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महावीर-वाणी भाग : 1
वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य की बुद्धि विकसित हुई उसके खड़े होने से। यह सच है। सभी पशु पृथ्वी के समानांतर जीते हैं, आदमी भर वर्टिकल खड़ा हो गया। सभी पशु पृथ्वी की धुरी से समानांतर होते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि आदमी का पैर पर खड़ा हो जाना ही उसकी तथाकथित बुद्धि का विकास है। लेकिन साथ ही- यह बुद्धि तो जरूर विकसित हो गयी, लेकिन साथ ही जीवन के अंतरतम से कास्मिक, जागतिक शक्तियों से उसके और गहरे सब संबंध शिथिल और क्षीण हो गये। उसे वापस लेटकर वे संबंध पुनस्थापित करने पड़ते हैं। इसलिए अगर मंदिरों में मूर्तियों के सामने, गिरजाघरों में, मस्जिदों में, लोग अगर झुककर जमीन में लेटे जा रहे हैं तो उसका वैज्ञानिक अर्थ है। झुककर लेटते ही डिफेंस टूट जाते हैं।
इसलिए फ्रायड ने जब पहली बार मनोचिकित्सा शरू की तो उसने अनभव किया कि अगर बीमार को बैठकर बात की जाए तो बीमार अपने डिफेंस मेजर नहीं छोड़ता। इसलिए फ्रायड ने कोच विकसित की, मरीज को एक कोच पर लिटा दिया जाता है। वह डिफेंसलेस हो जाता है। फिर फ्रायड ने अनुभव किया कि अगर उसके सामने बैठा जाए तो लेटकर भी वह थोड़ा अकड़ा रहता है। एक परदा डालकर फ्रायड परदे के पीछे बैठ गया। कोई मौजद नहीं रहा, मरीज लेटा हुआ है। वह पांच-सात मिनट में अपने डिफेंस छोड़ देता है। वह ऐसी बातें बोलने लगता है जो बैठकर वह कभी नहीं बोल सकता था। वह अपने ऐसे अपराध स्वीकार करने लगता है जो खड़े होकर उसने कभी भी स्वीकार न किये होते।
अभी अमरीका के कुछ मनोवैज्ञानिक फ्रायड के कोच के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। वे यह आंदोलन चला रहे हैं कि यह आदमी को बहुत असहाय अवस्था में डालने की तरकीब है। उनका कहना ठीक है। आंदोलन, कि गलत है— उनका कहना ठीक है। आदमी असहाय अवस्था में पड़ जाता है निश्चित ही लेटकर। असहाय इसलिए हो जाता है कि उसने अपने तरफ सुरक्षा का जो इंतजाम किया था वह गिर जाता है। __पर शरणागत को हमने मूल्य दिया है। और अगर परमात्मा की तरफ, अरिहंत की तरफ, सिद्ध की तरफ, भगवान की तरफ शरणागति हो तो वह तो सदा परदे के पीछे ही है एक अर्थ में। अगर महावीर मौजूद भी हों तो महावीर का शरीर परदा बन जाता है और महावीर की चेतना तो परदे के पीछे होती है। और कोई उनके समक्ष जब समर्पण कर देता है तो वह अपने को सब भांति छोड़ देता है, जैसे कोई नदी की धार में अपने को छोड़ दे और धार बहाने लगे- तैरे नहीं, बहाने लगे। शरणागति भाव है, फ्लोटिंग है, और जैसे ही कोई बहता है, वैसे ही चित्त के सब तनाव छूट जाते हैं। ___ एक फ्रेंच खोजी, इजिप्त के पिरामिडों में दस वर्षों तक खोज करता रहा है। उस आदमी का नाम है— बोविस। वह एक वैज्ञानिक
और इंजीनियर है। वह यह देखकर बहुत हैरान हुआ कि कभी-कभी पिरामिड में कोई चूहा भूल से या बिल्ली घुस जाती है और फिर निकल नहीं पाती- भटक जाती और मर जाती है। पर पिरामिड के भीतर जब भी कोई चूहा या बिल्ली या कोई प्राणी मर जाता है तो सड़ता नहीं। सड़ता नहीं, उसमें से दुर्गंध नहीं आती। वह ममीफाइड हो जाता है- सूख जाता है, सड़ता नहीं। ___ यह हैरानी की घटना है और बहुत अदभुत है। पिरामिड के भीतर इसके होने का कोई कारण नहीं है। और ऐसे पिरामिड के भीतर जो कि समुद्र के किनारे हैं जहां कि ह्युमिडिटी काफी है, जहां कि कोई भी चीज सड़नी ही चाहिये, और जल्दी सड़ जानी चाहिये, उन पिरामिड के भीतर भी कोई मर जाए तो सड़ता नहीं। मांस ले जाकर रख दिया जाए तो सूख जाता है, दुर्गंध नहीं देता। मछली डाल दी जाए तो सूख जाती है, सड़ती नहीं। तो बहुत चकित हो गया। इसका तो कोई कारण दिखाई नहीं पड़ता। बहुत खोजबीन की। आखिर यह खयाल में आना शुरू हुआ कि शायद पिरामिड का जो शेप है, वही कुछ कर रहा है।
लेकिन शेप, आकार कुछ कर सकता है! सब खोज के बाद कोई उपाय नहीं था। दस साल की खोज के बाद बोविस को खयाल
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