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________________ मंगल व लोकोत्तम की भावना रहेगा। और दो साल का कोर्स वह बीस दिन में पूरा कर लेता है किसी भी भाषा का। और बीस दिन में आदमी उतना कुशल हो जाता है दूसरी भाषा बोलने में, जितना दो साल में नहीं हो पाता है। बात क्या है? बात कुल इतनी ही है कि नीचे गहरे में हमारी बड़ी क्षमताएं छिपी हैं। आप अपने घर से यहां तक आये हैं। अगर आप पैदल चलकर आये हैं तो क्या आप बता सकते हैं कि रास्ते पर कितने बिजली के खंभे पड़े थे? आप कहेंगे कि मैं कोई पागल हं! मैं उनकी गिनती नहीं करता। लेकिन आपको बेहोश करके पूछा जाए तो आप संख्या बता सकते हैं, ठीक संख्या। आप जब चले आ रहे थे इधर, तब आपका ऊपरी मन तो इधर आने में लगा था। हार्न बज रहा था, उसमें लगा था। कोई टकरा न जाए, उसमें लगा था। लेकिन आपके नीचे का मन सब कुछ रिकार्ड कर रहा है, रास्ते पर पड़े हुए लैंप पोस्ट भी, लोग निकले वह भी, हार्न बजा वह भी, कार का नंबर दिखाई पड़ गया वह भी- वह सब नोट कर रहा है। वह सब आपको याद हो गया है। आपके चेतन को कोई पता नहीं है। कहना चाहिए आपको कोई पता नहीं। वह जो पानी के ऊपर निकला हुआ द्वीप, आईलैंड है उसको कुछ पता नहीं। लेकिन नीचे जो जुड़ी हुई भूमि का विस्तार है, वहां सब पता है। ___ तो महावीर बोले नहीं, चुपचाप बैठे हैं। और इसीलिए यही कारण है कि महावीर का धर्म बहुत व्यापक नहीं हो पाया। बहुत लोगों तक नहीं पहुंच पाया। क्योंकि महावीर बोलते तो सबकी समझ में आता। महावीर नहीं बोले तो उनकी ही समझ में आया जो उतने गहरे जाने को तैयार थे। इसलिए महावीर का धर्म बहुत सिलेक्टिव, बहुत 'चूजन फ्यू' के लिए है। जो उस जगत में महावीर के वक्त श्रेष्ठतम लोग थे, वे ही महावीर को सुन पाये। वे श्रेष्ठतम चाहे पौधों में हों और चाहे पशुओं में और चाहे आदमियों में। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महावीर को सुनने के पहले बड़े प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता था। ध्यान की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता, ताकि जब आप महावीर के सामने बैठे तब आपका जो वाचाल मन है. वह जो निरंतर उपद्रव से ग्रस्त बीमार मन है वह शांत हो जाए और आपकी जो गहन आत्मा है, वह महावीर के सामने आ जाए। संवाद हो सके उस आत्मा से। इसलिए महावीर की वाणी को पांच सौ वर्ष तक फिर रिकार्ड नहीं किया गया। तब तक रिकार्ड नहीं किया गया, जब तक ऐसे लोग मौजूद थे जो महावीर के शरीर के गिर जाने के बाद भी महावीर से संदेश लेने में समर्थ थे। जब ऐसे लोग भी समाप्त होने लगे, तब घबराहट फैली, और तब संग्रहीत करने की कोशिश की गयी। इसलिए जैनों का एक वर्ग दिगंबर महावीर की किसी भी वाणी को आथेंटिक नहीं मानता। उसका मानना है कि चूंकि वह उन लोगों के द्वारा संग्रहीत की गयी है जो दुविधा में पड़ गये थे और जिन्हें शक पैदा हो गया था कि महावीर से अब संबंध जोड़ना संभव है या नहीं, इसलिए वह प्रामाणिक नहीं कही जा सकती। इसलिए दिगंबर जैनों के पास महावीर का कोई शास्त्र नहीं है कोई शास्त्र ही नहीं है। वे कहते हैं. सब खो गया। श्वेतांबरों के पास नहीं है। क्योंकि जिन्होंने संग्रहीत किया उन्होंने कहा-हम थोडी सी बातें भर प्रामाणिक लिख सकते हैं। बाकी और सब अंग खो गये हैं। उनको जानने वाले अब कोई भी नहीं हैं। इसलिए वह भी अधूरा है। लेकिन महावीर की पूरी वाणी को कभी भी पुनः पाया जा सकता है और उसके पाने का ढंग यह नहीं होगा कि महावीर के ऊपर जो किताबें लिखी रखी हैं उनमें खोजा जाए। उसके पुनः पाने का ढंग यही होगा कि वैसा ग्रुप, वैसा स्कूल, वैसे थोड़े से लोग जो चेतना की उस गहराई तक जा सकें जहां से महावीर से आज भी संबंध जोड़ा जा सकता है। इसलिए महावीर ने कहा- 'केवलिपन्नत्तो धम्म'- शास्त्र नहीं। वही धर्म उत्तम है जो तुम केवली से संबंधित होकर जान सको, बीच में शास्त्र से संबंधित होकर नहीं। और केवली से कभी भी संबंधित हुआ जा सकता है। लेकिन शास्त्र बाजार में मिल जाते हैं। केवली से संबंधित होना हो तो बड़ी गहरी 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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