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________________ मनुष्यत्व : बढ़ते हुए होश की धारा हमारे ही बीच बोल रहे थे, लेकिन हम अंधे और बहरे हैं। आंखें हमारी धोखा हैं, कान हमारे सुनते नहीं। और जब जीसस बोलते हैं तब हम कान-आंख बिलकुल बंद कर लेते हैं, क्योंकि यह आदमी खतरनाक है। इसकी बात भीतर जायेगी तो दो ही उपाय हैं, यह बचेगा और तुम्हें मिटना पड़ेगा। अपने को हम सब बचाना चाहते हैं। सेंटपाल ने कहा है, नाउ आइ एम नॉट । जीसस लिब्ज इन मी। नाउ ही इज, एंड आइ एम नॉट। अब मैं नहीं है, अब जीसस मुझमें जीता है, अब जीसस ही हैं, मैं नहीं हूं। जो महावीर को सुनेगा, उसे एक दिन अनुभव करना पड़ेगा कि अब मैं नहीं हूं। तो ही सुनेगा। ___ श्रावक का यही अर्थ है-जो खुद मिटने को राजी है और गुरु को अपने भीतर प्रगट हो जाने के लिए द्वार खोलता है। जो अपने को हटा लेता है, जो अपने को मिटा लेता है, शून्य हो जाता है, एक ग्रहणशीलता, जस्ट ए रिसेटिविटी, और आने देता है। बड़ी मजेदार घटना है। एक बड़ा चोर था, महावीर जिस गांव में ठहरे। उस चोर ने अपने बेटे से कहा, तु और सब कुछ करना, लेकिन इस महावीर से बचना। इसकी बात सुनने मत जाना। ___ चोर ईमानदार था। आप जैसा होशियार नहीं था, नहीं तो कहता, सुनना, और सुनना भी मत। चोर ने कहा, सुनना ही मत । यह बात समझ की है, अपने काम की नहीं, अपने धंधे से मेल नहीं खाती। और यह आदमी खतरनाक है। इसकी सुन ली तो सदा का चला आया धंधा नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा। बड़ी मुश्किल से हम जमा पाये तू खराब मत कर देना। और तेरे लक्षण अच्छे नहीं मालूम पड़ते। तू उधर जाना ही मत, उस रास्ते ही मत निकलना। बाप की बात बेटे ने मानी। उस जमानों में तो बाप की बात मानते थे। बेटे ने उस रास्ते जाना छोड़ दिया, जहां महावीर बोला करते थे। जहां से गुजरते थे, वहां दूर से देख लेता कि महावीर आ रहे हैं तो वह भाग खड़ा होता, आज्ञाकारी बेटा...। ___ एक दिन भूल हो गयी। वह अपनी धुन में चला जा रहा था और महावीर बोल रहे थे, एक रास्ते के किनारे। उसे एक वाक्य सुनाई पड़ गया। वह भागा। उसने कहा कि यह बड़ी मुश्किल हो गयी। लेकिन. चंकि वह बचना चाह रहा था. जो बचना चाहता है उसका आकर्षण भी हो जाता है। चूंकि वह सुनना चाहता ही नहीं था, अपने कानों को बंद ही रखने की चेष्टा में लगा था, और कान पर अनजाने में एक वचन पड़ गया। उस वचन ने उसकी सारी जिंदगी बदल दी। उस वचन ने, उसकी सारी जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया। फिर वह वही नहीं रह सका, जो था। _क्या हआ होगा, एक वचन को सुनकर? महावीर का एक वचन भी चिंगारी है. अगर भीतर पहंच जाये। और चिं काफी है। बारूद तो हमारे भीतर सदा मौजूद है। विस्फोट हो सकता है। वह आत्मा मौजूद है जिसमें विस्फोट हो जाये, एक चिंगारी । लेकिन महावीर को कोई बिलकुल सारी बातें सुनता रहे तो भी जरूरी नहीं कि चिंगारी पहुंचे। हम तरकीबें बांध लेते हैं, उनसे हम चीजों को बाहर ही रख देते हैं। उनको हम भीतर नहीं जाने देते। सबसे अच्छी तरकीब यह है कि रोज सुनते रहो महावीर को, अपने आप बहरे हो जाओगे। जिस बात को लोग रोज सुनते हैं, उसे सुनना बंद कर देते हैं। इसलिए धर्म-श्रवण बड़ी अच्छी चीज है। उससे धर्म से बचने में रास्ता मिलता है। रोज धर्म-सभा में चले जाओ। वहां सोये रहो। अकसर लोग सोते ही हैं धर्म सभा में, और कुछ करते नहीं। जिनको नींद नहीं आती, वे तक सोते हैं। जिनको अनिद्रा की बीमारी है, डाक्टर उनको सलाह देते हैं, धर्म-सभा में चले जाओ। जिनको सर्दी जुकाम हो गया है, वे और कहीं नहीं जाते, सीधे धर्म-सभा में जाकर खांसते-खंखारते रहते हैं। मुझे ऐसा लगता है, धर्म-सभा में जिनको खांसी जुकाम है वही जगे रहते हैं। या उनकी खांसी वगैरह से कोई आसपास जग जाये, बात अलग, नहीं तो गहरी नींद रहती है। 521 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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