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________________ महावीर वाणी भाग 2 हाथ छूटने लगता है। आप पीछे हटने लगते हैं। ठीक गृहस्थ रहकर भी... । जरूरी नहीं है कि आप भाग कर जंगल में जायें। जंगल में भागना तो तभी जरूरी मालूम पड़ता है, जब दमन करना हो आपको। सिर्फ साक्षी भाव जगाना हो, तो घर में रहकर भी हो सकता है। पति-पत्नी के बीच भी हो सकता है। कोई अड़चन नहीं है। एक बार ठीक से कला आ जानी चाहिए। और कला ऐसी है कि आप प्रयोग करें तो आ जाती है। जैसे कोई आपसे पूछे कि साइकिल चलाना है, क्या करें ? तो आप कहेंगे चलाना शुरू करो! गिरोगे दो-चार बार । कोई बताने का उपाय नहीं है। साइकिल जो चलाना जानता है, वह भी नहीं बता सकता है कि कैसे । वह भी लिखकर नहीं दे सकता कि यह-यह नियम है; इस-इस तरह करोगे तो साइकिल चल जायेगी। वह भी इतना ही कह सकता है कि तुम साइकिल चलाओ । क्योंकि सच्चाई यह है कि साइकिल चलाने में सीखना साइकिल चलाना नहीं होता; साइकिल चलाने में सीखना होता है बैलेंस, संतुलन । वह भीतरी घटना है। साइकिल से उसका कोई लेना-देना नहीं है। साइकिल तो सिर्फ बहाना है। उसके ऊपर आप संतुलित होना सीखते हैं । वह संतुलित होना तो आप प्रयोग करेंगे, गिरेंगे, अनुभव करेंगे कि बायें ज्यादा झुक जाता हूं तो गिर जाता हूं, दायें ज्यादा झुक जाता हूं तो गिर जाता हूं; अनुभव करेंगे कि अगर पैडल की गति थोड़ी धीमी हो जाती है तो साइकिल गिर जाती है, अगर बहुत ज्यादा हो जा है तो गिरने का डर है। तो धीरे-धीरे प्रयोग से आप अनुभव कर लेंगे दो-चार दिन में कि वह बिन्दु कहां है, जहां साइकिल सधी रहती है और गिरती नहीं वह आपका भीतरी अनुभव आप दूसरे को भी बता नहीं सकेंगे। आप निकाल कर कह नहीं सकते कि बस, यह सूत्र है; तुम भी ऐसा करो । साक्षी-भाव एक आंतरिक संतुलन है। शरीर से दूर हटना एक भीतरी घटना है। उसे आप प्रयोग करेंगे तो वह आ जायेगा । वह करीब-करीब तैरने की तरह है । जो तैरना सिखाते हैं, वे भलीभांति जानते हैं कि कुछ करना नहीं होता । मुल्ला नसरुद्दीन पूछने गया है किसी से कि एक युवती को मुझे तैरना सिखाना है । तो जो तैराक था, जो तैरना सिखाने वाला मास्टर था, गुरु था, उसने बताया कि किस तरह उसके कमर में हाथ डालना, किस तरह उसे पानी में उतारना संभाल कर । तभी नसरुद्दीन ने कहा कि इतने विस्तार में मत जाओ, वह मेरी बहन है। उस ने कहा कि फिर हाथ - वाथ डालने की कोई जरूरत नहीं, सीधा पानी में उठाकर उसे फेंक देना! असली बात तो पानी में फेंकना है। अपने आप तड़फड़ायेगी। जीवन अपने बचने की कोशिश करेगा। वह जो तड़फड़ाना है, वही तैरना हो जायेगा दो-चार दिन के अभ्यास से । बस, तुम इतना ही खयाल रखना कि कहीं वह डूबकर खतम ही न हो जाये । बस, बचाने का खयाल रखना, सिखाने की कोई जरूरत नहीं है । • जीवन खुद ही तड़प रहा है बचने के लिए: हाथ-पैर फेंकना शुरू करता है । तैरने वाले में गैर-तैरने वाले में ज्यादा फर्क नहीं है । दोनों हाथ-पैर फेंकते हैं । एक व्यवस्था से फेंकता है, दूसरा गैर-व्यवस्था से फेंकता है। बस, और कोई अंतर नहीं है । एक निर्भय होकर फेंकता है, एक भयभीत होकर फेंकता है। भय के कारण परेशानी होती है। इसलिए ठीक तैराक तो बिना हाथ-पैर चलाये भी नदी में पड़ा रह सकता है क्योंकि निर्भय हो गया है। वह जानता है कि तैर सकता हूं, कोई डर नहीं है। बिना हाथ-पैर चलाये भी वह नदी में तैर जाता है। आपको पता है कि जिंदा आदमी डूब जाता है, मुर्दा आदमी कभी नहीं डूबता । जिंदा मर जाता है पानी में डूब कर मुर्दा ऊपर आकर तैरने लगता है। मुर्दा को कोई कला आती है, जो जिंदे को भी नहीं आती। मुर्दा कोई सूत्र जानता । वह सूत्र है अभय । भय का कोई कारण नहीं है। जो होना था हो चुका। वह ऊपर तैरता रहता है। मुर्दे को कोई पानी डुबा नहीं पाता । तैरने वाला उतनी ही कला सीख रहा है, जो मुर्दा सीख लेता है अपने आप | तैरने या साइकिल चलाने जैसा है साक्षी भाव। घटना घटने दें और आप देखने वाले हो जायें, करने वाले न रहें। यह मूल सूत्र है। Jain Education International 368 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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