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________________ छह लेश्याएं : चेतना में उठी लहरें कपड़े पहनाना बिलकुल नासमझी की बात है, क्योंकि चुस्त कपड़े का काम नहीं साधु के लिए, इसलिये साधु निरंतर ढीले कपड़े चुनेगा, जो शरीर को छूते भर हैं, बांधते नहीं। आपको खयाल में नहीं होगा कि बहुत छोटी-छोटी बातें आपके जीवन को संचालित करती हैं, क्योंकि चित्त क्षुद्र चीजों से ही बना हुआ है । अगर आप चुस्त कपड़े पहने हुए हैं तो आप दो-दो सीढ़ियां चढ़ने लगते हैं, एक साथ। अगर आप ढीले कपड़े पहने हुए हैं तो आपकी चाल शाही होती है, एक सीढ़ी भी आप मुश्किल से एक दफे में चढ़ते हैं। चुस्त कपड़े पहनकर आप में गति आ जाती है; ढीले कपड़े पहनकर एक सौम्यता आ जाती है, गति खो जाती है। आप जो रंग चनते हैं, वह भी खबर देता है आपके चित्त की। क्योंकि चनाव अकारण नहीं है. चित्त चन रहा है। महावीर ने रंग के आधार पर चित्त की तरगों के छह विभाजन किये हैं। तीन को महावीर कहते हैं, 'अधर्म-लेश्याएं', जिनसे मनुष्य पतित होता है। और तीन को महावीर कहते हैं, 'धर्म-लेश्याएं', जिनसे मनुष्य शुद्ध होता है, पवित्र होता है। __ पहली लेश्या को महावीर कहते हैं, 'कृष्ण'-काली, दूसरी लेश्या को 'नील'-नीली । तीसरी लेश्या को 'कापोत'-कबूतर के कंठ के रंग की, चौथी लेश्या को 'तेज'–अग्नि के रंग की, सुर्ख लाल, पांचवीं को 'पदम'-पीत, पीली, छठवीं को 'शुक्ल'-शुभ्र, सफेद । ये छह लेश्याएं हैं। इनमें प्रथम तीन 'अधर्म-लेश्याएं' हैं और अंतिम तीन धर्म-लेश्याएं हैं। रंग से चुनने का कारण यह है कि जब आपके चित्त में एक वृत्ति होती है तो आपके चेहरे के आसपास एक ऑरा, एक प्रभामंडल निर्मित होता है। इस प्रभामंडल के अब तो चित्र भी लिए जा सकते हैं। आपके प्रभामंडल का चित्र भी कह सकता है कि आपके भीतर क्या चल रहा है? कारण हैं, क्योंकि आपका पूरा शरीर विद्युत का एक प्रवाह है। आपको शायद खयाल न हो कि पूरा शरीर वैद्युतिक यंत्र है। __ स्केंडेनेविया में ऐसा हुआ, कोई छह-सात वर्ष पहले, कि एक स्त्री छत से गिर पड़ी और उसके शरीर की वैद्युतिक-व्यवस्था गड़बड़ हो गई, शार्ट-सर्किट हो गई। तो वह स्त्री जिसको छुए उसे शाक लगने लगे। उसके पति ने अदालत में तलाक के लिए अर्जी दी, क्योंकि उस स्त्री के पास ही जाना कठिन हो गया । उसको छूते से ही शाक लगेगा। और जब उस स्त्री के वैज्ञानिक परीक्षण किये गये तो बड़ी आश्चर्य की बात हई. उस स्त्री के हाथ में पांच कैंडल का बल्ब रखकर जलाया जा सकता था। जो विद्युत वर्तुल की तरह घूमती है शरीर में, वह वर्तुल टूट गया, शार्ट-सर्किट हो गया कहीं। कहीं तार अस्त-व्यस्त हो गये और विद्युत शरीर के बाहर जाने लगी। ऐसे भी विद्युत शरीर के बाहर जाती है, लेकिन उसकी मात्रा बड़ी धीमी होती है। __आप पूरे जीवन विद्युत से जी रहे हैं। सारे जगत का जो मूल आधार है, वह विद्युत-कण है, इलेक्ट्रान है। शरीर भी उसी पदार्थ से बना है। और सारे शरीर की यात्रा विद्युत की यात्रा है। अभी स्त्रियों के संबंध में एक खोज पूरी हुई है। उस खोज ने स्त्रियों के मन के संबंध में बड़ी गहरी बातें साफ कर दी हैं, जो अब तक साफ नहीं थी। लेकिन खोज विद्युत की है। मनोवैज्ञानिक जिसे साफ नहीं कर पाता था। हजारों साल से स्त्री एक समस्या रही है। वह किस तरह का व्यवहार करेगी किस क्षण में, अनिश्चित है। स्त्री अनप्रिडिक्टेबल है, उसकी कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। ज्योतिषी उससे बुरी तरह हार चुके हैं। अभी क्षणभर को प्रसन्न दिखाई पड़ रही थी, क्षणभर बाद एकदम अप्रसन्न हो जायेगी और पुरुष के तर्क में बिलकुल नहीं आता कि कोई कारण उपस्थित नहीं हुआ, वह क्षणभर पहले बड़ी भली चंगी, आनंदित थी, और क्षणभर बाद दुखी हो गई! और आंसू बहने लगे, छाती पीटकर रोने लगी! बड़ी बेबूझ मालूम होती है! फ्रायड ने चालीस साल अध्ययन के बाद कहा कि स्त्री के संबंध में कुछ कहने की संभावना नहीं है। और जिन लोगों ने कुछ कहा 277 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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