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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 अभी मुझे निमंत्रण पत्र आया है कि उनका विवाह हो रहा है। यह ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना भयभीत आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता। इतना असुरक्षित आदमी ज्यादा दिन नहीं बच सकता। ___ वस्तुओं पर, व्यक्तियों पर जो हम 'मेरे' का फैलाव करते हैं, महावीर उसको भी हिंसा कहते हैं। महावीर परिग्रह को हिंसा कहते हैं। महावीर का वस्तुओं से कोई विरोध नहीं है, और न महावीर को इससे कोई प्रयोजन है कि आपके पास कोई वस्तु है या नहीं। महावीर का इससे जरूर प्रयोजन है कि आपका उससे कितना मोह है। कितना उसको आप पकड़े हुए हैं, कितना आपने उस वस्तु को अपनी आत्मा बना लिया है। ___ यह मुल्ला नसरुद्दीन बड़ा प्यारा आदमी है। इसके जीवन में बहुत अदभुत घटनाएं हैं। एक होटल में ठहरा हुआ है। छोड़ रहा है होटल, नीचे टैक्सी में सब सामान रख आया है, तब उसे खयाल आया कि छाता कमरे में भूल आया है। सीढ़ियां चढ़कर वापस आया, चार मंजिल होटल। वापस पहुंचा तो देखा कि कमरा तो किसी नवविवाहित जोड़े को दे दिया जा चुका है। दरवाजा बंद है, अंदर कुछ बात चलती है। छाता बिना लिये जा नहीं सकता और अभी यह जो बात चलती है, उसको भी बिना सुने नहीं जा सकता। की-होल पर, चाबी के छेद पर कान लगाकर सुना। युवक अपनी पत्नी से कह रहा है, तेरे ये सुंदर बाल, ये आकाश में घिरी हुई घटाओं की तरह बाल, ये किसके हैं, देवी. ये बाल किसके हैं? देवी ने कहा, तुम्हारे। और किसके? 'ये तेरी आंखें, मछलियों की तरह चंचल', उस पुरुष ने पूछा, 'ये किसकी हैं? देवी, ये आंखें किसकी हैं?' उस स्त्री ने कहा, तुम्हारी, और किसकी? मुल्ला कुछ बेचैन हुआ। उसने कहा, ठहरो भाई! देवी, मुझे पता नहीं भीतर कौन है, लेकिन जब छाते का नंबर आये तो खयाल रखना, मेरा है। उसकी बेचैनी स्वाभाविक है। आएगा ही छाते का नंबर । सारी जिंदगी उठते-बैठते, क्या मेरा है इसकी फिक्र है- कहीं कोई और तो उस 'मेरे' पर कब्जा नहीं कर रहा है? कहीं कोई और तो उस 'मेरे' का मालिक नहीं बन रहा है? सवाल यह बड़ा नहीं है कि यह वस्तु किसकी हो जाएगी। वस्तु किसी की नहीं होती है। महावीर कहते हैं कि वस्तु किसी की नहीं होती है। उसे कभी पता नहीं चलता कि वह किसकी है। तुम लडते हो, मरते हो. समाप्त हो जाते हो, वस्तुएं अपनी जगह पड़ी रह जाती हैं। वही जमीन का टुकड़ा, जिसको आप अपना कह रहे हैं, कितने लोग उसे अपना कह चुके हैं। कभी हिसाब किया है, कितने लोग उसके दावेदार हो चुके हैं और जमीन के टुकड़े को जरा भी पता नहीं। दावेदार आते हैं और चले जाते हैं और जमीन का टुकड़ा अपनी जगह पड़ा रहता है। दावे सब काल्पनिक हैं, इमेजिनरी हैं।। ___ आप ही दावा करते हैं, आप ही दूसरे दावेदारों से लड़ लेते हैं, मुकदमे हो जाते हैं, सिर खुल जाते हैं, हत्याएं हो जाती हैं। वह जमीन का टुकड़ा अपनी जगह पड़ा रहता है। जमीन के टुकड़े को पता भी नहीं है। या अगर पता होगा तो पता दूसरे ढंग से होगा। जमीन का टुकड़ा कहता होगा, यह आदमी मेरा है। जो आदमी कह रहा है, यह जमीन मेरी है, अगर जमीन को कोई पता होगा तो जमीन का टुकड़ा कहता होगा, यह आदमी मेरा है। कौन जाने, जमीनों में मुकदमे चलते हों। आपस में संघर्ष हो जाता हो कि यह आदमी मेरा है, तुमने कैसे कहा कि मेरा है। अगर कोई जमीन को पता होता होगा तो उसको अपनी मालकियत का पता होता होगा। ध्यान रहे, हम सबको अपनी मालकियत का पता है। और मालकियत के लिए हम इतने उत्सुक हैं कि अगर जिंदा आदमी के हम मालिक न हो सके तो हम उसे मारकर भी मालिक होना चाहते हैं। 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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