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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 तुम्हारे घर में आग लगी है।' नसरुद्दीन ने कपड़ा फेंका, भूल गया अपना कोट उठाना भी, चेहरे पर लगी हुई साबुन, और उस लड़के के पीछे भागा घबड़ाकर । लेकिन पचास कदम के बाद अचानक ठहर गया, और कहा कि 'मैं भी कैसा पागल हूं! क्योंकि पहले तो मेरा नाम शेख नहीं, मेरा नाम मुल्ला नसरुद्दीन है; और दूसरा, मेरा कोई मकान नहीं जिसमें आग लग जाये!' ___ ऐसे क्षण आपके जीवन में भी हैं। आपको भी न तो अपने नाम का पता है और न अपने घर का पता है। न तो आपको पता है कि आप कौन हैं और न आपको पता है कि आप कहां से आते हैं और कहां जाते हैं। न आप अपने मूल स्रोत से परिचित हैं और न अपने अंतिम पड़ाव से और नाम जो आप जानते हैं कि आपका है, वह बिलकुल काम चलाऊ है, दिया हआ है। राम की जगह कृष्ण भी दिया जाता, तो भी चल जाता काम । कृष्ण की जगह मोहम्मद दिया जाता, तो भी चल जाता काम । नाम दिया हुआ है, नाम कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन इस झूठे नाम को हम मानकर जी लेते हैं कि मैं हूं। और एक घर बना लेते हैं, जो कि घर नहीं है । क्योंकि जो छूट जाये, उसे र्थ है। और जिसे बनाना पड़े, वह मिटेगा भी। उस घर की तलाश ही धर्म की खोज है, जो हमारा बनाया हुआ नहीं है और ब तक हम उस घर में प्रविष्ट न हो जायें-जिसे महावीर 'मोक्ष' कहते हैं जिसे शंकर 'ब्रह्म' कहते हैं: जिसे जीसस ने 'किंगडम आफ गाड' कहा है-जब तक उस घर में हम प्रविष्ट न हो जायें तब तक जीवन एक बेचैनी और एक दुख की एक यात्रा रहेगी। महावीर जीव का पहला लक्षण कहते हैं, अनुभव-यह बोध कि 'मैं हूं'। लेकिन यह पहला लक्षण है, यह यात्रा की शुरुआत है। यह भी अनुभव में आ जाये कि 'मैं कौन हूं?' तो यात्रा पूरी हो गई; वह यात्रा का अंत है। 'ज्ञान, दर्शन, चारित्र्य, तप, वीर्य और उपयोग-ये सब जीव के लक्षण हैं।' थोड़ा-थोड़ा इन लक्षणों के संबंध में समझ लें, क्योंकि आगे हम विस्तार से इनकी बात कर पायेंगे। ज्ञान से महावीर का अर्थ है, जानने की क्षमता-सामग्री नहीं, क्षमता; इनफर्मेशन नहीं, सूचनाओं का संग्रह नहीं, क्योंकि सूचनाओं का संग्रह तो यंत्र भी कर सकता है। आप के मस्तिष्क में जो-जो सूचनाएं इकट्ठी हैं, वे तो टेपरिकार्ड पर भी इकट्ठी की जा सकती हैं। और वैज्ञानिक कहते हैं, आपका मस्तिष्क टेपरिकार्ड से कुछ भिन्न नहीं है! इसलिए आपके मस्तिष्क को अगर चोट पहुंचाई जाये, तो आपकी स्मृति खो जायेगी। आपके मस्तिष्क से कुछ स्मृतियां बाहर भी निकाली जा सकती हैं, जिनका आपको फिर कभी भी पता नहीं चलेगा। और आपके मस्तिष्क में ऐसी स्मृतियां भी डाली जा सकती हैं, जिनका आपको कभी कोई अनुभव नहीं हुआ। नवीनतम खोजें कहती हैं कि मेमोरी ट्रांसप्लांट भी की जा सकती है। आइंस्टीन मरता है तो आइंस्टीन के साथ उसकी स्मृतियों का पूरा का पूरा संग्रह भी नष्ट हो जाता है। यह बड़ा भारी नुकसान है। अब विज्ञान कहता है कि दस-बीस वर्ष के भीतर हम इस जगह पहुंच जायेंगे-प्राथमिक प्रयोग सफल हुए हैं-जहां मरते हुए आइंस्टीन को तो मरने देंगे, लेकिन उसकी स्मृति को बचा लेंगे; उसके मस्तिष्क में जो उसकी स्मृतियों का तानाबाना है, उसे बचा लेंगे और एक नवजात बच्चे के ऊपर उसे ट्रांसप्लांट कर देंगे। एक नये बच्चे को उन स्मतियों के साथ जोड देंगे। वह बच्चा स्मतियों के साथ ही बड़ा होगा। और जो उसने कभी नहीं जाना. वह भी उसे लगेगा कि मैं जानता हूं। अगर आइंस्टीन की पत्नी सामने आ जाये तो वह कहेगा, यह मेरी पत्नी है; जिसे उसने कभी देखा भी नहीं। क्योंकि अब स्मृति आइंस्टीन की काम करेगी। छोटे प्रयोग इसमें सफल हो गये हैं, पशओं पर प्रयोग सफल हो गये हैं। इसलिये आदमी पर प्रयोग बहत दर नहीं हैं। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि महावीर पहले व्यक्ति हैं मनुष्य जाति के इतिहास में जिन्होंने स्मृति को पदार्थ कहा, जिन्होंने स्मृति को चेतना नहीं कहा; जिन्होंने कहा, स्मृति भी सूक्ष्म पदार्थ है। 202 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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