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________________ आहंसा : जीवेषणा की मृत्यु और हमारे जीवन की अधिक हिंसा इसीलिए है। जब एक पति एक स्त्री का मालिक होता है, उसे पत्नी बना लेता है तो उसमें स्त्री तो करीब-करीब नब्बे प्रतिशत मर ही जाती है। बिना मारे मालिक होना मुश्किल है। क्योंकि दूसरा भी मालिक होना चाहता है। अगर वह जिंदा रहेगा तो वह मालिक होने की कोशिश करेगा। इसलिए अब ध्यान रखें, भविष्य में स्त्री पर, पुरुषों पर मालकियत की संभावना कम होती जाती है। अगर स्त्रियों को समानता का हक दिया तो पत्नी बच नहीं सकती। पत्नी तभी तक बच सकती थी जब तक स्त्री को कोई हक नहीं था। उसको बिलकुल ही मार डालते तो ही पत्नी बच सकती थी। वह बिलकुल नकार हो जाती तो ही पति हो सकता है। अब जब उसे बराबर करेंगे तो पति होने का उपाय नहीं। अब मित्र होने से ज्यादा की संभावना नहीं रह जाएगी। क्योंकि दोनों अगर समान हैं तो मालकियत कैसे टिक सकती है? लेकिन समानता भी टिकानी बहुत मुश्किल है। डर तो यह है कि स्त्री ज्यादा दिन समान नहीं रहेगी। थोड़े दिन में पुरुष को आंदोलन चलाना पड़ेगा कि हम स्त्रियों के समान हैं। यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा। क्योंकि स्त्री बहुत दिन असमान रह ली। यह तो पहला कदम है समान होने का। अब इसके ऊपर जाने का दूसरा कदम, वह उठना शुरू हो गया है। बहुत जल्दी जगह-जगह पुरुष जुलूस निकाल रहे होंगे, घेराव कर रहे होंगे कि पुरुष स्त्रियों के समान हैं, कौन कहता है कि हा समानता ज्यादा देर टिक नहीं सकती। क्योंकि जहां मालकियत और जहां हिंसा गहन है वहां किसी न किसी को असमान होना ही पड़ेगा, किसी न किसी को नीचे होना ही पड़ेगा। मजदूर लड़ेगा, पूंजीपति को नीचे कर देगा। कल पाएगा कि कोई और ऊपर बैठ गया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महावीर कहते हैं, जब तक जगत में मालकियत की आकांक्षा है यानी जीवेषणा जब इतनी पागल है कि वह बिना मालिक हुए राजी नहीं होती- तब तक दुनिया में कोई समानता संभव नहीं है। __इसलिए महावीर समानता में उत्सुक नहीं हैं, अहिंसा में उत्सुक हैं। वे कहते हैं- अगर अहिंसा फैल जाए तो ही समानता संभव है। मालकियत का रस ही टूट जाए, तो ही दुनिया से मालकियत मिटेगी, अन्यथा मालकियत नहीं मिट सकती है। सिर्फ मालिक बदल सकते हैं। मालिक बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। बीमारी अपनी जगह बनी रहती है। उपद्रव अपनी जगह बने रहते हैं। हिंसा का जो वास्तविक हमारे जीवन में क्रियमान रूप है, वह मालकियत है। ___ महावीर ने जब महल छोड़ा तो हमें लगता है- महल छोड़ा, धन छोड़ा, परिवार छोड़ा। महावीर ने सिर्फ हिंसा छोड़ी। अगर गहरे में जाएं तो महावीर ने सिर्फ हिंसा छोड़ी। यह सब हिंसा का फैलाव था। ये पहरेदार जो दरवाजे पर खड़े थे, वे पत्थर की मजबूत दीवारें जो महल को घेरे थीं, यह धन और ये तिजोरियां-ये सब आयोजन थे हिंसा के। यह मेरे और तेरे का भेद, यह सब आयोजन था हिंसा का। महावीर जिस दिन खुले आकाश के नीचे आकर नग्न खड़े हो गये, उस दिन कहा कि अब मैं हिंसा को छोड़ता है, इसलिए सब सुरक्षा छोड़ता हूं। इसलिए सब आक्रमण के उपाय छोड़ता हूं। अब मैं निहत्था, निशस्त्र, शून्यवत भटकूँगा इस खुले आकाश के नीचे। अब मेरी कोई सुरक्षा नहीं, अब मेरा कोई आक्रमण नहीं, अब मेरी कोई मालकियत कैसे हो सकती है। अहिंसक की कोई मालकियत नहीं हो सकती। अगर कोई अपनी लंगोटी पर भी मालकियत बताता है कि यह मेरी है- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महल मेरा है कि लंगोटी मेरी है। वह मालकियत हिंसा है। इस लंगोटी पर भी गर्दनें कट सकती हैं। और यह मालकियत बहुत सूक्ष्म होती चली जाती है-धन छोड़ देता है एक आदमी, लेकिन कहता है, धर्म, यह मेरा है। __ मेरे एक मित्र अभी एक जैन साधु के पास गये होंगे- अभी एक-दो दिन पहले। मैं महावीर के संबंध में क्या कह रहा हूं, मित्र ने उन्हें बताया होगा। उन साधु ने कहा कि कोई और महावीर होंगे, वे उनके होंगे, वे हमारे महावीर नहीं हैं। वे जिस महावीर के संबंध में बोल रहे हैं वे हमारे महावीर नहीं हैं। 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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