________________
शरणागति : धर्म का मूल आधार
के सब द्वार बंद हो जाते हैं।
कृष्णमूर्ति की अपील इस युग में इसीलिए है। न वे कहते- सब धर्म छोड़कर मेरी शरण आओ, न कोई साधक कहे उनसे कि मैं आता हूं तुम्हारी शरण। तो वे इनकार करते। वे कहते- मेरे पैर में मत गिर जाना, दूर रहो। और तब अहंकारी साधक बड़ा प्रसन्न होता है कि... पर उसकी अस्मिता घनी होती है। और उसे सहयोग नहीं पहुंचाया जा सकता। हमारा युग आध्यात्मिक दृष्टि से किसी को सहयोग पहुंचाना हो तो बड़ी कठिनाई का युग है। बुलाकर सहयोग देना तो कठिन, जैसा कृष्ण देते हैं; आये हुए को सहयोग देना भी कठिन, जैसा कि महावीर देते हैं। और कुछ आश्चर्य न होगा कि और थोड़े दिनों बाद सिद्ध को कहना पड़े साधक से, आपकी शरण में आता हं, स्वीकार करें! शायद तभी साधक माने कि ठीक, यह आदमी ठीक है। यह आध्यात्मिक विकृति है। शरण का इतना मूल्य क्या है- इसे हम दो-तीन दिशाओं से समझने की कोशिश करें। ___ पहले तो शरीर से ही समझने की कोशिश करें। मैं कल आपको बल्गेरियन डा. लौरेंजोव के इंस्टीट्यूट आफ सजैस्टोलाजी की बात कर रहा था। यह जानकर आपको आश्चर्य अनुभव होगा कि लोरेजोव ने शिक्षा पर यह जो अनूठे प्रयोग किये हैं, उससे जब पिछले एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पूछा गया कि तुम्हें इस अदभुत क्रांतिकारी शिक्षा के आयाम का कैसे स्मरण आया, किस दिशा से तुम्हें संकेत मिला? तो लौरेंजोव ने कहा कि मैं योग के- भारतीय योग के शवासन का प्रयोग करता था, और उसी से मुझे यह दृष्टि मिली।
शवासन से! शवासन की खूबी क्या है? शवासन का अर्थ है पूर्ण समर्पित शरीर की दशा, जब आपने शरीर को बिलकुल छोड़ दिया। पूरा रिलेक्स छोड़ दिया। जैसे ही आप शरीर को पूरा रिलेक्स छोड़ देते हैं- और शरीर को अगर पूरा रिलेक्स छोड़ना हो तो जमीन पर जो भारतीयों की पुरानी पद्धति है साष्टांग प्रणाम की, उस स्थिति में पड़कर ही छोड़ा जा सकता है। वह शरणागति की स्थिति है शरीर के लिए। अगर आप भूमि पर सीधे पड़ जाएं, सब हाथ-पैर ढीले छोड़कर सिर रख दें, सारे अंग भूमि को छूने लगें तो यह सिर्फ नमस्कार की एक विधि नहीं है, यह बहुत ही अदभुत वैज्ञानिक सत्यों से भरा हुआ प्रयोग है।
लौरेंजोव कहता है कि रात निद्रा में हमें जो विश्राम मिलता है और शक्ति मिलती है, उसका मूल कारण हमारा पृथ्वी के साथ समतुल लेट जाना है। लोरेंजोव कहता है- जब हम समतल पृथ्वी के साथ समानान्तर लेट जाते हैं तो जगत की शक्तियां हममें सहज ही प्रवेश कर पाती हैं। जब हम खड़े होते हैं तो शरीर ही खड़ा नहीं होता, भीतर अहंकार भी उसके साथ खड़ा होता है। जब हम लेट जाते हैं तो शरीर ही नहीं लेटता- उसके साथ अहंकार भी लेट जाता है। हमारे डिफेंस गिर जाते हैं, हमारे सुरक्षा के जो आयोजन हैं, जिनसे हम जगत को रेजिस्ट कर रहे हैं, वे गिर जाते हैं।
चेक यूनिवर्सिटी प्राग का एक व्यक्ति अनूठे प्रयोगों पर पिछले दस वर्षों से अनुसंधान करता है। वह व्यक्ति है- राबर्ट पावलिटा। थके हए आदमियों को पनः शक्ति देने के उसने अनठे प्रयोग किये हैं। आदमी थका है-आप बिलकल थके टूटे पडे हैं तो आपको एक स्वस्थ गाय के नीचे लिटा देता है, जमीन पर। पांच मिनट आपसे कहता है- सब छोड़कर पड़े रहें और भाव करें कि स्वस्थ गाय से आपके ऊपर शक्ति गिर रही है। पांच मिनट में यंत्र बताना शुरू कर देते हैं कि उस आदमी की थकान समाप्त हो गयी। वह ताजा होकर गाय के नीचे से बाहर आ गया। पावलिटा से बार-बार पूछा गया कि अगर हम गाय के नीचे बैठें तो? पावलिटा ने कहा कि जो काम लेटकर क्षण भर में होगा वह बैठकर घंटों में भी नहीं हो पाएगा। वृक्ष के नीचे लिटा देता है। पावलिटा कहता है- जैसे ही आप लेटते हैं, आपका जो रेजिस्टेंस है आपके चारों ओर, आपने अपने व्यक्तित्व की जो सुरक्षा की दीवारें खड़ी कर रखी हैं, वे गिर जाती हैं।
41
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org