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________________ अहिंसा : जीवेषणा की मृत्यु एक आदमी को समझाना पड़ता है कि अगर तू देश के लिए मरेगा तो स्वर्ग जाएगा। इसको बहुत समझाना पड़ता है, तब उसकी खोपड़ी में घुसता है। हालांकि यह भी घुसाना ही है। इसमें कोई मतलब नहीं है। इसको भी बचपन से गाथाएं सुना-सुनाकर राष्ट्रभक्ति की और जमानेभर के पागलपन की, इसके दिमाग को तैयार किया जाता है। फिर एक दिन वर्दी पहनाकर इससे कवायद करवायी जाती है दो-चार साल तक। इसकी खोपड़ी में डालने का यह उपाय भी इलेक्ट्रोड ही है, लेकिन यह पुराना है, बैलगाड़ी के ढंग से चलता है। फिर एक दिन यह आदमी जाता है और मर जाता है युद्ध के मैदान में छाती खोलकर और सोचता है कि यह 'मैं' मर रहा हूं, और सोचता है कि यह बलिदान 'मैं' दे रहा हूं, और सोचता है, ये विचार 'मेरे' हैं। यह देश मेरा और यह झंडा मेरा है। और ये सब बातें इसके दिमाग में किन्हीं और ने रखी हैं। जिन्होंने रखी हैं वे राजधानियों में बैठे हुए हैं। वे कभी किसी युद्ध पर नहीं जाते। ठीक है, इतनी परेशानी करने की क्या जरूरत है, जब इलेक्ट्रोड रखने से आसानी से काम हो जाएगा। अड़चन कम होगी, भूल-चूक कम होगी। बहुत जल्दी विचार की संपदा पर भी चोर पहंच जाएंगे। खतरे वहां हो जाएंगे, लेकिन अब तक कम से कम विचार की संपदा बहुत सूक्ष्म रही है। ___ महावीर कहते हैं कि विचार की संपदा को भी मेरा मानना हिंसा है। क्योंकि जब भी मैं किसी विचार को कहता हं 'मेरा', तभी मैं सत्य से च्युत हो जाता हूं। और जब भी मैं कहता हूं कि यह मेरा विचार है, इसलिए ठीक है- और हम सभी यह कहते हैं, चाहे हम कहते हों प्रगट, चाहे न कहते हों। जब हम कहते हैं कि यही सत्य है, तो हम यह नहीं कहते कि जो मैं कह रहा हूं वह सत्य है, तब हम यह कहते हैं कि जो कह रहा है वह सत्य है। मैं सत्य हूं तो मेरा विचार तो सत्य होगा ही- मैं सत्य हूं, तो मेरा विचार सत्य होगा। जितने विवाद हैं इस जगत में वे सत्य के विवाद नहीं हैं। जितने विवाद हैं वे सब 'मैं' के विवाद हैं। जब आप किसी से विवाद में पड़ जाते हैं और कोई बात चलती है और आप कहते हैं यह ठीक है, और दूसरा कहता है यह ठीक नहीं है, तब जरा भीतर झांककर देखना कि थोड़ी देर में ही आपको पक्का पता चल जाएगा कि अब सवाल विचार का नहीं है। अब सवाल यह है कि मैं ठीक हूं कि तुम ठीक हो? महावीर ने कहा कि यह बहुत सूक्ष्म हिंसा है। इसलिए महावीर ने अनेकांत को जन्म दिया है। महावीर से अगर कोई आकर बिलकुल महावीर के विपरीत भी बात कहे तो महावीर कहते थे, यह भी ठीक हो सकता है। बहुत हैरानी की बात है, यह आदमी अकेला था इस लिहाज से, पूरी पृथ्वी पर। ज्ञात इतिहास के पास यह अकेला आदमी है जो अपने विरोधी से भी कहेगा, यह भी ठीक हो सकता है-ठीक उससे, जो बिलकुल विपरीत बात कह रहा है। महावीर कहते हैं कि आत्मा है, और जो आदमी आकर कहेगा- आत्मा नहीं है, कोई चार्वाक की विचार-सरणी को माननेवाला आकर महावीर को कहेगाआत्मा नहीं है तो महावीर यह नहीं कहते हैं कि तू गलत है। महावीर कहते हैं, यह भी हो सकता है, यह भी सही हो सकता है। इसमें भी सत्य होगा। क्योंकि महावीर कहते हैं कि ऐसी तो कोई भी चीज नहीं हो सकती कि जिसमें सत्य का कोई अंश न हो, नहीं तो वह होती ही कैसे। वह है। स्वप्न भी सही है। क्योंकि स्वप्न होता तो है, इतना सत्य तो है ही। स्वप्न में क्या होता है, वह सत्य न हो, लेकिन स्वप्न होता है, इतना तो सत्य है ही, उसका अस्तित्व तो है ही। असत्य का तो कोई अस्तित्व नहीं हो सकता। तो महावीर कहते हैं जब एक आदमी कह रहा है कि आत्मा नहीं है, तो इस न होने में भी कुछ सत्य तो होगा ही । इसलिए महावीर ने किसी का विरोध नहीं किया- किसी का। इसका अर्थ यह नहीं था कि महावीर को कुछ पता नहीं था। कि महावीर को यह पता नहीं था कि सत्य क्या है। महावीर को सत्य का पता था। लेकिन महावीर का इतना अनाग्रहपूर्ण चित्त था कि महावीर अपने सत्य में विपरीत सत्य को भी समाविष्ट कर पाते थे। महावीर कहते थे, सत्य इतनी बड़ी घटना है कि यह अपने से 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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