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शरणागति : धर्म का मूल आधार
आया कि कहीं पिरामिड का जो शेप, जो आकृति है, वह तो कुछ नहीं करती! तो उसने एक छोटा पिरामिड माडल बनाया– छोटा सा, तीन-चार फीट का बेस लेकर, और उसमें एक मरी हुई बिल्ली रख दी। वह चकित हुआ, वह ममीफाइड हो गई, वह सड़ी नहीं। तब तो एक बहुत नये विज्ञान का जन्म हुआ, और वह नया विज्ञान कहता है-ज्यामिट्री की जो आकृतियां हैं उनका जीवन ऊर्जाओं से बहुत संबंध है। और अब बोविस की सलाह पर यह कोशिश की जा रही है कि सारी दुनिया के अस्पताल पिरामिड की शक्ल में बनाये जाएं। उनमें मरीज जल्दी स्वस्थ होगा। __ आपने सर्कस के जोकर को, हंसोड़े को जो टोपी लगाये देखा है, वह फूल्स कैप कहलाती है। उसी की वजह से कागज- जितने कागज से वह टोपी बनती है, वह फूल्स कैप कहलाता है। लेकिन बोविस का कहना है कि कभी दुनिया के बुद्धिमान आदमी वैसी टोपी लगाते थे। वह वाइज-कैप है, क्योंकि वह टोपी पिरामिड के आकार की है। और अभी बोविस ने प्रयोग किये हैं, फूल्स कैप के ऊपर। और उसका कहना है कि जिन लोगों को भी सिरदर्द होता है, वे पिरामिड के आकार की टोपी लगाएं, तत्क्षण उनका सिरदर्द दूर हो सकता है। जिनको भी मानसिक विकार हैं वे पिरामिड के आकार की टोपी लगाएं, उनके मानसिक विकार दूर हो सकते हैं। अनेक चिकित्सालयों में जहां मानसिक चिकित्सा की जाती है, बोविस की टोपी का प्रयोग किया जा रहा है, और प्रमाणित हो रहा है कि वह ठीक कहता है।
क्या टोपी के भीतर का आकार, आकृति इतना भेद ला दे सकती है! अगर बाह्य आकृतियां इतना भेद ला सकती हैं तो आंतरिक आकृतियों में कितना भेद पड़ सकेगा, वह मैं आपसे कहना चाहता हूं। शरणागति आंतरिक आकृति को बदलने की चेष्टा है, इनर ज्यामेट्री को। जब आप खड़े होते हैं तो आपके भीतर की चित्त-आकृति और होती है, और जब आप पृथ्वी पर शरण में लेट जाते हैं तो आपके भीतर की चित्त आकृति और होती है। चित्त में भी ज्यामेट्रिकल फिगर्स होते हैं। चित्त की आकृतियों में दो विशेष आकृतियां हैं, आपके खड़े होने का खयाल जमीन से नब्बे का कोण बनाता है। और जब आप जमीन पर लेट जाते हैं तो आप जमीन से कोई कोण नहीं बनाते, पैरेलल, समानांतर हो जाते हैं। अगर कोई परिपूर्ण भाव से कह सके कि मैं अरिहंत की शरण आता हं, सिद्ध की शरण आता हूं, धर्म की शरण आता हूं, तो यह भाव उसकी आंतरिक आकृति को बदल देता है। और आंतरिक आकृति बदलते ही, आपके जीवन में रूपांतरण शुरू हो जाते हैं। आपके अंतर में आकृतियां हैं। आपकी चेतना भी रूप लेती है। और आप जिस तरह का भाव करते हैं, चेतना उसी तरह का रूप ले लेती है।
चार साल पहले, सारे पश्चिम के वैज्ञानिक एक घटना से जितना धक्का खाये, उतना शायद पिछले दो सौ वर्षों में किसी घटना से नहीं खाये। दिमित्री दोजोनोव नाम का एक चेक किसान जमीन से चार फीट ऊपर उठ जाता है। और दस मिनट तक जमीन से चार फीट ऊपर, ग्रेवीटेशन के पार, गुरुत्वाकर्षण के पार दस मिनट तक रुका रह जाता है। सैकड़ों वैज्ञानिकों के समक्ष अनेकों बार यह प्रयोग दिमित्री कर चुका है। सब तरह की जांच-पड़ताल कर ली गयी है। कोई धोखा नहीं है, कोई तरकीब नहीं है।
दिमित्री से पूछा जाता है कि तेरे इस उठने का राज क्या है, तो वह दो बातें कहता है। वह कहता है- एक राज तो मेरा समर्पण भाव, कि मैं परमात्मा को कहता हूं कि मैं तेरे हाथ में अपने को सौंपता हूं, तेरी शरण आता हूं। मैं अपनी ताकत से ऊपर नहीं उठता, उसकी ताकत से ऊपर उठता हूं। जब तक मैं रहता हूं, तब तक मैं ऊपर नहीं उठ पाता।
दो-तीन बार उसके प्रयोग असफल भी गये। पसीना-पसीना हो गया। सैकड़ों लोग देखने आये हैं दूर-दूर से, और वह ऊपर नहीं उठ पा रहा है। आखिर में उसने कहा कि क्षमा करें। लोगों ने कहा- क्यों ऊपर नहीं उठ पा रहे हो? उसने कहा- नहीं उठ पा रहा इसलिए कि मैं अपने को भल ही नहीं पा रहा और जब तक मुझे मेरा खयाल जरा-सा भी बना रहे तब तक ग्रेवीटेशन काम
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