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महावीर-वाणी भाग : 1 मुल्ला नसरुद्दीन एक धर्म-सभा में बोल रहा था। एक आदमी उठ कर जाने लगा तो उसने कहा कि प्यारे, बैठ जाओ। मेरे बोलने में तुम्हारे जाने से अड़चन पड़ती है, ऐसा नहीं, जो सो गये हैं, उनकी नींद न तोड़ देना। शांति से बैठ जाओ। सोये हुए लोगों पर दया करो।
धर्म-सभा में हम क्यों सो जाते हैं? सुनते-सुनते कान पक गये हैं वही बातें। हम हजार दफे सुन चुके हैं। अब सुनने योग्य कुछ नहीं बचा। यह सबसे आसान तरकीब है धर्म से बचने की। बेईमान कानों ने तरकीब निकाल ली है, बेईमान आंखों ने तरकीबें निकाल
ली हैं। ___ अगर महावीर सामने भी आपके आकर खड़े हो जायें तो आपको महावीर नहीं दिखायी पड़ेंगे, दिखायी पड़ेगा कि एक नंगा आदमी
खड़ा है। यह आपकी आंखों की तरकीब है। बड़े मजे की बात है, महावीर सामने हों तो भी नंगा आदमी दिखेगा, महावीर नहीं दिखेंगे। आप जो देखना चाहते हैं, वही दिखता है, जो है वह नहीं। इसलिए महावीर को लोगों ने गांवों से खदेड़ा, भगाया। यहां मत रखो, यह आदमी नंगा है। नंगे आदमी को गांव में घुसने देना खतरनाक है। कुछ न दिखायी पड़ा उनको महावीर की नग्नता दिखायी पड़ी। महावीर में बहुत कुछ था और महावीर बिलकुल नग्न खड़े थे, कपड़े की भी ओट न थी। देखना चाहते तो उनके बिलकुल भीतर देख लेते लेकिन सिर्फ उनकी चमड़ी और उनकी नग्नता दिखायी पड़ी। __ हम जो देखना चाहते हैं वह देखते हैं, जो सुनना चाहते हैं वह सुनते हैं। इसलिए महावीर कहते हैं, धर्म-श्रवण दुर्लभ है। फिर श्रद्धा और भी दुर्लभ है। जो सुना है उस पर श्रद्धा। जो सुना है, मन हजार तर्क उठाता है। वह कहता है, यह ठीक है, यह गलत है। और बड़ा मजा यह है कि हम कभी नहीं यह पूछते कि कौन कह रहा है गलत है? कौन कह रहा है ठीक? यह मन जो हमसे कह रहा है, यह हमें कहा ले गया? किस चीज तक इसने हमें पहुंचाया? किसकी हम बात मान रहे हैं? इस मन ने हमें कौन-सी शांति दी, कौन-सा आनंद दिया, कौन-सा सत्य? इस मन ने हमें कुछ भी न दिया, मगर यह हमारे सलाहकार हैं, ये हमारे कांस्टेंट, परमानेन्ट काउन्सलर हैं। वे अंदर बैठे हुए हैं, वे कह रहे हैं, यह गलत है।
हम सारी दुनिया पर शक कर लेते हैं, अपने मन पर कभी शक नहीं करते। श्रद्धा का मतलब है, जिसने अपने मन पर शक किया। हम सारी दनिया पर संदेह कर लेते हैं। महावीर हों तो उन पर संदेह करेंगे, कि पता नहीं ठीक कह रहे हैं, कि गलत कह रहे हैं. कि पता नहीं क्या मतलब है, कि पता नहीं रात में घर ठहरायें और एकाध चादर लेकर नदारद हो जायें! नंगे आदमी का क्या भरोसा, पता नहीं क्या प्रयोजन है? हमें...और हमारा जो मन है, उसके हम सदा, उस पर श्रद्धा रखते हैं, यह बड़े मजे की बात है। हमारे मन पर हमें कभी अश्रद्धा नहीं आती। उसको हम मान कर चलते हैं। ___ क्या है उसमें मानने जैसा? क्या है अनुभव पूरे जीवन का, और अनेक जन्मों का क्या है अनुभव? मन ने क्या दिया है? लेकिन वह हमारा है। यह वहम सुख देता है और हम सोचते हैं, हम अपनी मान कर चल रहे हैं। अपनी मानकर हम मरुस्थल में पहुंच जायें, भटक जायें, खो जायें तो भी राहत रहती है कि अपनी ही तो मान कर तो चल रहे हैं! दूसरे की मान कर मोक्ष भी पहुंच जायें तो मन में एक पीड़ा बनी रहती है कि अरे, दूसरे के पीछे चल रहे हैं। वह अहंकार को कष्टपूर्ण है। ___ इसलिए महावीर कहते हैं, और भी दुर्लभ, श्रद्धा। श्रद्धा का अर्थ है, जब धर्म का वचन सुना जाये तो अपने मन को हटा कर, उसके प्रति स्वीकति लाकर जीवन को बदलना। उस पर आस्था, क्योंकि आस्था न हो तो बदलाहट का कोई उपाय ही नहीं है। जो सुना है, जो समझा है, जिसे भीतर जाने दिया है, तो भीतर मन बैठा है, वह हजार तरकीबें उठायेगा। कि इसमें यह भूल है, इसमें यह चूक है, यह ऐसा क्यों है, वह वैसा क्यों है? उन्होंने कल ऐसा कहा, आज ऐसा कहा, हजार सवाल मन उठायेगा। इन सवालों को
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