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________________ साधना का सूत्र : संयम फैड, वे करते हैं। तो आपको थोड़ा लाभ ही होगा । डाक्टर कहेंगे, अच्छा ही हुआ, कर लिया। थोड़ा ब्लड प्रेशर कम होगा, उम्र थोड़ी बढ़ जायेगी। ___ यह बड़े मजे की बात है, जिन समाजों में ज्यादा भोजन उपलब्ध है, वे ही उपवास को धर्म मानते हैं । जैसे जैनी, वे उपवास को धर्म मानते हैं। इसका मतलब, ओवर फैड लोग हैं। ज्यादा खाने को मिल रहा है, इसलिए उपवास में धर्म दिखायी पड़ा है। गरीब आदमी का धर्म देखा? जिस दिन धर्म दिन होता है, उस दिन वह मालपुआ बनाता है । गरीब आदमी का धर्म का दिन होता है भोजन का उत्सव। अमीर आदमी के धर्म का दिन होता है, अनशन । ये दोनों ठीक हैं, बिलकुल, लाजिकल हैं। होना भी ऐसा ही चाहिए । होना भी यही चाहिए, क्योंकि सालभर तो मालपुआ गरीब आदमी खा नहीं सकता, धर्म के दिन ही खा सकता है। जो सालभर मालपुआ खाते हैं इनके लिए धर्म के दिन ये क्या खायेंगे, कोई उपाय नहीं । उपवास कर सकते हैं। कुछ नया कर लेते हैं। लोग कहीं उपवास करके दांव पर लगाते हैं। कोई टुच्ची चीजें छोड़ते रहता है। कोई कहता है, नमक छोड़ दिया। कोई कहता है, घी छोड़ दिया । इनसे कुछ भी न होगा। ये दांव दांव नहीं हैं, धोखे हैं। यह ऐसा है जैसा एक करोड़पति जुआ खेल रहा हो और एक कौड़ी दांव पर लगा दे, ऐसा । जुए का मजा ही नहीं आयेगा । जुए का मजा ही तब है कि करोड़पति सब लगा दे। और एक क्षण को ऐसी जगह आ जाये कि अगर हारा तो भिखारी होता हूं। उस क्षण में जुआ भी ध्यान बन जाता है। उस क्षण में सब विचार रुक जाते हैं। ___ आपको जानकर हैरानी होगी, जुए का मजा ही यही है कि यह भी एक ध्यान है। जब पूरा दांव पर कोई लगाता है, तो छाती की धड़कन रुक जाती है एक सेकेंड को कि अब क्या होता है; इस पार या उस पार, नरक या स्वर्ग, दोनों सामने होते हैं और आदमी बीच में हो जाते हैं। सस्पेन्स हो जाता है, सारा विचार, चिंतन बन्द हो जाता है। प्रतीक्षा भर रह जाती है कि अब क्या होता है। सब कंपन रुक जाता है, जाती है कि कहीं श्वास के कारण कोई गड़बड़ न हो जाये । उस क्षण में, जो थोड़ी सी शांति मिलती है, वही जुए का मजा है। इसलिए जुए का इतना आकर्षण है।। और जब तक सारी दुनिया ध्यान को उपलब्ध नहीं होती, तब तक जुआ बन्द नहीं हो सकता क्योंकि जिनको ध्यान का कोई अनुभव नहीं, वह अलग-अलग तरकीबों से ध्यान की झलक लेते रहते हैं, जुए से भी मिलती है झलक । पर झलक काहे की? दांव की । धर्म भी एक बड़ा दांव है। ___ महावीर कहते हैं, शरीर चाहे चला जाये, लेकिन वह जो धर्म का अनुशासन मैंने स्वीकार किया है, उसे मैं नहीं छोडूंगा। ऐसा जो दृढ़ निश्चय कर लेता है, ऐसा जो संकल्प कर लेता है, उसे फिर इंद्रियां कभी भी विचलित नहीं कर पातीं, जैसे सुमेरु पर्वत को हवाओं के झोंके विचलित नहीं कर पाते। शरीर को कहा है नाव, जीव को कहा नाविक, संसार को कहा है समुद्र । इस संसार-समुद्र को महर्षिजन पार कर जाते हैं। शरीर को कहा है नाव। इस वचन को समझ लेना ठीक से। क्योंकि महावीर को माननेवाले भूल गये मालूम होता है इस वचन को। अगर शरीर है नाव, तो नाव मजबूत होनी चाहिए, नहीं तो सागर पार नहीं होगा। देखो जैन-साधुओं के शरीर । कोई उनकी नाव मैं बैठने को तैयार भी न हो कि कहां डुबा दें, कुछ पता नहीं। डूबी हालत ही है उनकी । और शरीर का वह एक ही उपयोग कर रहे हैं जैसे कोई नाव का उपयोग कर रहा हो, उसमें और छेद करता चला जाये। इसको हम तपश्चर्या कहते हैं। महावीर नहीं कह सकते, क्योंकि महावीर कहते हैं, शरीर है नाव। नाव तो स्वस्थ होनी चाहिए-अछिद्र । उसमें कोई छेद नहीं होना चाहिए। बीमारी छेद है। शरीर तो ऐसा स्वस्थ होना चाहिए कि उस 171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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