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महावीर-वाणी
भाग : 1
कीमत चुकानी पड़ती है। फिर स्वयं के भीतर बहुत कुछ रूपांतरित करना पड़ता है। महावीर कहते थे— बिना कीमत चुकाये कुछ भी नहीं मिलता है। और जितनी बड़ी चीज पानी हो, उतनी बड़ी कीमत चुकानी चाहिए।
इसलिए आखिरी बात
जब वे बार-बार कहते हैं कि अरिहंत उत्तम हैं, सिद्ध उत्तम हैं, साधु उत्तम हैं, केवली-प्ररूपित धर्म उत्तम है; तब वे यह भी कह रहे हैं कि इतने उत्तम को पाने के लिए तैयारी रखना सब कुछ चुकाने की। क्योंकि मूल्य है, मुफ्त नहीं मिल सकेगा। हम सब मुफ्त लेने के आदी हैं। हम कुछ भी चुकाने को तैयार नहीं हैं। सड़ी-गली चीज को खरीदने के लिए हम सब कुछ चुकाने को तैयार हैं। धर्म मुफ्त मिलना चाहिए। असल में इससे पता चलता है- हम मुफ्त उसी चीज को लेने को तैयार होते हैं जिसको हम लेने को आग्रहशील नहीं हैं। जिसको हम कहते हैं कि मुफ्त देते हैं तो दे दें वरना क्षमा करें। महावीर कहते हैं—जो इतना उत्तम है, लोक में जो सर्वश्रेष्ठ है, उसे चुकाने को सब कुछ खोना पड़ेगा, स्वयं को। और जब भी कोई स्वयं को खोने को तैयार है तो वह केवलीप्ररूपित धर्म से सीधा, डायरेक्ट संबंधित, संयुक्त हो जाता है। वही धर्म, जो जाननेवाले से सीधा मिलता हो, बिना मध्यस्थ के, वही श्रेष्ठ है।
आज इतना ही। बैठेंगे पांच-सात मिनिट...!
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