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________________ चतना का लक्षण है, उपयोग या अनुभव । अनुभव को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। अस्तित्व तो पदार्थ का भी है। राह पर पड़े हुए पत्थर का भी अस्तित्व है, एग्जिस्टेन्स है, लेकिन उस पत्थर को अपने अस्तित्व का कोई बोध नहीं है, कुछ पता नहीं है, कुछ पता नहीं कि 'मैं हूं'। उसे अनुभव नहीं है। अस्तित्व के बोध का नाम 'अनुभव' है-और वही चैतन्य में और अजीव में, आत्मा में और पदार्थ में भेद है। अस्तित्व दोनों का है-पदार्थ का भी और आत्मा का भी, लेकिन आत्मा के साथ एक नये तत्व का उदभावन है। एक नया आयाम खुलता है कि आत्मा को यह पता भी है कि 'मैं हं'। ___ होने में कोई फर्क नहीं है। पत्थर भी है, आत्मा भी है, पर आत्मा को यह भी पता है कि 'मैं हूं।' और यह बहुत बड़ी घटना है। इस घटना के इर्द-गिर्द ही जीवन की सारी साधना, जीवन की सारी यात्रा है। यह तो पता है कि 'मैं हूं', और जिस दिन यह भी पता चल जाता है कि 'मैं क्या हं'. उस दिन यात्रा परी हो जाती है। पदार्थ है, उसको पता नहीं है कि वह है। आत्मा है, उसको यह भी है, पता है कि 'मैं हूं लेकिन यह पता नही है कि 'मैं कौन हं'। और परमात्मा उस अवस्था का नाम है, जहां तीसरी घटना भी घट जाती है, जहां यह भी पता है कि 'मैं कौन है'। तो अस्तित्व की तीन स्थितियां हुईं : एक कोरा अस्तित्व-बोधहीन; दूसरा भरा हुआ अस्तित्व-अनुभव से; और तीसरा परिपूर्ण विकसित अस्तित्व-जहां यह भी अनुभव हो गया कि " _और ऐसा नहीं कि ये अवस्थाएं पत्थर की, आदमी की और परमात्मा की हैं, आप इन तीनों अवस्थाओं में भी बराबर रूपांतरित रहते हैं। किसी क्षण में आप पत्थर की तरह होते हैं, जहां आप होते हैं और आपको अपने होने का पता नहीं होता । किसी क्षण में आप आदमी की तरह होते हैं, जहां आपको अपने होने का भी बोध है । और किसी क्षण में आप परमात्मा को भी छू लेते हैं, जहां आपको यह भी पता होता है कि हम कौन हैं'। तो ये तीन पदार्थ-अस्तित्व की ही अवस्थायें नहीं हैं-चेतना, इन तीनों में निरंतर डोलती रहती है। किसी-किसी क्षण में आप बिलकुल परमात्मा के करीब होते हैं। कुछ क्षणों में आप मनुष्य होते हैं। बहुत अधिक क्षणों में आप पत्थर ही होते हैं। ___ मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने बाल बनवाने एक नाई की दूकान पर गया है। दाढ़ी पर साबुन लगा दी गई है, गले में कपड़ा बांध दिया गया है-और नाई बिलकुल तैयार ही है काम शुरू करने को कि एक लड़का भागा हुआ आया और उसने कहा- 'शेख, 201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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