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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 पार तक ले जा सके । महावीर के पास ऐसा शरीर था। लेकिन कहीं कोई भूल हो गयी है। उनका माननेवाला शरीर का दुश्मन हो गया है। वह समझता है गलाओ शरीर को, मिटाओ शरीर को। जितना मिटाये, उतना बड़ा आदमी है। अगर भक्तों को पता चल जाये कि थोड़ा ठीक से खाना खा रहे हैं उनके गुरु, तो प्रतिष्ठा चली जाती है। अगर भक्तों को पता चल जाये कि थोड़ा ठीक से विश्राम कर लेते हैं लेटकर, तो सब गड़बड़ हो जाता है। तो अगर जैन साधुओं को ठीक से लेटना भी हो, ठीक से भोजन भी करना हो, उसके लिए भी चोरी करनी पड़ती है। क्योंकि वह जो भक्त-गण हैं चारों तरफ, दुश्मन की तरह लगे हैं। वे पता लगा रहे हैं, क्या कर रहे हो, क्या नहीं कर रहे हो। ___ एक दिगम्बर जैन मुनि एक गांव में ठहरे थे। तो दिगम्बर जैन मुनि तो किसी चीज पर सो नहीं सकता-किसी वस्त्र पर, बिस्तर पर-किसी चीज पर सो नहीं सकता। सर्द रात्रि थी। तो क्या किया जाये, तो दरवाजा बन्द कर दिया जाता है, थोड़ी-बहुत गर्मी हो जाये। और किस तरह के पागलपन चलते रहते हैं। घासफूस डाल दिया जाता है कमरे में, वह भी भक्त गण डालते हैं। क्योंकि अगर मनि खद कहे कि घास-फूस डाल दो, तो उसका मतलब हुआ, तुम शरीर के पीछे पड़े हो? तुम्हें शरीर का मोह है। जब आदमी आत्मा ही है, तो फिर क्या सर्दी और क्या गर्मी । तो पआल डाल देते हैं। लेकिन वह पुआल भी भक्त ही डालें। वह मनि कह नहीं सकता कि तम डाल दो। डली है, इसलिए मजबूरी में उस पर सो जाता है। ___ मैं उस गांव में था, मुझे पता चला कि रात में जिन भक्तों ने पुआल डाली थी, वे जाकर देख भी आते हैं कि पुआल ऊपर तो नहीं कर ली, नीचे डली रहे । ऐसे दुष्ट भक्त भी मिल जाते हैं कि वह पुआल कहीं ऊपर तो नहीं कर दी। नहीं की हो तो निश्चिंत लौट आते हैं कि ठीक आदमी है। अगर कर ली हो, तो सब भ्रष्ट हो जाता है। ___ ऐसा होता है कि पर-दुख का रस है। और पर-दुख का जिनको रस है वे वैसे आदमी को आदर दे सकते हैं, जिसको स्व-दुख का रस हो। अगर इसको मनोविज्ञान की भाषा में कहें, तो दो तरह के लोग हैं दुनिया में, सैडिस्ट और मैसोचिस्ट । सैडिस्ट वे लोग हैं जो दूसरे को दुख देने में मजा लेते हैं, और मैसोचिस्ट वे लोग हैं जो खुद को दुख देने में मजा लेते हैं । ऐसा मालूम पड़ता है कि हिन्दुस्तान में इन दोनों के बड़े ताल-मेल हो गये हैं। मैसोचिस्ट हो गये हैं गुरु और सैडिस्ट हो गये हैं शिष्य । ___ तो गुरु को कितनी तकलीफ-गुरु अपने हाथ सिर उठा रहा है, उतना शिष्य चर्चा करते हैं कि क्या तुम्हारा गुरु, हमारा गुरु तो कांटों पर सोया हुआ है। जैसे कि यह कोई सर्कस है। यहां कौन कहां सोया हुआ है, इसका सब निर्णय होनेवाला है। कौन खा रहा है, कौन नहीं खा रहा है, इसका निर्णय होनेवाला है। कौन पानी पी रहा है, कौन नहीं पी रहा है, इसका निर्णय होनेवाला है । निर्णायक एक ही बात है कि शरीर की कौन कितनी बुरी तरह से हिंसा कर रहा है। महावीर का यह मतलब नहीं हो सकता । महावीर कहते हैं, शरीर को कहता हूं नाव । इससे ज्यादा आदर शरीर के लिए और क्या होगा? क्योंकि नाव के बिना नदी पार नहीं हो सकती। इसलिए शरीर मित्र है, शत्रु नहीं। शरीर साधन है, शत्रु नहीं। शरीर मार्ग है, शत्रु नहीं। शरीर उपकरण है, शत्रु नहीं। और उपकरण का जैसा उपयोग करना चाहिए वैसा शरीर का उपयोग करना चाहिए। कि कोई कहे कि कार से पार करनी है यात्रा और पेटोल हम देंगे न कार को। कोई कहे कि शरीर से करनी है यात्रा और भोजन डालेंगे न शरीर में तो फिर वह शरीर के यंत्र को नहीं समझ पा रहा है। महावीर ने कहा है कि किसी भी दिशा में असंतुलित न हो जाओ, न तो इतना भोजन डाल दो कि नाव भोजन से ही डूब जाये, और न इतना अनशन कर दो कि नाव के प्राण बीच नदी में ही निकल जायें। सम्यक-इतना जितना पार होने में सहयोगी हो, बोझ न बने। इतना कम भी नहीं कि अशक्य हो जाये और बीच में डूब जाये । सम्यक भाव शरीर के प्रति हो, और शरीर का पूरा ध्यान रखना जरूरी है। 172 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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