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________________ आत्मा का लक्षण है ज्ञान आपके मस्तिष्क को खास जगह अगर इलेक्ट्रिकली स्टिम्युलेट किया जाये, विद्युत से उत्तेजित किया जाये, तो खास स्मृतियां पैदा होनी शुरू हो जाती हैं। जैसे आपके मस्तिष्क में बचपन की स्मृतियां किसी कोने में पड़ी हैं, उनको विद्युत से जगाया जाये, तो आप तत्काल बचपन में वापस चले जायेंगे और सारी स्मृतियां सजीव हो उठेगी। उत्तेजन बंद कर दिया जाये, स्मृति बन्द हो जायेगी। फिर से उत्तेजित किया जाये, फिर से वही स्मृति वापस लौटेगी, फिर से वही कथा वापस दुहरेगी। जैसे टेपरिकार्ड पर आप एक ही बात को कितनी ही बार सुन सकते हैं, हजार बार उसी जगह को उत्तेजित करने पर वही स्मृति फिर लौटने लगेगी। मस्तिष्क शरीर का हिस्सा है, इसलिए स्मृति भी शरीर की ही प्रक्रिया है-आणविक पदार्थ । __ ज्ञान का अर्थ स्मृति नहीं है। ज्ञान का अर्थ, स्मृति को भी जानने वाला जो तत्व है भीतर, उससे है । इसे ठीक से समझ लें, अन्यथा भल होनी आसान है। आप जो जानते हैं, उससे ज्ञान का संबंध नहीं है। अगर आप अपने जानने को भी जानने में समर्थ हो जायें, तो ज्ञान का संबंध शुरू होगा। आपके मन में एक विचार चल रहा है। आप चाहें तो दूर खड़े होकर इस विचार को चलते हुए भी देख सकते हैं। अगर यह संभव न होता, तो ध्यान का कोई उपाय भी न था । ध्यान इसीलिए संभव है कि आप अपने विचार को भी देख सकते हैं। और जिसको आप देख रहे हैं, वह पराया हो गया, वह देखनेवाला आप हो गये। तो महावीर का ज्ञान से अर्थ है-जानने की क्षमता; संग्रह नहीं जानने का, ज्ञान का संग्रह नहीं-ज्ञान की प्रक्रिया के पीछे साक्षी का भाव । वहीं चेतना का पता चलेगा। अन्यथा अगर स्मृति ही मनुष्य की चेतना हो, तो बहुत जल्दी मनुष्य को पैदा किया जा सकेगा। कोई कठिनाई नहीं है। स्मृति तो पैदा की जा सकती है । कम्प्यूटर हैं, उनकी स्मृति आदमी से ज्यादा प्रगाढ़ है। और आदमी से भूल भी हो जाये, कम्प्यूटर से भूल होने की भी कोई संभावना नहीं है। ___ आज नहीं कल, हम मनुष्य से भी बेहतर मस्तिष्क विकसित कर लेंगे। कर ही लिया है। लेकिन, फिर भी एक कमी रह जायेगी, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि कम्प्यूटर ध्यान कर सके । कम्प्यूटर विचार कर सकता है और आप से अच्छा विचार कर सकता है, नवीनतम कम्प्यूटर उस जगह पहुंच गये हैं। मैं एक आंकड़ा पढ़ रहा था कि अगर दुनिया के सारे बड़े गणितज्ञ-समझ लें दस हजार गणितज्ञ-एक सवाल को हल करने में लगें, तो जिस सवाल को दस हजार गणितज्ञ दस हजार वर्ष में हल कर पायेंगे, उसे कम्प्यूटर एक सेकेंड में हल कर दे सकता है। स्मति की क्षमता तो बहत विकसित हो गई है यंत्र के पास । आदमी की स्मृति का यंत्र तो आउट आफ डेट है। उसका कोई बहुत मूल्य नहीं रह गया। लेकिन, इतना सब करने के बाद भी, दस हजार आइंस्टीन का काम, दस हजार वर्ष में जो हो पाता, कम्प्यूटर वह एक सेकेंड में कर देगा, लेकिन कम्प्यूटर एक महावीर का काम जरा भी नहीं कर सकता । क्योंकि महावीर का काम स्मृति से संबंधित नहीं, स्मृति के पीछे जो साक्षी है, वह जो विटनेस है, जो स्मृति को भी देखता है, उससे संबंधित है । कम्प्यूटर साक्षी नहीं हो सकता। वह अपने को बांट नहीं सकता, कि खुद खड़े होकर देख सके भीतर कि क्या चल रहा है। हम बांट सकते हैं । वह जो बांटने की कला है, उससे ही ज्ञान का जन्म होता है। तो महावीर कहते हैं, आत्मा का लक्षण है-ज्ञान, दर्शन । जो पहली झलक है स्वयं की, उसका नाम ज्ञान है । और जब हम उस झलक को सारे जगत और अस्तित्व के साथ संयुक्त करके देखने में समर्थ हो जाते हैं, गेस्टाल्ट पैदा हो जाता है, अपनी झलक के साथ जब सारे जगत की झलक का भी हमें बोध हो जाता है। ध्यान रहे, जो भी मैं अपने संबंध में जानता हूं, उससे ज्यादा मैं किसी के संबंध में नहीं जान सकता। मेरा ज्ञान ही, अपने संबंध में 203 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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