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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 बेटे की हत्या करना भी इतना कठिन नहीं है, अगर खुद के मरने की भीतर घड़ी आये, तब। बेटा फिर भी दूर है और बेटे की हत्या करने वाले बाप मिल जायेंगे। ऐसे तो सभी बाप थोड़ी बहुत हत्या करते हैं लेकिन वह अलग बात है। बाप की हत्या करने वाले बेटे मिल जायेंगे। एक सीमा पर सभी बेटे बाप से छुटकारा चाहते हैं, लेकिन वह अलग बात है। लेकिन, आदमी जब अपने की ही हत्या पर उतरने की स्थिति आ जाती है, और जब ध्यान में ऐसी घड़ी आती है कि शरीर छूट तो नहीं जायेगा! सांस बंद तो नहीं हो जायेगी! तब आपकी बुद्धि कोई भी उपयोग की नहीं, क्योंकि आपका कोई अनुभव काम नहीं पड़ेगा। वहां गुरु कहता है कि ठीक है, हो जाने दो बंद सांस। उस वक्त क्या करिएगा? अगर आज्ञा मानने की आदत न बन गयी हो। अगर गुरु के साथ असंगत में भी उतरने की तैयारी न हो गयी हो, तो आप वापस लौट आयेंगे, आप भाग जायेंगे। उस वक्त तो मृत्यु को एक किनारे रख कर वह गुरु जो कहता है, वह ठीक है। __ और बड़े मजे की बात है, आप मरेंगे नहीं, बल्कि इस ध्यान में जो मृत्यु घटेगी, इससे ही आप पहली दफा जीवन का स्वाद, जीवन का अनुभव कर पायेंगे। लेकिन उसके लिए आपकी बुद्धि तो कोई भी सहारा नहीं दे सकती। बुद्धि तो वही सहारा जानती हो। यह आपने कभी जाना नहीं है। यह तो मामला ठीक ऐसा ही है कि बेटा हाथ बाप का पकड़ लेता है और फिर फिक्र छोड़ देता है कि ठीक, बाप साथ है, उसकी चिंता नहीं है कुछ। अब जंगल में शेर भी चारों तरफ भटक रहे हों तो बेटा गुनगुनाता हुआ, गीत गाता, बाप का हाथ पकड़ कर चलता है। बाप के हाथ में हाथ है, बात खत्म हो गयी। अगर बाप उससे कह दे कि यह सामने जो शेर आ रहा है, इससे गले मिल लो, तो बेटा मिल लेगा।। __ आज्ञा का अर्थ है-असंगत घटनाएं घटेंगी साधना में, जिनके लिए बुद्धि कोई तर्क नहीं खोज पाती। तब कठिनाइयां शुरू होती हैं, तब संदेह पकड़ना शुरू होता है। तब लगता है कि भाग जाओ इस आदमी से, बच जाओ इस आदमी से। तब बुद्धि बहुत-बहुत उपाय करेगी कि यह आदमी बहुत गलत है, इसकी बात मत मानना। तब बुद्धि ऐसी पच्चीस बातें खोज लेगी, जिनसे यह सिद्ध हो जाये कि यह आदमी गलत है, इसलिए इसकी यह बात मानना भी उचित नहीं है। छोड़ दो। इसलिए महावीर कहते हैं, 'जो मनुष्य गुरु की आज्ञा पालन करता हो, उसके पास रहता हो' । पास रहना बड़ी कीमती बात थी। पास रहना एक आंतरिक घटना है। शारीरिक रूप से पास रहना. रहने का उपयोग है लेकिन आत्मिक रूप से, मानसिक रूप से पास रहने का बहुत उपयोग है। यह जो जीवन की आत्यंतिक कला है, इसे सीखना हो तो गुरु के इतने पास होना चाहिए, जितने हम अपने भी पास नहीं। जैसे कोई आपकी छाती में छुरा भोंक दे तो गुरु का स्मरण पहले आये, बाद में अपना, कि मैं मर रहा हूं। यह अर्थ हुआ पास रहने का। ___ पास रहने का मतलब है, एक आंतरिक निकटता सामीप्य। हम अपने से भी ज्यादा पास है, अपने से भी ज्यादा भरोसा, अपने से भी ज्यादा स्मरण। यह जो घटना है पास होने की, निकट होने की, यह शारीरिक तल पर भी बड़ी मूल्यवान है। इसलिए गुरु के पास शारीरिक रूप से रहने का भी बड़ा अर्थ है। अधिकतम गुरु, अगर हम उपनिषद के गुरुओं में लौट जायें, या महावीर-महावीर के साथ दस हजार साधु-साध्वियों का समूह चलता था। महावीर के पास होना ही मूल्य उसका। क्या अर्थ है इस पास होने का? इस पास होने का एक ही अर्थ है कि मेरे मैं की जो आवाज है, वह धीरे-धीरे कम हो जाये। हम जब भी बोलते हैं तो मैं हमारा केंद्र होता है। गुरु के पास रहने का अर्थ है, मैं केंद्र न रह जाये, गुरु केन्द्र हो जाये। महावीर के पास दस हजार साधु-साध्वी हैं। उनका अपना होना कोई भी नहीं है। महावीर का होना ही सब कुछ है। 490 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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