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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 यह बेहतर है।' ___ मैं एक कालेज में शिक्षक था। और एक युवती ने मुझसे आकर कहा कि एक युवक उसे कभी चिट्ठियां फेंकता है लिखकर, कभी कंकड़ मारता है।' वह बहुत नाराज थी। मैंने उससे कहा, 'तू बैठ, और तू इस तरह सोच कि तू छह साल कालेज में रहे, कोई कंकड़ न मारे, कोई चिट्ठी न फेंके, फिर क्या हो?' वह थोड़ी बेचैन हो गई। उसने कहा कि 'आप किस तरह की बातें करते हैं, वह ज्यादा दुखद होगा। तो मैंने कहा, 'फिर फेंकने दे चिट्ठी। और तू जो यहां कहने आई है उसमें सिर्फ तेरा क्रोध ही नहीं, तेरा गौरव और गरिमा भी मालूम हो रही है, तेरे चेहरे पर शान भी है कि कोई पत्थर मारता है, कोई चिट्ठी फेंकता है। तू फिर से सोचकर, इस पर ध्यान करके आना कि तू इसका रस भी ले रही है या नहीं ले रही है? क्योंकि मैं उन लड़कियों को भी जानता हूं, जिनकी तरफ कोई नहीं देख रहा है, तो वे परेशान सुना है मैंने कि एक स्त्री ने-जो पचास साल की हो गई और विवाह नहीं कर पाई, क्योंकि कोई बांधने नहीं आया, कोई बंधने नहीं आया-एक दिन सुबह-सुबह फायर ब्रिगेड को फोन किया, बड़ी घबराहट में कि 'दो जवान आदमी मेरी खिड़की में घुसने की कोशिश कर रहे हैं, शीघ्रता करें ।' तो फायर ब्रिगेड के लोगों ने कहा कि 'क्षमा करें, आपसे भूल हो गई, यह तो फायर डिपार्टमेंट है, आप पुलिस स्टेशन को खबर करें।' उस स्त्री ने कहा कि, 'पुलिस स्टेशन से मुझे मतलब नहीं. मझे फायर डिपार्टमेंट से ही मतलब है। तो उन्होंने पूछा कि क्या मतलब है? हम क्या कर सकते हैं?' उस स्त्री ने कहा कि 'बड़ी सीढ़ी ले आएं, वे लोग छोटी सीढ़ी से घुसने की कोशिश कर रहे हैं। बड़ी सीढ़ी की जरूरत है।' पचास साल जिसे किसी ने कंकड़ न मारा हो, चिट्ठी न लिखी हो, उसकी हालत ऐसी हो ही जायेगी। आदमी बंधने के लिए आतुर है। न बंधे तो मुसीबत में पड़ता है। लगता है मैं बेकार हूं, मेरे जीवन का कोई अर्थ नहीं है। बांध ले कोई तो लगता है कि बंधन हो गया, कैसे छुटकारा हो? आदमी एक उलझन है, और उलझन का कारण यह है कि वह चीजों को साफ-साफ नहीं समझ पाता कि क्या, क्या है? ___ पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि बंध हमारे भीतर एक तत्व है, हम बंधना चाहते हैं। और जब तक हम बंधना चाहते हैं तब तक दुनिया में कोई भी हमें मुक्त नहीं कर सकता। __ मजे की बात यह है कि हम अगर बंधना चाहते हैं, तो जो हमें मुक्त करने आयेगा, हम उसी से बंध जायेंगे; महावीर से बंधे हुए लोग हैं। वह बंध-तत्व काम कर रहा है । वे कह रहे हैं कि हम जैन हैं। आपके जैन होने का क्या मतलब है? महावीर को मरे पच्चीस सौ साल हो गये, आप क्यों पीछा कर रहे हैं? ___ इधर मैं देखता हूं, जब मैं महावीर पर बोलता हूं तो दूसरी शक्लें दिखाई पड़ती हैं, जब मैं लाओत्से पर बोलता हूं, दूसरी शक्लें दिखाई पड़ती हैं। लाओत्से से आपका कोई बंधन नहीं है, बंध-तत्व महावीर से लगता है । तब आप दिखाई नहीं पड़ते, आपका कोई रस नहीं है लाओत्से में । आप वहीं दिखाई पड़ते हैं, जहां आपका बंध है। जहां आपकी गर्दन बंधी है, वहां आप चले जाते हैं । गुलाम हैं। ___ महावीर आपको मुक्त करना चाहते हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। महावीर क्या करेंगे, आप बंधना चाहते हैं। महावीर कहते हैं, अपने पैर पर खड़े हो जाओ। आप कहते हैं, 'आप ही हमारी शरण हैं । महावीर कहते हैं, कोई किसी का सहारा नहीं, कोई किसी का आसरा नहीं, आप कहते हैं कि आपके बिना यह भव-सागर से कैसे पार हों?' और वे कह रहे हैं कि हमारे ही कारण डूब रहे हो भव-सागर में। दूसरे के कारण आदमी डूबता है, अपने कारण उबरता है। कोई गुरु उबार नहीं सकता। लेकिन आपने डूबना पक्का कर रखा है। 214 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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