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________________ महावीर वाणी भाग 2 भी है, उनका कहा हुआ भी पक्षपातपूर्ण मालूम पड़ता है। वह उनकी दृष्टि है, उससे स्त्री की बात जाहिर नहीं होती । बड़ी प्रसिद्ध घटना है : चेखव ने खुद लिखा कि चेखव खुद, टालस्टाय और गोर्की- - रूस के तीन महालेखक, एक पार्क की बेंच पर बैठकर बात कर रहे हैं। बात स्त्री पर पहुंच गई। पुरुषों की बात अकसर ही स्त्री पर पहुंच जायेगी, और बात करने को कुछ है भी नहीं । टालस्टाय बिलकुल बूढ़ा हो चुका था, लेकिन तब तक उसने स्त्रियों के बाबत कोई वक्तव्य नहीं दिया था। तो चेखव और गोर्की ने उससे कहा कि 'तुम कुछ कहो ।' उसने कहा कि 'मैं कहूंगा, लेकिन जब मेरा एक पैर कब्र में हो और एक बाहर, तब मैं कहकर एकदम-से कब्र में चला जाऊंगा! क्योंकि अगर मैं सत्य कहूं तो अभी भी स्त्रियों से मैं जुड़ा हूं, वे मेरी जान ले लेंगी, और असत्य मैं कहना नहीं चाहता!" लेकिन बायोएनर्जी की खोज से एक नई बात पता चली है, और वह यह कि जैसे ही स्त्री की माहवारी शुरू होती है, उसके शरीर का विद्युत-प्रवाह प्रति दस मिनट में सिकुड़ता है, कन्ट्रैक्ट होता है । और यह चलता है तब तक, जब तक कि माहवारी बंद नहीं हो जाती, पैंतालीस-पचास साल तक । प्रति दस मिनिट में स्त्री को भी पता नहीं चलता कि उसके पूरे शरीर की विद्युत सिकुड़ती है, फिर फैलती है, फिर सिकुड़ती है, फिर फैलती है। इस हर दस मिनट के परिवर्तन के कारण उसका चित्त हर दस मिनट में परिवर्तित होता है। और यह जो संकुचन है, फैलाव है, यह बच्चे के लिए जरूरी है। बच्चे के विकास के लिए जरूरी है। जब बच्चा उनके गर्भ में होता है तो यह संकुचित होना, फैलना बच्चे को एक तरह का आन्तरिक व्यायाम देता है। एक एक्सरसाइज देता है, इससे बच्चा बढ़ता है। इसलिए माहवारी शुरू होने और माहवारी अंत होने के बीच, तीस साल पैंतीस साल, स्त्री का शरीर दस मिनट में एक झंझावात से गुजरता । और यह झंझावात उसके चित्त को प्रभावित करता है । इसलिए जब स्त्री बहुत परेशान हो तो आप परेशान न हों; थोड़ी देर रुकें, थोड़ी देर प्रतीक्षा करें; वह झंझावात वैद्युतिक है । और स्त्री को भी अगर खयाल में आ जाये, तो वह उस झंझावात से परेशान न होकर उसकी साक्षी हो सकती है। पुरुष के शरीर में ऐसा कोई झंझावात नहीं है। इसलिए पुरुष ज्यादा तर्कयुक्त मालूम होता है। एक सीमा होती है उसकी बंधी हुई । उसके बाबत भविष्यवाणी हो सकती है कि वह क्या करेगा। उसके भीतर कोई झंझावात नहीं चल रहा है। विद्युत की एक सीधी धारा है। इस विद्युत की सीधी धारा के कारण उसके चित्त की लेश्याओं का ढंग सीधा-साफ है। स्त्री की चित्त की लेश्याएं ज्यादा बड़ी तरंगें लेंगी, क्योंकि विद्युत सिकुड़ेगी, फैलेगी, सिकुड़ेगी, फैलेगी यह संकोच और फैलाव स्त्री को प्रतिपल झंझावात में और तरंगों में रखता है । महावीर ने रंग के आधार पर विश्लेषण किया, शायद वही एकमात्र रास्ता हो सकता है। जब भी चित्त में कोई वृत्ति होती है तो उसके चेहरे के आस-पास उसके रंग-आभा आ जाती है। आपको दिखाई नहीं पड़ती। छोटे बच्चों को ज्यादा प्रतीत होती है। आपको भी दिखाई पड़ सकती है, अगर आप थोड़े सरल हो जायें। जब कोई व्यक्ति सच में साधु-चित्त हो जाता है, तो वह आपकी आभा से ही आपको नापता है; आप क्या कहते हैं, उससे नहीं। वह आपको नहीं देखता, आपकी आभा को देखता है । अब एक आदमी आ रहा है। उसके आस-पास कृष्ण - आभा है, काला रूप है चारों तरफ; उसके चेहरे के आस-पास एक पर्त है काली, तो वह कितनी ही शुभ्रता की बातें करे, वे व्यर्थ हैं, क्योंकि वह काली पर्त असली खबर दे रही है। अब तो सूक्ष्म कैमरे विकसित हो गये हैं, जिनसे उसका चित्र भी लिया जा सकता है। वह चित्र बतायेगा कि आपकी क्या भीतरी अवस्था चल रही है। और यह आभा प्रतिपल बदलती रहती है । महावीर, बुद्ध, कृष्ण और राम, और क्राइस्ट के आस-पास, सारी दुनिया के संतों के आस-पास हमने उनके चेहरे के आसपास एक प्रभा-मंडल बनाया है। हमारे कितने ही भेद हों - ईसाई में, मुसलमान में, हिन्दू में, जैन में, बौद्ध में - एक मामले में हमारा भेद नहीं Jain Education International 278 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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