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________________ कौन हैं पूज्य ? तो अकड़ा हुआ सोचता है, खुद ही जांच-परख करता है। इसलिए विज्ञान और धर्म के सूत्र अलग-अलग हैं। विज्ञान आलोचना से जीता है, तर्क से जीता है। धर्म अतर्क है, श्रद्धा से जीता है, समर्पण से जीता है। एक मित्र, मेरे साथ एक पर्वतीय स्थल पर गये थे; बीमार आलोचक हैं। आलोचक बीमार होते ही हैं। कोई भी चीज देखकर, क्या गलती है, यही उनके ध्यान में आता है। ठीक कुछ हो सकता है, इस पर उनका भरोसा नहीं है। जो भी होगा, गलत ही होगा। -उन्हें एक सुंदर जल-प्रपात के पास ले गया, तो उन्होंने कहा, 'क्या रखा है इसमें? ... जरा पानी को तो जहां भी उन्हें मैं ले जाताहटा लो, फिर कुछ भी नहीं है । ' खूबसूरत पहाड़ पर ले गया, जहां सूर्यास्त देखने जैसा है। उन्होंने कहा, 'ऐसा कुछ खास नहीं है। इतनी दूर चलकर आने का कोई मतलब नहीं है। क्षणभर में सूर्य अस्त हो जायेगा, फिर क्या रखा है?' लौटते वक्त उन्होंने कहा कि बेकार ही आना हुआ! सिवाय पहाड़, झरने, सूरज --- इनको हटा लो, सब सपाट मैदान है। ऐसा आदमी गुरु को कभी उपलब्ध नहीं हो सकता । उसने गलत तरफ से खोज शुरू कर दी। ठीक तरफ खोज का अर्थ है, संवेदनशीलता, रिसेप्टिविटी, ग्राहकता । जितना विनम्र होगा व्यक्ति, उतना ग्राहक होगा। उतनी शीघ्रता से गुरु उसकी तरफ दौड़ सकता है । '... जो भक्तिपूर्वक गुरु- वचनों को 'सुनता I' ‘भक्तिपूर्वक’– जैसे प्रेमी सुनता है प्रेयसी के वचन । और आपको पता है कि वचनों का अर्थ बदल जाता है, कैसे आप सुनते हैं । एक नयी स्त्री के प्रेम में पड़ गये हैं आप। वह जो भी बोलती है वह स्वर्णिम मालूम होता है। कोई दूसरा पास से गुजरता हुआ सुने तो समझेगा कि बचकाना है। आपको स्वर्णिम मालूम पड़ता है, स्वर्गीय मालूम पड़ता है। आप जो भी उससे कहते हैं, क्षुद्र-सी बातें भी, बहुत क्षुद्र-सी साधारण-सी बातें भी, वे भी हीरे-मोतियों से जड़ जाती हैं, वे भी बहुमूल्य हो जाती हैं। जरा-सा इशारा भी कीमती हो जाता है। कोई दूसरा सुनेगा तो कहेगा कि ठीक है, क्या रखा है ? उसे कुछ भी नहीं रखा है। लेकिन प्रेम से भरा हुआ हृदय बहुत गहरे तक चीजों को ले जाता है, क्योंकि उतना खुल जाता है। चीजों अर्थ अलग हो जाते हैं। एक साधारण-सा फूल उठाकर आपका प्रेमी आपको दे दे, तो वह फूल स्मरणीय हो जाता है । कोई कोहिनूर से भी बदलना चाहे तो आप बदलने को राजी न होंगे। कोहिनूर दो कौड़ी का है उस फूल के मुकाबले । फूल में कुछ और आ गया। क्या आ गया ? फूल सिर्फ फूल है; वैज्ञानिक परीक्षण से कुछ भी ज्यादा नहीं मिलेगा। लेकिन फूल आपके हृदय में गहरे उतर गया है; किसी प्रेम के क्षण में लिया गया है। तब आप खुले थे और चीजें भीतर तक झंकृत हो गयीं। इसलिए प्रेमी पत्थर का टुकड़ा भी भेंट दे, तो कीमती हो जाता है । Jain Education International गुरु जो वचन बोल रहा है, वे साधारण मालूम पड़ सकते हैं, अगर भक्ति से नहीं सुने गये हैं। अगर भक्ति से सुने गये हैं, तो उसके साधारण वचन भी क्रान्तिकारी हो जाते हैं । वचनों में कुछ भी नहीं है, भक्ति से सुनने में सब कुछ है। इसलिए आप कुरान को पढ़ें अगर आप मुसलमान नहीं हैं तो पायेंगे, क्या रखा है ? कुरान पढ़नी हो, तो मुसलमान का हृदय चाहिये, तो ही कुरान का अर्थ प्रगट होगा। जै गीता पढ़ता है; कहता है, ‘क्या रखा है ? क्यों हिंदू इतना शोरगुल मचाये रखते हैं ?' गीता के लिए फिर हिंदू का हृदय चाहिये। अगर जैन भागवत पढ़ेगा तो कहेगा, 'यह क्या हो रहा है ? रासलीला है कि सब पाखंड हो रहा है ?' उसकी अपनी धारणा प्रवेश कर जायेगी। चैतन्य से पूछो, या मीरा से भागवत का रस, तो वे पागल होकर नाचने लगते हैं। पर वह जो नाच है, वह चैतन्य की अपनी ग्राहकता से आता है, भागवत से नहीं आता है। भागवत तो सिर्फ सहारा है, निमित्त है। 323 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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