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________________ महावीर वाणी भाग 2 गुरु निमित्त है; आनंद तो आप से जगेगा। लेकिन निमित्त को आप भीतर ही न घुसने दें तो कठिनाई है। और ध्यान रखें एक बात, गुरु आक्रामक नहीं हो सकता, एग्रेसिव नहीं हो सकता, क्योंकि जो आक्रामक हो सकता है, वह तो गुरु होने की योग्यता को भी उपलब्ध नहीं होगा । गुरु तो बिलकुल अनाक्रामक है। वह जबरदस्ती आपकी गर्दन पकड़कर नहीं कुछ पिला देगा। आप खुले होंगे, तो उस खुले क्षण में ही वह प्रवेश करेगा। वह द्वार पर दस्तक भी नहीं देगा आपके, क्योंकि वह भी हिंसा है। अगर आप सो रहे हों गहरे, मधुर स्वप्न देख रहे हों, और आप राजी ही न हों अभी लेने को, तो जो राजी नहीं है उसे कुछ भी नहीं दिया जा सकता । तो गुरु आप पर जबरदस्ती नहीं करेगा। लेकिन हमें खयाल है जबरदस्ती का । जिनको भी हमने जाना है, मां-बाप, स्कूल, कालेज, विद्यालय, वहां सब जबरदस्ती चल रही है। वे सब हिंसा के उपाय हैं। ठोंका जा रहा है जबरदस्ती आपके सिर में। आध्यात्मिक जीवन उस तरह नहीं ठोंका जा सकता । एक महिला के घर मैं मेहमान था — बहुत सुशिक्षित, सुसंस्कृत, पश्चिम में पढ़ी हुई महिला हैं। जब भी उनके घर जाता था तो हमेशा एक ही रोना रोती थीं कि मेरे मां-बाप ने मुझे जबरदस्ती प्यानो बजाना सिखाया, वह मुझे बिलकुल पसंद नहीं था । और ठीक भी है उसकी बात, क्योंकि वह 'टोन डेफ' है। उसे कोई ध्वनियों में बहुत रस नहीं है। ध्वनियों के प्रति बहरी है, वह संवेदना उसमें है नहीं । लेकिन मां-बाप पीछे पड़े थे कि लड़की को प्यानो बजाना जानना ही चाहिये; तो उन्होंने जबरदस्ती सब तरह से उसे ठोंक-पीटकर प्यानो बजाना सिखा दिया। किसी तरह रटकर, कंठस्थ करके पाठ करके परीक्षाएं भी उसने पास कर लीं। तो मैंने एक दिन जब वह अपना रोना रो रही थी फिर से सुबह-सुबह, तो उससे मैंने कहा कि जो तुम्हारे मां-बाप ने तेरे साथ किया, इतना कम से कम खयाल रखना कि अपनी लड़की के साथ तू मत करना। क्योंकि उस महिला ने मुझे कहा कि मैं तो नाचना सीखना चाहती थी, और मां-बाप ने प्यानो में लगा दिया। काश! मैं नृत्य सीख लेती। तो उस स्त्री ने बड़े जोर से कहा कि निश्चित ही, मैं यह भूल अपनी लड़की के साथ कभी भी नहीं करूंगी। व्हेदर शी लाइक्स इट आर नाट, शी विल हैव टु लर्न डान्सिंग । यही चल रहा है। मां-बाप थोप रहे हैं, विद्यालय थोप रहा है, स्कूल का शिक्षक थोप रहा है। सब तरफ आदमी पर चीजें थोपी जा रही हैं। इससे आपको एक भ्रांति पैदा होती है कि शायद गुरु भी आप पर थोपेगा । आप सिर्फ पहुंच जाएं मिट्टी के लौदे की तरह और वह आपको ठोंक-पीटकर मूर्ति बना देगा । ध्यान रहे, जो गुरु आप पर थोपता हो उसे अध्यात्म की खबर भी नहीं है । वह इसी दुनिया का गुरु है। बेहतर था, किसी स्कूल में शिक्षक होता । शिक्षक और गुरु में फर्क है। शिक्षक सिखाने के लिए उत्सुक है। शिक्षक आपको बनाने के लिए आतुर है। शिक्षक आक्रामक है । इसलिए अगर सारे विश्वविद्यालयों में हिंसा फूट पड़ रही है तो उसका कारण विद्यार्थी तो नंबर दो है, नंबर एक तो शिक्षक है। अब तक शिक्षक थोपता रहा। अब वक्त आ गया है कि लोग उनके ऊपर कुछ भी थोपा जाये, इसके लिए राजी नहीं हैं। हिंसा शिक्षक करता रहा है हजारों साल से, बच्चे अब बगावत कर रहे हैं। अब बच्चे हिंसा कर रहे हैं। और जब तक शिक्षक नहीं रोकता हिंसा करना, तब तक अब विश्वविद्यालय शांत नहीं हो सकते । लेकिन हमारा सारा सोचने का ढंग ही आक्रामक है। गुरु ऐसा नहीं कर सकता, वह असंभव है। अगर आप राजी हैं पीने को लेने को तो वह देगा, बेशर्त, अथक, असीम आप में उड़ेल देगा। आपकी छोटी-सी गागर में पूरा सागर भर देगा। लेकिन पुकार आपकी तरफ से आयेगी । प्यास आपकी तरफ से आयेगी, इस प्यास और पुकार का नाम है भक्तिभाव । 'जो गुरु-वचनों को भक्तिभाव से सुनता है, स्वीकृत कर वचनानुसार कार्य पूरा करता है...।' Jain Education International 324 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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