SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 402
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 उसने कहा कि वह तो मेरी समझ में भी नहीं आता । जब पोप ने ऐसा हाथ किया तो मैने समझा कि वह कह रहा है कि निकलो यहूदियो रोम से। मैंने कहा कि दुनिया की कोई ताकत हमें इस जगह से नहीं हटा सकती । हम यहीं रहेंगे। उस आदमी ने मेरी आंख के सामने एक अंगुली की; और कहा कि ड्राप डेड-मर जाओ। तो मैंने तीन अंगुली की और कहा कि यू ड्राप डेड थ्राइस। और तब मैंने देखा-देन आइ सा दैट ही इज ब्रिगिंग आउट हिज लंच, सो आइ ब्राट आउट माइन-वह अपना भोजन निकाल रहा है। तो मैं भी अपना भोजन तो साथ रोज रखता ही हूं। गरीब आदमी हूं, रोज दोपहर घर जाना आसान नहीं होता । जब तुम अपना भोजन निकाल रहे हो, हम भी निकालते हैं। और वह जो चौथा उसने नहीं पूछा, सो ठीक ही किया। ___ बाहरी प्रतीक कुछ भी खबर नहीं देते, और उनसे भीतर का अंदाज आप जो लगाते हैं, वह अनुमान है। लेकिन हम यही कर रहे हैं। एक आदमी मंदिर जा रहा है, तो हम समझते हैं, धार्मिक है। मंदिर जाना बाहरी प्रतीक है। पता नहीं, वह किसलिए जा रहा है, किस कारण से जा रहा है? कि मंदिर में स्त्रियां इकट्ठी हैं, इसलिए जा रहा है, कि मंदिर में गांव के सब लोग, भले लोग इकट्ठे हैं, वे देख लें कि मैं भी भला आदमी हूं, इसीलिए जा रहा है। वह मंदिर किसलिए जा रहा है, इतने से कुछ पता नहीं चलता कि वह धार्मिक है। एक आदमी उपवास कर रहा है, पूजा-प्रार्थना कर रहा है, इससे कछ पता नहीं चलता कि वह धार्मिक है। ये तो बाहर के प्रतीक हैं: हम अनुमान लगाते हैं। और एक आदमी चुप बैठा है; मंदिर नहीं जा रहा है, तो हम सोचते हैं, अधार्मिक है। लेकिन कुछ आवश्यक नहीं, जो मंदिर जा रहा है, वह धार्मिक न हो। जिंदगी जटिल है । और जो एकांत में चुप बैठा हो, वह धार्मिक हो । कहना मुश्किल है। लेकिन, हम बाहर से देखते हैं और इसलिए दुनिया में पाखंड फैलता चला जाता है, हिपोक्रेसी फैलती जाती है। हमारे बीच जो चालाक हैं, वे बाहर का इंतजाम कर लेते हैं और हमारे बीच जो चालाक नहीं हैं. वे उलझ जाते हैं. फंस जाते हैं। जो अपराधी फंस जाते हैं, वे सब छोटे अपराधी हैं । बड़े अपराधी फंस नहीं पाते। बड़े अपराधी तो अधिकार में, पद में प्रतिष्ठा में होते हैं, उन्हें फंसाना मुश्किल है। वे काफी होशियार हैं। वे बाहर का इंतजाम कर रखते हैं। __ ऐसा कहा जाता है, मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मंदिर के पुरोहितों को कभी भरोसा नहीं होता कि 'ईश्वर है।' यह उनका धंधा होता है-यह प्रोफेशनल सीक्रेट है । ईश्वर में उन्हें कभी भरोसा नहीं होता, हो भी नहीं सकता। मंदिर के पुरोहित को क्या खाक भरोसा होगा, क्योंकि जो नौकरी कर रहा है पूजा के लिए, नौकरी कर रहा है प्रार्थना के लिए; प्रार्थना जैसे निजी संबंध को जिसने व्यवसाय बना लिया है, उसे परमात्मा का कोई अनुभव नहीं हो सकता। ___ मंदिर का पुरोहित जानता है कि भगवान वगैरह कुछ भी नहीं है, लेकिन निरंतर घोषणा करता रहता है अपने सारे आचरण से, कि है, क्योंकि उसका सारा जीवन, सारा व्यवसाय, सारा धंधा भगवान के होने पर निर्भर है। इसलिए जब कोई कहता है कि भगवान नहीं है, तो पुरोहित की नाराजगी यह नहीं है कि आप असत्य बोल रहे हैं, पुरोहित की नाराजगी यह है कि सत्य बोलकर आप उसका पूरा धंधा खराब किये दे रहे हैं। पुरोहितों को कभी भरोसा नहीं होता। हो नहीं सकता; लेकिन पाखंड का जाल उनके चारों तरफ होता है, जिससे दूसरों को भरोसा मिलता रहता है कि वे भरोसा करते हैं। महावीर का यह सूत्र सारे पाखंड की जड़ काट देने का सूत्र है। महावीर कहते हैं, 'सिर मुंडा लेने मात्र से कोई श्रमण नहीं होता।' जैसे 'ब्राह्मण' शब्द बहुमूल्य है, वैसे ही महावीर के लिए 'श्रमण' शब्द महत्वपूर्ण है । और भारत में दो संस्कृतियों की धारा है। एक ब्राह्मण संस्कृति की धारा है और एक श्रमण संस्कृति की धारा है। श्रमण संस्कृति में बुद्ध और महावीर आते हैं और शेष सारे विचारक ब्राह्मण संस्कृति में आते हैं । ब्राह्मण और श्रमण संस्कृति का मौलिक भेद समझ लेना चाहिए। ब्राह्मण समर्पण की संस्कृति है, सरेंडर की। ब्राह्मण संस्कृति का मौलिक आधार है कि जब तक कोई व्यक्ति अपने अहंकार को 388 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy