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महावीर-वाणी भाग : 2
एडोल्फ हिटलर कहा करता था : किसी भी असत्य को बार-बार दुहराते चले जाओ, सुननेवाले की फिकर मत करो, सुनाए चले जाओ, तो आज नहीं कल सुननेवाला भूल जायेगा कि जो कहा जा रहा है, वह असत्य है।
जिन्हें हम सत्य मानकर जानते हैं, उनमें बहुत से इसी तरह के असत्य हैं, जो इतनी बार कहे गये हैं कि आपको खयाल भी नहीं रहा कि वे असत्य हो सकते हैं। और असत्य से कोई अड़चन भी बहुत नहीं आती। सच तो यह है, सत्य से अड़चन आनी शुरू होती है। असत्य बड़ा कन्विनिएन्ट, सुविधापूर्ण है। __फ्रेड्रिक नीत्शे ने तो बड़ी अनूठी बात कही है। उसने कहा यह है कि जैसे-जैसे मनुष्य के जीवन में सत्य आयेगा, वैसे-वैसे मनुष्य को जीवन में कठिनाई होगी; क्योंकि मनुष्य जीता ही असत्य के सहारे है । वह उसका पोषण है।
नीत्शे ने यह भी कहा है : इसलिए किसी के असत्य मत तोड़ो। उसको बेचैनी मत दो; उसको कष्ट मत दो। और अगर तुमने तोड़ भी दिये उसके असत्य, तो वह नये असत्य गढ़ लेगा। और नये असत्यों की बजाय पुराने असत्य ज्यादा सुविधापूर्ण होते हैं, क्योंकि उन्हें गढ़ना नहीं पड़ता। और वे हमें वसीयत में मिलते हैं, सुनकर मिलते हैं। उन पर भरोसा मजबूत होता है। ___ आज दुनिया में जो बेचैनी है, नीत्शे का कहना यही है कि यह बेचैनी इसी कारण है कि पुराने सत्य सब असत्य मालूम होने लगे हैं, जैसे कि वे थे। सब असत्य प्रगट हो गए, और नये असत्य खोजना बड़ा कठिन हो रहा है। और आदमी बड़ी दुविधा में पड़ गया है। नीत्शे की बात में थोड़ी सचाई है। जैसा आदमी है-रुग्ण, विक्षिप्त, वह असत्य के सहारे ही जीता है। लेकिन अगर उसे पता चल जाये कि यह असत्य है, तो कठिनाई शुरू हो जाती है। असत्य के सहारे वह जीता है तभी तक, जब तक उसे लगता है, ये असत्य सत्य हैं—तब तक बड़ी शांति होती है।
ध्यान रहे, अगर आप संतोष की खोज कर रहे हैं, सिर्फ बेचैनी से बचना चाहते हैं, तो असत्य भी काम दे सकते हैं। लेकिन अगर आप मुक्ति की खोज कर रहे हैं, तो असत्य काम नहीं दे सकते। चाहे फिर सत्य कितना ही पीड़ादायी हो, उसके अनुभव को उपलब्ध होना ही पड़ेगा।
श्रुत-ज्ञान निन्यानबे प्रतिशत असत्य है; क्योंकि जिनसे हम सुनते हैं, उनका जीवन असत्य है । लेकिन परखा हुआ है वह असत्य ज्ञान। हजारों साल से काम दे रहा है ! .... इसे हम ऐसा समझें :
आप एक स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं। तो आप उस स्त्री को कहते हैं कि 'बस तेरे अतिरिक्त इस जगत में न तो कोई सुंदर है, न कोई प्रेम का पात्र है । बस, तेरे अतिरिक्त मेरे लिए कोई भी नहीं है। क्योंकि यही बात आप पहले दूसरी स्त्रियों से भी कह चुके हैं। और आप भी जानते हैं कि यह सत्य नहीं है। और यह भी आप जानते हैं, अगर थोड़ी खोज करेंगे तो यही बात आप और स्त्रियों से भी कहेंगे, क्योंकि अभी जीवन का अंत नहीं हो गया है। लेकिन यह असत्य बड़ा मधुर है, और कहने में बड़ा उपयोगी है। और वह स्त्री भी जानती है कि यह बात बिलकुल सही तो नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी इस पर भरोसा करती है; क्योंकि सुनने में यह प्रीतिकर है। और इस असत्य के सहारे आपका प्रेम खड़ा होता है। यह प्रेम कितनी देर चल सकता है?
और जब यह प्रेम टूटता है, तो आप यह नहीं देखते कि हमने एक असत्य के सहारे इसको खड़ा किया था। आप समझते हैं कि 'जो पात्र हमने चुना था, वह ही गलत था । बात तो हमने जो कही थी, वह ठीक थी, लेकिन व्यक्ति जो हमने चुना वह गलत था । हम अब दूसरे व्यक्ति को चुनकर वही ठीक बात फिर से कहेंगे।'
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