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________________ छह लेश्याएं : चेतना में उठी लहरें हो गया काला । और सफेद सभी रंगों का भाव है, क्योंकि आंख तक सब किरणें आती हैं—एक अर्थ में । दूसरे अर्थ में सफेद कपड़े का अर्थ है : उसने सभी त्याग दिया, सभी किरणें वापस लौटा दीं, कुछ भी लिया नहीं। ___ इसलिए महावीर ने सफेद को त्याग का प्रतीक कहा है और काले को भोग का प्रतीक कहा है। उसने सभी पी लिया, कुछ भी छोड़ा नहीं-सभी किरणों को पी गया। तो जितना भोगी आदमी होगा, उतनी कृष्ण-लेश्या में डूबा हुआ होगा। जितना त्यागी व्यक्ति होगा, उतना ही कृष्ण-लेश्या से दूर उठने लगेगा। दान और त्याग की इतनी महिमा लेश्याओं को बदलने का एक प्रयोग है। जब आप कछ देते हैं किसी को. आपकी लेश्या तत्क्षण बदलती है। लेकिन जैसा मैंने कहा कि अगर आप व्यर्थ चीज देते हैं तो लेश्या नहीं बदल सकती । कुछ सार्थक, जो प्रतिकर है, जो आपके हित का था और काम का था, और दूसरे के भी काम पड़ेगा-जब भी आप ऐसा कुछ देते हैं, आपकी लेश्या तत्क्षण परिवर्तित होती है। क्योंकि आप शुभ्र की तरफ बढ़ रहे हैं, कुछ छोड़ रहे हैं। ___ महावीर ने अंत में वस्त्र भी छोड़ दिये, सब छोड़ दिया । उस सब छोड़ने का केवल अर्थ इतना ही है कि कोई पकड़ न रही । और जब कोई पकड़ नहीं रहती तो श्वेत, शुक्ल, शुभ्र-लेश्या का जन्म होता है। वह अंतिम लेश्या है; उसके पार लेश्याएं नहीं हैं। यह सघनतम लेश्या है, काली। तो काली निम्नतम स्थिति है, और शुभ्र श्रेष्ठतम स्थिति है। कृष्ण लेश्या पहली लेश्या...। 'नील' दसरी लेश्या है। जो व्यक्ति अपने को भी हानि पहंचाकर दूसरे को हानि पहुंचाने में रस लेता है, वह कृष्ण-लेश्या में डूबा है। जो व्यक्ति अपने को हानि न पहुंचाकर दूसरे को हानि पहुंचाने की चेष्टा करता है, वह नील-लेश्या में डूबा है। जो व्यक्ति अपने को हानि न पहुंचाए, खुद को हानि पहुंचने लगे तो रुक जाये, लेकिन दूसरे को हानि पहुंचाने की चेष्टा करे, वैसा व्यक्ति नील-लेश्या में है। नील लेश्या कृष्ण लेश्या से बेहतर है। थोड़ा हल्का हुआ कालापन, थोड़ा नीला हुआ । जो लोग निहित स्वार्थ में जीते हैं... यह जो पहला आदमी-जिसके बारे में मैंने कहा कि मेरी एक आंख फूट जाये—यह तो स्वार्थी नहीं है, यह तो स्वार्थ से भी नीचे गिर गया है। इसको अपनी आंख की फिकर ही नहीं है । इसको दूसरे की दो फोड़ने का रस है। यह तो स्वार्थ से भी नीचे खड़ा है। नील लेश्यावाला आदमी वह है, जिसको हम सेल्फिश कहते हैं, जो सदा अपनी चिंता करता है। अगर उसको लाभ होता हो तो आपको हानि पहुंचा सकता है। लेकिन खुद हानि होती हो तो वह आपको हानि पहुंचायेगा। ऐसे ही आदमी को, नील लेश्या के आदमी को हम दंड देकर रोक पाते हैं। पहले आदमी को दंड देकर नहीं रोका जा सकता । जो कृष्ण लेश्यावाला आदमी है, उसको कोई दंड नहीं रोक सकते पाप से क्योंकि उसे फिकर ही नहीं कि मझे क्या होताहै। दसरे को क्या होता है उसका रस...उसको नकसान पहुंचाना । लेकिन नील लेश्या वाले आदमी को पनिशमेंट से रोका जा सकता है। अदालत, पुलिस, भय...कि पकड़ जाऊं, सजा हो जाये तो वह दूसरे को हानि करने से रुक सकता है। __ तो ध्यान रहे, जो अपराधी इतने अदालत-कानून के बाद भी अपराध करते हैं उनके पास निश्चित ही कृष्ण लेश्या पाई जायेगी। और आप अगर डरते हैं अपराध करने से कि नुकसान न पहुंच जाये। और आप देख लेते हैं कि पुलिसवाला रास्ते पर खड़ा है, तो रुक जाते हैं लाल लाइट देखकर । कोई पुलिसवाला नहीं है—नील लेश्या-कोई डर नहीं है, कोई नुकसान हो नहीं सकता है। निकल जाओ, एक सेकेंड की बात है। ___ मैंने सुना है, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन अपने मित्र के साथ कार से जा रहा था। मित्र कार को भगाये लिये जा रहा है। आखिर मोटर-साईकल पर चढ़ा हुआ एक पुलिस का आदमी पीछा कर रहा है। जोर से साइरन बजा रहा है, लेकिन वह आदमी सुनता नहीं है। 281 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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