि विकसित होती जाती है, वैसे-वैसे सिर से बाल कम होते जाते हैं। पुरुषों के सिर से बाल ज्यादा गिरते हैं, स्त्रियों के कम गिरते हैं; क्योंकि उन्होंने बुद्धि का उतना उपयोग किया नहीं है । तो वह सबूत है इस बात का कि बुद्धि की प्रक्रिया पर उन्होंने काम नहीं किया; इतनी ऊर्जा उनके सिर में इकट्ठी नहीं होती कि बाल गिर जाएं। इसलिए स्त्रियां गंजी नहीं हो पातीं, पुरुष गंजे हो जाते हैं। और जितनी ज्यादा प्रतिभा का उपयोग किया जाए, उतने ही जल्दी गंजे हो जाते वैज्ञानिक कहते हैं, चार हजार साल में आदमी बुद्धि का इतना उपयोग कर रहा होगा कि बच्चा जन्म से ही गंजा पैदा होगा। गंजे होने का डर नहीं रह जायेगा। अच्छा कहा महावीर ने कि सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता, नहीं तो चार हजार साल बाद सभी श्रमण पैदा होते। ___ 'और ओम का जाप कर लेने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता।' ब्राह्मण होने से ओम का जाप पैदा होता है। जब कोई व्यक्ति सब भांति समर्पित कर देता है अपने को अनंत शक्ति में, अपने मस्तिष्क को सब भांति छोड़ देता है उसके हाथों में, अपने विचार को, अपनी चिंतना को, अपने मनन को; सभी को 'उसके चरणों में उतारकर रख देता है; वह चरण सही हो या झूठ, यह सवाल नहीं है, उतारकर रख देता है, अपनी तरफ से निर्भार हो जाता है, तब उसके भीतर एक परम ध्वनि गूंजने लगती है। उस ध्वनि का नाम 'ओंकार' है। उसके भीतर ओम का सहज आवर्तन होने लगता है, उसे करना नहीं पड़ता। लेकिन हम तो हमेशा उल्टा चलते हैं। हम बैठकर ओम का जाप करते हैं। ओम का जाप हमारा व्यर्थ है; क्योंकि ओम का जाप भी हम बुद्धि से ही करते हैं; और बुद्धि ही बाधा है। ओम का जाप भी हमारे लिए एक विचार का पुनरावर्तन होगा; और विचार ही तो अवरोध __ महावीर कहते हैं कि ओंकार का जाप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता यद्यपि कोई ब्राह्मण हो जाए तो ओंकार का जाप प्रगट होता है; उसके भीतर ओम की ध्वनि गूंजने लगती है; उसके रोएं-रोएं से ओंकार गूंजने लगता है। ओंकार मनुष्य के द्वारा पैदा की गयी ध्वनि नहीं है, बल्कि प्रकृति की स्वाभाविक ध्वनि-व्यवस्था है। अगर सब शून्य हो जाए जगत में, तो ओंकार का नाद शेष रह जायेगा । वह नाद इस जगत का मौलिक ध्वनि-स्वर है। उसे पैदा नहीं करना होता। इसलिए ओंकार को हिंदुओं ने 'अनाहत' कहा है। दो तरह के नाद हैं। एक तो 'आहत' नाद है। मैं ताली को बजाऊं, तो यह 'आहत नाद' है; क्योंकि दो चीजें टकरायीं, आहत हुईं। उनके परस्पर चोट से ध्वनि पैदा हुई। ओंकार 'अनाहत नाद' है। वह दो चीजों के टकराने से पैदा नहीं होता। जब सब टकराव भीतर बंद हो जाता है, तब जो शेष रह जाता है; जब भीतर बुद्धि की सारी कलह बंद हो जाती है, संघर्ष बंद हो जाता है, सब विचार खो जाते हैं, सब शून्य हो जाता है; उस शून्य में जो ध्वनि अनुभव होने लगती है, वह ध्वनि व्यक्ति नहीं करता, वह ध्वनि ब्रह्मांड का स्वरूप है। तो महावीर कहते हैं, 'ओम का जाप कर लेने से कोई ब्राह्मण नहीं होता।' 'निर्जन वन में रहने मात्र से कोई मुनि नहीं होता।' आप अकेले में जाकर रह सकते हैं, लेकिन आप अकेले नहीं हो सकते। क्योंकि भीड़ तो आपकी खोपड़ी में भरी है, वह आपके साथ चली जायेगी, एक दुकानदार को उठाकर ले जाएं जंगल में । वहां बैठकर वह दुकान का ही विचार करेगा, ग्राहकों से बातें करेगा, सामान लेगा-देगा, सौदा पटायेगा; वह करेगा क्या! 393 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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