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महावीर-वाणी भाग : 2
ज्ञानी भी आहार करता है विचार का, लेकिन उसे पचाने की कोशिश करता है। और जब तक वह खून न बन जाये, अपना न हो जाये, जब तक बहने न लगे रग-रग में, जब तक अपने जीवन का एक भाग न हो जाए, तब तक चैन नहीं लेता।
अगर आपको पंडित बनना हो तो आलोचक की दृष्टि से सोचना और अगर आपको ज्ञानी की तरफ यात्रा करनी हो तो एक भक्त के भाव से सोचना।
जैसा हमारा जीवन है, वहां कोई चाहिये, जो हमें झकझोर दे। और हमारी यात्रा को पलट दे। जैसा हमारा जीवन है, वहां कोई चाहिए, जो हमें एक जोर का धक्का दे, एक शाक हमें लगे कि हमारी यात्रा की दिशा बदल जाए।
मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन शिकागो से एक संध्या एक ट्रेन में सवार हुआ। जिस डिब्बे में था, उस डिब्बे में एक और वृद्ध महिला भी थी। बस, वे दो ही थे। गाड़ी को छूटे पांच-सात मिनट हुए ही होंगे कि वृद्ध महिला को खयाल आया कि जो यात्री साथ में है, वह रो रहा है। सोचा उसने किसी प्रियजन से बिछुड़ना हुआ होगा। बोलना उचित न समझा।
नसरुद्दीन अपने माथे को पैरों में झुकाए, हाथों में दबाये रोए चला जा रहा है। उसकी हिचकियां उसके पूरे शरीर को हिला रही हैं। रात हो गई, वृद्धा सो गई, लेकिन सुबह जब फिर जागी तो देखा कि वह अभी भी रोए चला जा रहा है। आंसू पोंछता है, फिर हिचकियां आ जाती हैं, फिर थोड़ी देर रुकता है, फिर रोने लगता है। फिर उसने सोचा मैं अजनबी हूं, और पता नहीं कितने दुख में है वह आदमी। मेरा बीच में बोलना, या कुछ कहना कहीं दुख को और न बढ़ा दे, कहीं घाव को और न छेड़ दे।
दूसरा दिन भी बीत गया, और तीसने दिन की सुबह होने लगी। तब तो वृद्धा को भी सम्हालना मुश्किल हो गया अपने को। वह पास आई । उसने नसरुद्दीन के सिर पर हाथ रखा, थपथपाया और कहा कि क्या हो गया है ? मुझे कुछ कहें, शायद कहने से भी भार हल्का हो जाये। तो नसरुद्दीन ने कहा कि मत पूछे । सोचकर ही मन और दुखी होता है। नाउ इट इज श्री डेज दैट आइ हैव बीन राइडिंग आन द रांग ट्रेन-तीन दिन हो गये हैं और मैं गलत गाड़ी में सवार हूं। ....इस गाड़ी से कभी भी उतरा जा सकता था!
नसरुद्दीन पर आपको हंसी आ सकती है, लेकिन उस हंसी में आप मत भूल जाना कि करीब-करीब वैसी ही अवस्था आपकी है। तीन दिन ही नहीं, न-मालूम कितने जन्मों से आप गलत गाड़ी में सवार हैं। रो भी रहे हैं, ऐसा भी नहीं कि नहीं रो रहे हैं। बुरी तरह रो रहे हैं, हिचकिया बंधी हैं। आंखें गीली हैं, सुख कहीं दिखाई नहीं पड़ता, दुख ही दुख है, फिर भी गाड़ी में बैठे हुए हैं। और जिससे दुख हो रहा है, जिससे गलत दिशा में जा रहे हैं, उसको आपका पूरा सहयोग है। '. इसे थोड़ा ठीक-से अपनी तरफ देखेंगे तो खयाल में आ जायेगा कि जहां-जहां आप गलत जा रहे हैं, वहीं-वहीं आपकी ऊर्जा सहयोग कर रही है; जो-जो जीवन में गलत है, उसी-उसी के आप सहयोगी और साथी हैं। और जीवन में जो-जो श्रेष्ठ है, जहां से यात्रा का रुख बदल सकता है, पूरे जीवन का ढंग बदल सकता है, उस तरफ आपका कोई सहयोग नहीं है। उसे आप सुन भी लेते हैं. तो भी वह कभी आपके जीवन की मलधारा नहीं बन पाता । मलधारा तो आपकी गलत ही बनी रहती है। फिर इस गलत मूलधारा के बीच जो आप ठीक भी सन लेते हैं, उसकी भी आप जो व्याख्या करते हैं, वह भी इस गलत को सहयोग देने वाली होती है। क्योंकि व्याख्या आप करेंगे। ___ इसलिए मैंने कहा कि आप सोचना-विचारना मत । महावीर की तरफ एक सहानुभूति, एक प्रेम के रुख की जरूरत है। क्योंकि जो भी आप सोचेंगे, वह 'आप' सोचेंगे । और 'आप' गलत हैं । आपके निर्णय के ठीक होने का कोई उपाय नहीं है। अगर आपके निर्णय ठीक हो सकते, तो आप खुद कभी के महावीर हो गये होते, महावीर को सुनने, समझने की कोई जरूरत नहीं थी। एक जिसको पश्चिम
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