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इस सदी के प्राथमिक चरण में सिगमंड फ्रायड ने पश्चिम के लिए और आधुनिक मनुष्य के लिए एक बड़ी महत्वपूर्ण खोज की। खोज नयी नहीं है। पूरब के मनीषी उससे सदा से परिचित रहे हैं। पुनोज है; लेकिन आधुनिक मनुष्य के लिए नये की तरह ही है। ___ फ्रायड ने मनुष्य का विश्लेषण किया और पाया कि कामवासना मनुष्य के प्राणों में सबसे गहरी पर्त है; जैसे मनुष्य का जीवन कामवासना के आस-पास ही घूमता और भटकता है। स्वाभाविक है कि ऐसा हो । क्योंकि मनुष्य का जन्म होता है कामवासना से। मनुष्य के शरीर का प्रत्येक कण काम-कण है। जिन पहले परमाणुओं से, जीव-कोष्ठों से मनुष्य निर्मित होता है, वे ही कामवासना के कण हैं। फिर उन्हीं कणों का विस्तार मनुष्य के पूरे शरीर को निर्मित करता है । इसलिए कामवासना तो रोएं-रोएं में समायी हुई है। एक-एक कोष्ठ शरीर का कामवासना से ही भरा हुआ है। स्वाभाविक है कि कामवासना की प्रगाढ़ पकड़ आदमी के जीवन में हो । वह जो भी करे, जिस भांति भी जीये, जो भी सोचे, स्वप्न देखे, उन सब में कहीं न कहीं कामवासना मौजूद होगी।
फ्रायड की यह खोज तो कीमती है। कीमती इस लिहाज से कि सत्य है ; लेकिन खतरनाक भी, क्योंकि अधूरी है, और अधूरे सत्य असत्य से भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं। __ यह मनुष्य की प्राथमिक भूमिका है कामवासना, लेकिन यह उसका अंत नहीं है। यह बीज है । यह फूल नहीं है। यहां से मनुष्य शुरू होता है, लेकिन यहां समाप्त नहीं होता। और जो प्राथमिक जीवन की पर्त पर ही नष्ट हो जाते हैं, वे जीवन के शिखर को और जीवन के गौरव को जानने से वंचित रह जाते हैं। __ईसाइयत ने बड़ा विरोध किया फ्रायड का । वह विरोध निकम्मा साबित हुआ। क्योंकि उस विरोध में सिर्फ भय था, सत्य नहीं था। ईसाइयत डरी कि अगर लोग समझ लें कि कामवासना ही जीवन का मूल आधार है, उत्स है, स्त्रोत है, तो फिर लोगों को परमात्मा तक ले जाना मुश्किल हो जायेगा । लेकिन पूरब इस बात से राजी है कि कामवासना उत्स है, स्त्रोत है, गंगोत्री है जहां से धारा बहती है । लेकिन वह अंतिम सागर नहीं है. जहां गंगा गिरती है, और हमें कभी कोई अडचन नहीं रही स्वीकार करने में कि निम्न से परम का जन्म हो सकता है। क्योंकि हमारी दृष्टि में निम्न और श्रेष्ठ में बुनियादी रूप से कोई अंतर नहीं है। निम्न हम उसे ही कहते हैं, जहां श्रेष्ठ बीज में छिपा हुआ है और श्रेष्ठ हम उसे ही कहते है जहां निम्न रूपांतरित हुआ, प्रगट हुआ, अभिव्यक्त हुआ, परिशुद्ध हुआ।
निम्न और श्रेष्ठ विरोधी नहीं हैं, एक ही उर्जा के दो आयाम हैं । जैसा मैंने कल कहा मिट्टी और कमल । हम कामवासना को मिट्टी मानते हैं। और इस कामवासना में अगर समाधि का फूल खिल जाये, तो उसे हम कमल मानते हैं। मिट्टी और कमल में विरोध नहीं है, गहरी
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