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आत्मा का लक्षण है ज्ञान
-जन्मों के संस्कार, वे सब इकट्ठे हैं। निर्जरा में वे गिरने शुरू हो जाते हैं। निर्जरा की प्रक्रिया ही महावीर का योग है, कि वे कैसे गिरें? ___ आस्रव बदलें । गलत के द्वार को खुला न रखें, शक्ति को व्यर्थ मत जाने दें; जब जरूरी हो तभी जाने दें; संवर करें। और भी बहुत इकट्ठा है, पुराना इकट्ठा है। नया इकट्ठा होना बंद हो जायेगा, अगर आस्रव और संवर का ध्यान रहे । लेकिन जो पुराना रखा है, उसके प्रति साक्षी का भाव रखें; उसे सिर्फ देखें, उसे शक्ति मत दें। __ एक आदमी आपको गाली देता है । जैसे ही वह गाली देता है, आपको भी गाली देने की इच्छा होती है। इस इच्छा को देखें, यह इच्छा पुरानी आदत है। यह पुराना संस्कार है। जब जब आपको गाली दी गई है, आपने भी गाली दी है। यह सिर्फ उसकी लकीर है। इसे देखें, इसे काम मत करने दें। क्योंकि अगर आप गाली दे रहे हैं, तो आप ऊर्जा भी बाहर भेज रहे हैं। फिर नया संस्कार बन रहा है, फिर नया कर्म बन रहा है। ___ महावीर एक जंगल में खड़े हैं। एक ग्वाला आया और उसने कहा कि 'मैं जरा जल्दी में हूं, मेरी गायें यह बैठी हैं यहां, तुम जरा ध्यान रखना।' उस ग्वाले को यह पता नहीं है कि वे मौन में हैं। और उन्होंने सुना भी नहीं, उन्होंने 'हां-हूं' कुछ भी नहीं कहा । ग्वाला जल्दी में था, जल्दी चला गया। सांझ को लौटकर जब वह आया, तो महावीर वहीं मौन खड़े थे। उन्होंने ‘हां-ना' कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने 'हां-ना' कहना तो बंद कर दिया था। उन्होंने तो बाहर के सब संबंध शिथिल कर दिये थे, सब सेतु तोड़ डाले थे। गायें अपने-आप उठकर जंगल की तरफ चली गई थीं। वह ग्वाला आया और उसने देखा कि गायें वहां नहीं हैं। उसने पूछा, 'कहां हैं मेरी गायें?' महावीर को चुपचाप खड़ा देखकर उसने समझा कि आदमी चालबाज है। बताता क्यों नहीं है कि मेरी गायें कहां हैं? जब महावीर चुपचाप ही खड़े रहे, तो उसने सोचा कि 'हो सकता है, यह आदमी पागल हो! किस तरह का आदमी है? न आंख खोलता है, न बोलता है! मैंने गलत आदमी से कह दिया। तो वह गया जंगल में अपनी गायों को खोजने । वह जब गायों को जंगल में खोज रहा था, तब गायें जंगल से चरकर सांझ हो जाने के कारण वापस लौट आई थीं। जब वह आदमी लौटकर आया, तो उसने देखा कि गायें महावीर के पास इकट्ठी हैं। उसने सोचा कि 'यह आदमी तो गायों को लेकर भागने का इरादा रखता है। इसने पहले गायें छिपा दी थी और अब गायें निकाल ली हैं। अब अंधेरा हुआ, अब यह गायें लेकर भाग जाता। तो उसने उनकी अच्छी पिटाई की, और उनको बोलते-सुनते न देखकर उसने कहा, 'क्या तुम बहरे हो?' और उसे इतना गुस्सा आया कि उसने दो लकड़ियां उठाकर उनके कान में ठोक दी। महावीर सब देखते रहे। वह आदमी चला गया। ___ बड़ी प्यारी कथा है कि इंद्र को पीड़ा हुई । शुभ को पीड़ा होगी ही, इतना ही मतलब है। दिव्य जो है, उसको पीड़ा होगी ही, किसी
को अकारण सताये जाने पर । तो कथा है कि इंद्र आया, और उसने महावीर के अंतस्तल में, क्योंकि ऊपर से तो वे चुप थे, कहा कि 'दुख होता है, अकारण आपको सताया गया।' महावीर ने भीतर कहा कि 'अकारण कुछ भी नहीं होता है, मैंने कभी न कभी कुछ किया होगा, यह उसका फल है। अच्छा हुआ, निर्जरा हो गई; एक संबंध छूटा, एक झंझट मिटी। उस आदमी को जो करना था, वह कर गया।' इंद्र ने कहा कि 'हमें कुछ कहें, हम कुछ इंतजाम करें, कोई प्रतिबंध करें।' तो महावीर ने कहा, 'तुम कुछ मत करो । क्योंकि मैं तुमसे कुछ भी करने को कहूं , तो वह कहना एक नया बंध हो जाएगा-एक नया कर्म । फिर मुझे उससे भी निबटना पड़ेगा। तुम मुझे छोड़ो । पुराना लेन-देन चुक जाये, इतना काफी है। मुझे कोई नया लेन-देन शुरू नहीं करना है; मैं व्यापार सिकोड़ रहा हूं, समेट रहा हूं। __ निर्जरा का अर्थ है : वह जो पुराना लेन-देन है, वह चुक जाये । जब कोई गाली दे, तो उसे देख लेना । ताकि जो पुराना लेन-देन है, वह चक जाये। धीरे-धीरे एक क्षण आता है, जब सब संस्कार झर जाते हैं। ऐसी निर्जरा की अवस्था के परे होने पर जो बच रहता है वह मोक्ष है, वह मुक्त अवस्था है-जहां चेतना पर कोई भी बंधन नहीं, कोई भी बोझ नहीं, कोई कन्डीशनिंग नहीं, कोई संस्कार नहीं।
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