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________________ आत्मा का लक्षण है ज्ञान आपकी पूरी चेष्टा यही है कि किसी तरह डूब जायें। इस भीतर के तत्व को ठीक से समझ लेना जरूरी है। और जब तक बंध की वृत्ति काम कर रही है, तब तक मोक्ष से आपका कोई संपर्क नहीं हो सकता, मुक्ति की हवा भी आपको नहीं लग सकती। आप पहचानें इस मानसिक बात को कि आप जहां भी जाते हैं, वहां जल्दी से बंधने को आतुर हो जाते हैं। स्वतंत्र रहना कष्टपूर्ण मालूम पड़ता है, मुक्त रहना कष्टपूर्ण मालूम पड़ता है, क्यों? क्योंकि अकेले रहना कष्टपूर्ण मालूम पड़ता है। अकेले में आप बैठ नहीं पाते-अखबार खोल लेते हैं, किताब खोल लेते हैं, रेडिओ खोल लेते हैं, टेलिविजन-कोई नहीं मिलता, तो होटल, क्लब, रोटरी, लायंस; सब इंतजाम हैं, वहां भागे जाते हैं, क्यों? थोड़ी देर अकेले होने में इतनी अड़चन क्या है? अपने साथ होने में इतना दुख क्या है? दूसरे का साथ क्यों इतना जरूरी है? __ अकेले में डर लगता है, भय लगता है। अकेले में जीवन की सारी समस्या सामने खड़ी हो जाती है। अगर ज्यादा देर अकेले रहेंगे तो सवाल उठेगा, 'मैं कौन हूं?' भीड़ में रहते हैं तो पता रहता है कि कौन हैं क्योंकि भीड़ याद दिलाती रहती है—आपका नाम, आपका गांव, आपका घर, आपका पेशा-भीड़ याद दिलाती रहती है। अकेले में भीड़ याद नहीं दिलाती। ___ और भीड़ के दिये हुए जितने लेबल हैं, वे भीड़ के साथ ही छूट जाते हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, जो व्यक्ति बंधन से मुक्त होना चाहता है, उसे एकांत में रस लेना चाहिए, अकेले में रस लेना चाहिए, अपने में रस लेना चाहिए। धीरे-धीरे दूसरे की निर्भरता छोड़नी चाहिए। उस जगह आ जाना चाहिए, जहां अगर मैं अकेला हूं तो पर्याप्त हूं। अगर कोई व्यक्ति अकेले में पर्याप्त है, तो बंधन का तत्व गिर गया । अगर कोई अकेले में पर्याप्त नहीं है, वह बंधेगा ही, वह खोजेगा ही कुछ न कुछ। उसे कोई न के पटारा चाहिए। तब एक सविधा है कि जब दूसरा हमें इबाता है, तो हम दोष दूसरे को दे सकते हैं, दूसरे में दोष दिखाई पड़ते हैं। लेकिन हम दूसरे की तलाश क्यों करते हैं? और जब आप एक गलत आदमी से मैत्री बना लेते हैं, या विवाह कर लेते हैं एक गलत स्त्री से, तो आप सोचते हैं -गलती हो गई, गलत स्त्री से विवाह कर लिया। आपको पता नहीं है कि आप गलत स्त्री से ही विवाह कर सकते हैं। ठीक स्त्री की आप तलाश ही न करेंगे। __ मैंने सुना है कि एक आदमी एक बार ठीक स्त्री की तलाश करते-करते अविवाहित मरा । उसने पक्का ही कर लिया था कि जब तक पूर्ण स्त्री न मिले, तब तक मैं विवाह न करूंगा। फिर जब वह बूढ़ा हो गया, नब्बे साल का हो गया, तब किसी ने पूछा कि 'आप जीवन भर तलाश कर रहे हैं पूर्ण स्त्री की, क्या पूर्ण स्त्री मिली ही नहीं इतनी बड़ी पृथ्वी पर?' उसने कहा, 'पहले तो बहुत मुश्किल था, मिली नहीं, फिर मिली भी...।' तो उस आदमी ने पूछा, 'आपने विवाह क्यों नहीं कर लिया?' तो उस आदमी ने कहा कि 'वह भी पूर्ण पुरुष की तलाश कर रही थी। तब हमको पता चला कि यह असंभव है मामला।' वह भी अविवाहित ही मरी होगी, उसका कुछ पता नहीं है। हम जो हैं, उसी को हम खोजते हैं। वही हमें मिल भी सकता है। तो जो भी आपको मिल जाये, वह आपकी ही खोज है, और आपके ही चित्त का दर्शन है उसमें । अगर आपने गलत स्त्री खोज ली है, तो आप गलत स्त्री खोजने में बड़े कुशल हैं। और आप दूसरी स्त्री खोजेंगे तो ऐसी ही गलत स्त्री खोजेंगे। आप अन्यथा नहीं खोज सकते, क्योंकि आप ही खोजेंगे। __ हम जो भी कर रहे हैं अपने चारों तरफ-दुख, चिंता, पीड़ा-वे सब हमारे ही उपाय हैं। और आप चकित होंगे जानकर कि अगर आपके दुख आपसे छीन लिये जायें, तो आप राजी नहीं होंगे। क्योंकि वे आपने खड़े किये हैं। उनका कुछ कारण है। मेरे पास लोग आते हैं, वे ऐसी चिंताएं बताते हैं । मैं उनसे कहता हूं कि आप कहते तो जरूर हैं, लेकिन आप चिंताएं बताते वक्त ऐसे 215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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