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महावीर-वाणी भाग : 2
जा सकते, क्योंकि हम मन्दिर में जानेवाले हैं, लेकिन मन्दिर में गये कब? मन्दिर में जाने की कोई जरूरत नहीं, जब मस्जिद से झंझट हो तभी मन्दिर का खयाल आता है। ___ इसलिए बड़ा मजा है। जब हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं, तब ही पता चलता है कि हिन्दू कितने हिन्दू, मुस्लिम कितने मुस्लिम। तभी पता चलता है कि सच्चे धार्मिक कौन हैं। वैसे कोई पता नहीं चलता। ___ मामला क्या है? जिस धर्म को आपने कभी पकड़ा ही नहीं, उसको छोड़ने का कहां सवाल उठता है? जन्म से कोई धर्म नहीं मिलता, क्योंकि जन्म की प्रक्रिया से धर्म का कोई संबंध ही नहीं है। जन्म की प्रक्रिया है बायोलाजिकल, जैविक । उसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। आपके बच्चे को मुसलमान के घर में बड़ा किया जाये, मुसलमान हो जायेगा, हिन्दू के घर में बड़ा किया जाये हिन्दू हो जायेगा। ईसाई
बड़ा किया जाये ईसाई हो जायेगा। यह जो धर्म मिलता है, यह तो संस्कार है, शिक्षा है घर की। इसका जन्म से, खून से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा नहीं है कि आपके बच्चे को, पहले दिन पैदा हो और ईसाई घर में रख दिया जाये तो कभी वह पता लगा ले कि मेरा खून हिन्दू का है। इस भूल में मत पड़ना। __ लोग बड़ी भूलों में रहते हैं। माताएं कहती हैं लड़के से कि मेरा खून । और बच्चा पैदा हो, जैसे मेटरनिटी होम में बच्चे पैदा होते हैं, बीस बच्चे एक साथ रख दिये जायें जो अभी पैदा हुए हैं और बीसों माताएं छोड़ दी जायें, एक न खोज पायेगी कि कौनसा बच्चा उसका है। आंख बन्द करके बच्चे पैदा करवा दिये जायें, बीसों बच्चे रख दिये जायें, बीसों माताओं को छोड़ दिया जाये, एक मां न खोज पायेगी कि कौन सा खून उसका है। कोई उपाय नहीं है। ___ खून का आपको कोई पता नहीं चलता, सिर्फ दिये गये शिक्षाओं और संस्कारों का पता चलता है। खोपड़ी में होता है धर्म, खून में नहीं। तो जिसको मिला मौका आपकी खोपड़ी में डालने का धर्म, वही धर्म आपका हो जाता है । यह सिर्फ अवसर की बात है। लेकिन इससे कोई पकड़ भी पैदा नहीं होती, क्योंकि जो धर्म मुफ्त मिल जाता है, वह धर्म कभी गहरा नहीं होता। जो धर्म खोजा जाता है, और जिसमें जीवन रूपांतरित किया जाता है, और इंच-इंच श्रम किया जाता है, वह धर्म होता है।
तो महावीर कहते हैं, दृढ़ निश्चयी की आत्मा ऐसी होती है कि देह भली चली जाये, धर्म-शासन नहीं छोड़ सकता। धर्म-शासन का अर्थ है कि वह जो अनुशासन, मैंने स्वीकार किया है। वह जो विचार, वह जो साधना, वह जो जीवन पद्धति मैंने अंगीकार की है, उसे मैं नहीं छोडूंगा। शरीर तो आज है, कल गिर जायेगा। लेकिन वह जो मैंने जीवन को रूपांतरित करने की कीमिया खोजी है, उसे मैं नहीं छोडूंगा।
'बुद्ध को ध्यान हुआ, परम ज्ञान हुआ। उस दिन सुबह वे बैठ गये थे वृक्ष के तले और उन्होंने कहा था अपने मन में, सब हो चुका, कुछ होता नहीं। अब तो सिर्फ इस बात को लेकर बैठता हूं इस वृक्ष के नीचे कि अगर कुछ भी न हुआ तो अब उठ्गा भी नहीं यहां से। फिर सब करना छोड़कर वे वहीं लेट गये। फिर उन्होंने कहा, अब उलूंगा नहीं, अब बात खत्म हो गयी। अब सब यात्रा ही व्यर्थ हो गयी तब इस शरीर को भी क्यों चलाये फिरना? कहीं कुछ मिलता भी नहीं, तो अब जाना कहां है? कुछ करने से कुछ होता भी नहीं, तो अब करने का भी क्या सार है? अब कछ भी न करूंगा. मैं जिन्दा ही मर्दा हो गया। अब तो इस जगह से न हटगा। य
यह शरीर यहीं सड़ जाये, गल जाये, मिट्टी में मिल जाये । उसी रात ज्ञान की किरण जग गयी। उसी रात दीया जल उठा। उसी रात उस महासूर्य का उदय हो गया। क्या हुआ मामला? पहली दफा, आखिरी चीज दांव पर लगा दी। आखिरी दांव लगाते ही घटना घट जाती है। ___ हम दांव पर भी लगाते हैं तो बड़ी छोटी-मोटी चीजें लगाते हैं। कोई कहता है कि आज उपवास करेंगे। क्या दांव पर लगा रहे हैं? इससे आपको लाभ ही होगा, दांव पर क्या लगा रहे हैं? क्योंकि गरीब आदमी तो उपवास वगैरह करते नहीं। ज्यादा जो खा जाते हैं, ओवर
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