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________________ महावीर वाणी भाग : 1 उस संन्यासी ने कहा, इसलिए नहीं रोता हूं, इसलिए रोता हूं कि मेरी मौत करीब है, और यह लड़का बुद्ध होगा । मैं 'चूक जाऊंगा। और यह कल्पों-कल्पों में कभी कोई बुद्ध होता है। मैं रो रहा हूं क्योंकि मैं चूका। मेरी मौत करीब है, और कुछ पक्का नहीं है जब यह बुद्ध होगा तब मैं दुबारा जन्म ले सकूं। इसलिए रो रहा हूं। धर्म-श्रवण का अर्थ है, जिसने जाना हो, उससे सुनना । इसलिए महावीर कहते हैं, दुर्लभ है। जिसने सुना हो, उससे सुनना तो बिलकुल दुर्लभ नहीं है। जिसने जाना हो, उससे सुनना दुर्लभ है। मगर यह दुर्लभता अनेक आयामी है। एक तो महावीर का होना दुष्कर, बुद्ध का होना दुष्कर, कृष्ण का होना दुष्कर। फिर वे हों भी, वे बोल भी रहे हों तो आपका सुनना दुष्कर । इसलिए कहा कि श्रवण दुष्कर है, क्योंकि महावीर खड़े हो जायें तो भी आप सुनेंगे, यह जरूरी नहीं है। जरूरी तो यही है कि आप नहीं सुनेंगे। क्यों नहीं सुनेंगे? क्योंकि महावीर को सुनना अपने को मिटाने की तैयारी है। वह किसी की भी तैयारी नहीं है। महावीर दुश्मन से मालूम होंगे। महावीर की गैर मौजूदगी में नहीं मालूम होते, महावीर मौजूद होंगे तो दुश्मन से मालूम होंगे। महावीर का साधु दुश्मन नहीं मालूम होगा। वह साधु आपका गुलाम है। वह साधु आपसे इशारे मांग कर चलता है, आपकी सलाह से जीता है। आप पर निर्भर है। उससे आपको कोई तकलीफ नहीं है। वह तो आपकी सामाजिक व्यवस्था का एक हिस्सा है, और एक लिहाज से अच्छा है, लुब्रीकेटिंग है। कार में थोड़ा-सा लुब्रीकेशन डालना पड़ता है, उससे चक्के ठीक चलते हैं। आपके संसार में भी आपके साधु लुब्रीकेशन का काम करते हैं, उससे संसार अच्छा चलता है 1 दिन भर दुकान पर उपद्रव किये, पाप किये, बेईमानी की, झूठ बोले, सांझ को साधु के चरणों में जाकर बैठ गये, धर्म-श्रवण किया । उससे मन ऐसा हुआ कि छोड़ो भी, हम भी कोई बुरे आदमी नहीं हैं। कल की फिर तैयारी होगी। यह लुब्रीकेटिंग है। ये आपको भी वहम देते हैं कि आप भी संसारी नहीं हैं, थोड़े तो धार्मिक हैं। वह थोड़ा धार्मिक होना चक्कों को, पहियों को तेल डाल देता है और ठीक से चला देता है। संसार ठीक से चलता है साधुओं की वजह से। क्योंकि साधु आपको समझाये रखते हैं कि कोई बात नहीं, अगर महाव्रत नहीं ते तो अणुव्रत साधो । अगर बड़ी चोरी नहीं छूटती तो छोटी-छोटी चोरी छोड़ते रहो । तरकीबें बताते रहते हैं कि संसार में भी रहे आओ और तेल भी डालते रहो कि चक्के ठीक से चलते रहें। तुम्हें भ्रम भी बना रहे कि तुम भी धार्मिक हो, और धार्मिक होना भी न पड़े। मंदिर है, पुरोहित है, साधु है, ये काम कर रहे हैं। वे आपके संसार के एजेंट हैं। वे आपको संसार में आपको मोक्ष का भ्रम दिलवाते रहते हैं । लेकिन महावीर या बुद्ध दुश्मन मालूम पड़ते हैं, शत्रु मालूम पड़ते हैं, क्योंकि वे जो भी कहते हैं वह आपकी आधारशिलाएं गिराने वाली बातें हैं। वे जो भी कहते हैं, उससे आपका मकान गिरेगा, जलेगा, आप मिटेंगे। आप मिटेंगे तो ही उन्हें श्रवण कर पायेंगे। नहीं तो उनको श्रवण भी नहीं कर पायेंगे। इसलिए महावीर कहते हैं, धर्म-श्रवण अति दुर्लभ है। आप सुनने को राजी नहीं हैं। जीसस बार-बार कहते हैं बाइबिल में, जिनके पास कान हैं, वे सुन लें। सबके पास कान थे। जिनसे वो बात कर रहे थे। क्योंकि बहरे तो अपने आप ही नहीं आये होंगे। जिनसे भी वे बात कर रहे होंगे उन सबके पास कान थे। लेकिन ऐसा मालूम पड़ता है बाइबिल को पढ़कर कि वे बहरों के बीच बोलते रहे, क्योंकि वे हमेशा कहते हैं कि जिनके पास कान हों, वे सुन लें। जिनके पास आंख हो वे देख लें। यह मामला अजीब है। क्या अंधों के अस्पताल में चले गये थे? कि बहरों के अस्पताल में बोल रहे थे? क्या कर रहे थे वे ? Jain Education International 520 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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