SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनय शिष्य का लक्षण है जा रहा है। गांव में भीड़ इकट्ठी हो गयी है। क्या पागल हो गया है बायजीद ! लोग हंस रहे हैं, लोग मजाक उड़ा रहे हैं। किसी की समझ में नहीं आ रहा, क्या हो गया? वह पूरे गांव में चक्कर लगाकर अपनी सारी प्रतिष्ठा को धूल में मिलाकर, मिट्टी होकर वापस लौट आया। गुरु ने उसे छाती से लगा लिया और गुरु ने कहा, बायजीद अब तुझे कोई भी आज्ञा न दूंगा। पहचान हो गयी। अब काम की बात शुरू हो सकती है। आज्ञा का अर्थ है जो एब्सर्ड मालूम पड़े, जिसमें कोई संगति न मालूम पड़े। क्योंकि जिसमें संगति मालूम पड़े, आप मत सोचना, आपने आज्ञा मानी। आपने अपनी बुद्धि को माना । अगर मैं आपसे कहूं, कि दो और दो चार होते हैं, यह मेरी आज्ञा है, और आप कहें, बिलकुल ठीक, मानते हैं आपकी आज्ञा, दो और दो चार होते हैं। आप मुझे नहीं मान रहे हैं, आप अपनी बुद्धि को मान रहे हैं। दो और दो पांच होते हैं और आप कहें कि हां, दो और दो पांच होते हैं, तो आज्ञा । बाइबिल में घटना है। एक पिता को आज्ञा हुई कि वह जाकर अपने बेटे को फलां-फलां वृक्ष के नीचे काट कर और बलिदान कर दे। उसने अपने बेटे को उठाया, फरसा लिया और जंगल की तरफ चल पड़ा। सोरेन कीर्कगार्ड ने इस घटना पर बड़े महत्वपूर्ण काम किये हैं, बड़े गहरे काम किये हैं। यह बात बिलकुल फिजूल है, क्योंकि सोरेन कीर्कगार्ड कहता है उस पिता को, यह तो सोचना ही चाहिए था, कहीं यह आज्ञा मजाक तो नहीं है । यह तो सोचना ही चाहिए था कि यह आज्ञा अनैतिक कृत्य है कि पिता बेटे की हत्या कर दे ! कुछ तो विचारना था! लेकिन उसने कुछ भी न विचारा । फरसा उठाया और बेटे को लेकर चल पड़ा। यह हमें भी लगेगी, जरूरत से ज्यादा बात है। और यह 'अंधापन है, और यह तो मूढ़ता है। लेकिन कीर्कगार्ड भी कहता है कि यह सारा परीक्षण पहले कर लेना चाहिए। लेकिन एक बार परीक्षण पूरा हो गया हो तो फिर छोड़ देना चाहिए सारी बात । अगर परीक्षण सदा ही जारी रखना है तो गुरु और शिष्य का संबंध कभी भी निर्मित नहीं हो सकता। महत्वपूर्ण वह संबंध निर्मित होना है। I वक्त पर खबर आ गयी कि हत्या नहीं करना है फरसा उठ गया था और गला काटने के करीब था। लेकिन यह गौण बात वापस लौट आया है पिता अपने बेटे को लेकर, लेकिन अपनी तरफ से हत्या करने की आखिरी सीमा तक पहुंच गया था। फरसा उठ गया था और गला काटने के करीब था । यह घटना तो सूचक है। शायद ही कोई गुरु आपको कहे कि जाकर बेटे की हत्या कर आयें। लेकिन, घटना में मूल्य सिर्फ इतना है कि अगर ऐसा भी हो, तो आज्ञापालन ही शिष्य का लक्षण है। क्योंकि आज्ञा को इतना मूल्यवान – पहले ही सूत्र के हिस्से में आज्ञा - को इतना मूल्यवान महावीर क्यों कह रहे हैं? आपकी बुद्धि जो-जो समझ सकती है इस जगत में, वह जैसे-जैसे आप भीतर प्रवेश करेंगे, उसकी समझ क्षीण होने लगेगी कि वहां काम नहीं पड़ेगी। और अगर आप यही भरोसा मान कर चलते हैं कि मैं अपनी बुद्धि से ही चलूंगा तो बाहर की दुनिया तो ठीक, भीतर की दुनिया में प्रवेश नहीं हो सकेगा। भीतर तो घड़ी-घड़ी ऐसे मौके आयेंगे जब गुरु कहेगा कि करो। और तब आपकी बुद्धि बिलकुल इनकार करेगी कि मत करो। क्योंकि अगर ध्यान की थोड़ी-सी गहराई बढ़ेगी तो लगेगा कि मौत घट जायेगी। अब आपका कोई अनुभव नहीं है। जब भी ध्यान गहरा होगा तो मौत का अनुभव होगा। ऐसा लगेगा, मरे । गुरु कहेगा, मरो, बढ़ो, मरोगे ही न! मर जाना। तब आपकी बुद्धि कहेगी, अभी यह क्या हो रहा है, अब आगे कदम नहीं बढ़ाया जाता । Jain Education International 489 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy