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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 वह आपको अछूता नहीं छोड़ेगा। वह आपके भीतर जा रहा है, तो आस्रव हो रहा है। कुछ भी कचरा भीतर जा रहा है। 'पनामा सरस सिगरेट छे'-उसको भी पढ़े जा रहे हैं। उसको भीतर लिए जा रहे हैं। वह भरता जा रहा है। वह काम करेगा, क्योंकि आस्रव हो रहा है। और जब आप पढ़ रहे हैं, तो आपकी ऊर्जा बाहर जा रही है, आपकी चेतना बाहर जा रही है, आपकी शक्ति बाहर जा रही है। छोटे से कृत्य में भी शक्ति का अपव्यय हो रहा है। इसलिए महावीर कहते हैं कि जमीन पर चार कदम देखकर साधु चले। ज्यादा देखने की जरूरत नहीं है, चार कदम काफी है। जब चार कदम चल लेंगे, तो आंखें चार कदम और देख लेगीं। पर जमीन पर देख कर चलें, कई कारणों से : जमीन पर जब आप देखकर चलते हैं, आप हैरान होंगे आपकी आंखें थकेंगी नहीं। और कहीं भी आप देखकर चलेंगे तो आंखें थकेंगी, क्योंकि जमीन हमारी जीवन-दात्री है, वहां से हम पैदा हुए हैं। शरीर भी एक वृक्ष है, जो जमीन से पैदा हुआ है। मिट्टी इसके कण-कण में है। जब आप जमीन पर देखकर चलते हैं, तो जो ऊर्जा जमीन पर जा रही है, वह वापस लौट आती है, द्विगुणित होकर वापिस लौट आती है। जब आप घास पर देखकर चलते हैं, तो ऊर्जा वापिस लौट आती है। आदमी के कृत्यों को देखकर मत चलें, और आदमी को मत देखें। आदमी से थोड़ा बचें। आदमी खतरनाक है। उसकी छोटी-छोटी बात भी आपको बाहर ले जा रही है। लेकिन हम ऊर्जा नष्ट करने में लगे हैं। हमें संवरित करने का खयाल ही नहीं है। संवर का सुख हमें पता नहीं है। महावीर कहते हैं कि संवर का एक सुख है । शुद्ध ऊर्जा जब भीतर होती है, आप कुछ उसका उपयोग नहीं करते, सिर्फ ऊर्जा होती है, ऊर्जा उबलती है, ऊर्जा नाचती है, कोई उपयोग नहीं करते, सिर्फ शक्ति का शुद्ध आनंद-संवर है । और जो व्यक्ति आस्रव से बचे और संवर करे अपनी ऊर्जा का-वह शक्तिशाली होता चला जायेगा। उसके पास वीर्य होगा; उसके पास पुरुषार्थ होगा; उसके पास साहस होगा। अगर वह आदमी आपकी आंख में आंख डाल देगा, तो आपके भीतर कुछ हिल जायेगा। लेकिन आपकी आंख तो खर्च हो चुकी है। वह वैसे ही है, जैसे चला हआ कारतस होता है। उससे आप किसी को देखें भी, तो कहीं उसके भीतर कुछ नहीं होता। आप एक प्रयोग करें। एक सात दिन तक सिर्फ जमीन पर देखकर चलें और सात दिन बाद जरा किसी की तरफ देखें। अनूठा अनुभव होगा। अगर सात दिन आप जमीन पर देखकर चलते रहे हैं और फिर कोई आदमी जा रहा हो आपके सामने, तो सिर्फ उसके सिर के पीछे दोनों आंखें गड़ाकर कहें कि 'पीछे लौटकर देख', तो वह आदमी उसी वक्त लौटकर देखेगा। अब आपके पास शक्ति है। करने की जरूरत नहीं है, एकाध ऐसा प्रयोग करके देख लेना। करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसमें भी शक्ति-ऊर्जा नष्ट हो रही है। अगर महावीर जैसे व्यक्तियों के पास लोग जाकर सम्मोहित हो जाते हैं, तो ऐसा नहीं है कि महावीर सम्मोहित कर रहे हैं। महावीर का क्या प्रयोजन हो सकता है? लेकिन महावीर इतनी ऊर्जा से भरे हैं कि स्वभावतः उस विराट ऊर्जा की तरफ आप चुम्बक की तरह खिंचे आते हैं। आपको भला लगेगा कि आप सम्मोहित हो गये, हिप्नोटाइज हो गये, महावीर ने कुछ खींच लिया, महावीर खींच नहीं रहे हैं। लेकिन संवरित ऊर्जा आकर्षित करती है, मैगनेटिक हो जाती है। 'निर्जरा' और 'मोक्ष'। निर्जरा महावीर का विशेष शब्द है और बड़ा बहुमूल्य शब्द है। निर्जरा का अर्थ है, वे जो हमने जन्मों-जन्मों में कर्म इकट्ठे किए हैं, वे जो हमने जन्मों-जन्मों में बंध किये हैं, पाप किये हैं, पुण्य किए हैं, वे हमारे चारों तरफ इकट्ठे हैं, जैसे धूल-कोई यात्री चले रास्ते पर और धूल इकट्ठी हो जाए वस्त्रों पर । वस्त्रों से धूल को झाड़ दें, उस धूल के झड़ जाने का नाम निर्जरा है। निर्जरा का अर्थ है, वह जो हमने जन्मों-जन्मों में इकट्ठा किया है, वह सब झड़ जाये, हम फिर से खाली हो जायें, शून्य हो जायें । निर्जरा का अर्थ है, हमने जो संग्रह किया है, वह सब झड़ जाए। बड़े सूक्ष्म संग्रह हैं हमारे : हमारा ज्ञान , हमारी स्मृति, हमारे कर्म, हमारे जन्मों 220 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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