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महावीर-वाणी
भाग : 1
मालकियत बड़ी सूक्ष्म है। महावीर तक पर भी मालकियत है। हिंसा हम वहां तक नहीं छोड़ेंगे- यह धर्म मेरा है, यह शास्त्र मेरा है, यह सिद्धांत मेरा है- रस आता है, रस किसको आता है भीतर? जहां-जहां 'मेरा' है वहां-वहां हिंसा है। जो 'मेरे' को सब भांति छोड़ देता है- धन पर ही नहीं, धर्म पर भी, महावीर और कृष्ण और बुद्ध पर भी- जो कहता है कि मेरा कुछ भी नहीं है।
और ध्यान रहे, जिस दिन कोई कह पाता है, मेरा कुछ भी नहीं, उसी दिन मैं कौन हूं', इसे जान पाता है। इसके पहले नहीं जान पाता। इसके पहले 'मेरे' के फैलाव में उलझा रहता है, परिधि पर। इसलिए 'मैं' के केन्द्र पर कोई पता नहीं चलता है। ___ इसे ऐसा समझ लें, अहिंसा सत्र है आत्मा को जानने का। क्योंकि 'मेरे' का जब सारा भाव गिर जाता है तो फिर मैं ही बचता हूं फिर, कोई और तो बचता नहीं। निपट मैं, अकेला मैं । और तभी जान पाता हूं, क्या हूं, कौन हूं, कहां से हूं, कहां के लिए हूं। तब सारे द्वार रहस्य के खुल जाते हैं। ___ महावीर ने अकारण ही अहिंसा को परम धर्म नहीं कह दिया है। परम धर्म कहा है इसलिए कि उस कुंजी से सारे द्वार खुल सकते हैं, जीवन के रहस्य के। एक और तीसरी दृष्टि से अहिंसा को समझ लें तो अहिंसा का खयाल हमारा स्पष्ट और पूरा हो जाए।
कहा है कि सब हिंसा आग्रह है। यह अति सक्षम बात है। आग्रह हिंसा है, अनाग्रह अहिंसा है। और इसी कारण महावीर ने जिस विचार-सरणी को जन्म दिया है, उसका नाम है 'अनेकांत'। वह अहिंसा के विचार का जगत में फैलाव है। अनेकांत की दृष्टि जगत में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दे सका। क्योंकि अहिंसा की दृष्टि को कोई दूसरा व्यक्ति इतनी गहनता में समझ ही नहीं सका। समझा ही नहीं सका। अनेकांत महावीर से पैदा हुआ उसका कारण है कि महावीर की अहिंसा की दृष्टि को जब उन्होंने विचार के जगत पर लगाया, वस्तुओं के जगत पर लगाया तो परिग्रह फलित हुआ। जीवन के जगत पर लगाया तो मृत्यु का वरण फलित हुआ।
और जब विचार के जगत पर लगाया-जो कि हमारा बहत सूक्ष्म संग्रह है, विचार का जगत। धन बहत स्थूल संग्रह है, चोर उसे ले जा सकते हैं। विचार बहुत सूक्ष्म संग्रह है, चोर उसे नहीं चुरा सकते। फिलहाल अभी तक तो नहीं चुरा सकते। यह सदी पूरे होते-होते चोर आपके विचार चुरा सकेंगे। क्योंकि आपके मस्तिष्क को आपके बिना जाने पढ़ा जा सकेगा। और क्योंकि आपके मस्तिष्क से कुछ हिस्से भी निकाले जा सकते हैं, जिनका आपको पता ही नहीं चलेगा। और आपके मस्तिष्क के भीतर भी इलेक्ट्रोड रखे जा सकते हैं, और आपसे ऐसे विचार करवाये जा सकते हैं जो आप नहीं कर रहे, लेकिन आपको लगेगा कि मैं कर रहा हूं।
अभी अमरीका में डा. ग्रीन और दूसरे लोगों ने जानवरों की खोपड़ी में इलेक्ट्रोड रखकर जो प्रयोग किये हैं वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। एक घोड़े की या एक सांड की खोपड़ी में इलेक्ट्रोड रख दिया है। वह इलेक्ट्रोड रखने के बाद वायरलेस से उसकी खोपड़ी के भीतर के स्नायुओं को संचालित किया जा सकता है, जैसा चाहें। और डा. ग्रीन के ऊपर हमला करता है वह सांड। वे लाल छतरी लेकर उसके सामने खड़े हैं और हाथ में उनके ट्रांजिस्टर है छोटा-सा, जिससे उसकी खोपड़ी को संचालित करेंगे। वह दौड़ता है पागल की तरह। लगता है कि हत्या कर डालेगा। सैकड़ों लोग घेरा लगाकर खड़े हैं। वह बिलकुल आ जाता है-वह सामने आ जाता है। और वह बटन दबाता है अपने ट्रांजिस्टर की। वह ठंडा हो जाता है, वह वापस लौट जाता है।
यह आदमी के साथ भी हो सकेगा। इसमें कोई बाधा नहीं रह गयी है। वैज्ञानिक काम पूरा हो गया है। कुछ कहा नहीं जा सकता कि तानाशाही सरकारें हर बच्चे की खोपड़ी में बचपन से ही रख दें। फिर कभी उपद्रव नहीं। एक बटन दबायी जाए, पूरा मुल्क एकदम जय-जयकार करने लगे। मिलिट्री के दिमाग में तो यह रखा ही जाएगा। तब बटन दबा दी और लाखों लोग मर जाएंगे बिना भयभीत हुए, कूद जाएंगे आग में बिना चिंता किये। और उनको लगेगा कि वे ही कर रहे हैं। हालांकि यह पहले से भी किया जा रहा है, लेकिन करने के ढंग पुराने थे, मुश्किल के थे।
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