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महावीर-वाणी
भाग : 1
ध्यान रहे, जब बुद्धि लेती है, देती है, तो यह समतल पर घटित होता है। जब हृदय लेता-देता है तो यह समतल पर घटित नहीं होता। हृदय को तो लेना हो तो उसे पात्र की तरह खुला हुआ नीचे हो जाना पड़ता है। जैसे पानी नीचे की तरफ बहता है। तो जब हृदय को लेना हो...। वर्षा हो रही हो तो पात्र को नीचे रख देना पड़ता है, पानी उसमें भर जाये। पात्र को उस धारा के नीचे होना चाहिए जहां से लेना है, अगर हृदय का लेन-देन है। बुद्धि का लेन-देन समतल पर होता है। ___ इसलिए पश्चिम में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच कोई रिस्पेक्ट, कोई समादर की बात नहीं है। और अगर कोई समादर है तो
औपचारिक है, और अगर कोई समादर है तो कक्षा के भीतर है, बाहर तो कोई सवाल नहीं है। शिक्षक और विद्यार्थी का संबंध एक खण्ड संबंध है। पूरब में गुरु और शिष्य का संबंध एक अखण्ड संबंध है, समग्र।
यह जो हृदय का लेन-देन है, इसमें शिष्य को पूरी तरह झुक जाना जरूरी है। शिष्य का अर्थ ही है जो झुक गया। हृदय के पात्र को जिसने चरणों में रख दिया। इसलिए इस लेन-देन में श्रद्धा अनिवार्य अंग हो गयी। श्रद्धा का केवल इतना ही अर्थ है कि जिससे हम ले रहे हैं, उससे हम पूरा लेने को राजी हैं। उसमें हम कोई जांच-पड़ताल न करेंगे। इसका यह मतलब नहीं है कि जांच-पड़ताल की मनाही है। इसका केवल इतना मतलब है कि खूब जांच-पड़ताल कर लेना, जितनी जांच-पड़ताल करनी हो, कर लेना लेकिन जांच-पड़ताल जब पूरी हो और गुरु के करीब पहुंच जाओ, और चुन लो कि यह रहा गुरु, तो फिर जांच-पड़ताल बंद कर देना और पात्र को नीचे रख लेना। और अब सब द्वार खुले छोड़ देना, ताकि गुरु सब मार्गों से प्रविष्ट हो जाये। । जांच-पड़ताल की मनाही नहीं है, लेकिन उसकी सीमा है। खोज लेना पहले, गुरु की खोज कर लेना जितनी बन सके। लेकिन जब खोज पूरी हो जाये और लगे कि यह आदमी रहा, तो फिर खोज बंद कर देना। फिर खोल देना अपने हृदय को।
शिष्य, इसलिए अलग शब्द है, उसका अर्थ विद्यार्थी नहीं है। शिष्य विद्यार्थी नहीं है, विद्या नहीं सीख रहा है। शिष्य जीवन सीख रहा है और जीवन के सीखने का मार्ग शिष्य के लिए विनय है। __ यह सूत्र विनय-सूत्र है। इसमें महावीर ने कहा है, जो मनुष्य गुरु की आज्ञा पालता हो, उनके पास रहता हो, गुरु के इंगितों को
, तथा कार्य-विशेष में गुरु की शारीरिक अथवा मौखिक मुद्राओं को ठीक-ठीक समझ लेता हो, वह मनुष्य विनय-सम्पन्न कहलाता है।
विनय, शिष्य का लक्षण है, ह्यूमिलिटी, हम्बलनेस, झुका हुआ होना, समर्पित भाव। इस शब्दों को हम एक-एक समझ लें। _ जो गुरु की आज्ञा पालता हो।
गुरु कहे, बैठ जाओ तो बैठ जाये, कहे खड़े हो जाओ तो खड़ा हो जाये। इसका अर्थ आज्ञापालन नहीं है। आज्ञापालन का अर्थ तो है, जहां आपकी बुद्धि इंकार करती है, वहां पालन।
सुना है मैंने, बायजीद अपने गुरु के पास गया, तो गुरु ने पूछा, कि निश्चित ही तुम आ गये हो मेरे पास? तो वस्त्र उतार दो, नग्न हो जाओ, जूता हाथ में ले लो, अपने सिर पर मारो और पूरे गांव का एक चक्कर लगा आओ। __ और भी लोग वहां मौजूद थे। उसमें से एक आदमी के बर्दाश्त के बाहर हुआ। उसने कहा, यह क्या मामला है, कोई अध्यात्म
| आया है कि पागल होने? लेकिन बायजीद ने वस्त्र उतारने शुरू कर दिये। उस आदमी ने बायजीद को कहा, ठहरो भी. पागल तो नहीं हो? और बायजीद के गुरु को कहा, यह आप क्या करवा रहे हैं? यह जरा ज्यादा है, थोड़ा ज्यादा हो गया। फिर बायजीद की गांव में प्रतिष्ठा है। क्यों उसकी प्रतिष्ठा धल में मिलाते हैं?
लेकिन बायजीद नग्न हो गया। उसने हाथ में जूता उठा लिया। वह गांव के चक्कर पर निकल गया। वह अपने को जूता मारता
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