SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 1 है, और कुछ नहीं मालूम पड़ता। लेकिन बेहोशी में मुझे भी थोड़ी स्मृति रहती है कि तुम जो बोलते हो, मैं समझती हूं। राज डेक का कहना है कि आदमी की भाषा का अध्ययन उसके अचेतन के अध्ययन से यह खबर लाता है कि हम महासागर में निकले हुए छोटे-छोटे द्वीपों की भांति हैं। ऊपर से अलग-अलग, नीचे उतर जाएं तो जमीन से जुड़े हुए। ऊपर हमारी सबकी भाषाएं अलग-अलग, जितने गहरे उतर जाएं उतनी एक। आदमी की ही नहीं, और गहरे उतर जाएं तो पशु की भी एक। और गहरे उतर जाएं तो पशु की ही नहीं, पौधों की भी एक। और कोई नहीं कह सकता कि और गहरे उतर जाएं तो पत्थर की भी एक। जितने हम अपने नीचे गहरे उतरते हैं, उतने हम जुड़े हुए हैं- एक महा कांटिनेंट से, एक महाद्वीप से जीवन के, और वहां हम समझते हैं। तो महावीर का यह जो प्रयोग था-निःशब्द विचार-संचरण का, टेलिपैथी का, यह आने वाले बीस वर्षों में विज्ञान कहेगा कि पुराण कथा नहीं है। इस पर काम तेजी से चलता है और स्पष्ट होती जाती हैं बहुत सी अंधेरी गलियां, बहत से गलियारे जो साफ नहीं थे। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर हमें किसी व्यक्ति को दूसरी भाषा सिखानी हो तो राज डेक कहता है कि चेतन रूप से सिखाने में व्यर्थ कठिनाई हम उठाते हैं। इसलिए राज डेक ने एक संस्था खोली है। और एक दूसरा वैज्ञानिक है बल्गेरिया में डा. लौरेंजोव । उसने एक इंस्टीट्यूट खोली है— लौरेंजोव के इंस्टीट्यूट का नाम है- इंस्टीट्यूट आफ सजैस्टोलाजी । अगर हम उसे ठीक अनुवाद करें तो उसका अर्थ होगा-मंत्र महाविद्यालय। सजैस्टोलाजी का अर्थ होताहै मंत्र। आप जानते हैं न! सलाह देने वालों को हम मंत्री कहते हैं। सुझाव देने वाले को मंत्री कहते हैं। मंत्र का अर्थ है सुझाव, सजैशन। लौरेंजोव की इंस्टीट्यूट सरकार के द्वारा स्थापित है और बल्गेरियन सरकार कम्युनिस्ट है। इसमें तीस मनोवैज्ञानिक लोरेंजोव के साथ काम कर रहे हैं। __और लोरेंजोव का कहना है कि दो साल का कोर्स हम बीस दिन में पूरा करवा देते हैं, कोई भी दो साल का कोर्स। जो भाषा आप दो साल में सीखेंगे चेतन रूप से, वह लौरेंजोव आपको सम्मोहित- रेस्ट हालत में छोड़कर बीस दिन में सिखा देता है। और एक नयी शिक्षा की पद्धति लौरेंजोव ने विकसित की है जो कि जल्दी सारी दुनिया को पकड़ लेगी और वह बिलकुल उलटी है जो अभी आप करवा रहे हैं। और उसके हिसाब से और मैं मानता हैं कि वह ठीक है- मेरे हिसाब से भी, हम जिसको शिक्षा कह रहे हैं वह शिक्षा नहीं है, निपट नासमझी है। लोरेंजोव ने जो स्कूल खोला है उस स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए आराम-कुर्सियां हैं- कुर्सियां नहीं, आराम-कर्सियां हैंजैसा कि हवाईजहाज में होती हैं, जिन पर वे आराम से लेट जाते हैं। डिफ्यूज कर दिया जाता है प्रकाश, जैसा कि हवाईजहाज उड़ता है, तब कर दिया जाता है- तेज रोशनी नहीं। और विशेष संगीत कमरे में बजता रहता है। कोई स्कूल रहा यह! मामला सब खराब हो गया। परे वक्त संगीत बजता रहता है। और विद्यार्थियों से कहा जाता है कि आंख चाहे तो आधी बंद कर लो, चाहे पूरी बंद कर लो, और संगीत पर ध्यान दो - संगीत पर। और शिक्षक पढ़ा रहा है, उस पर ध्यान मत दो। डोंट गिव एनी अटेंशन टु द टीचर। शिक्षक पढ़ा रहा है, उस पर भूलकर ध्यान मत देना, उसी से गड़बड़ हो जाती है। तुम तो संगीत सुनते रहना, तुम शिक्षक को सुनना ही मत। ___ यह तो उलटा हो गया। क्योंकि शिक्षक, यहीं तो बेचारा परेशान है कि हमको सुन नहीं रहे हैं तो वह डंडा बजा रहा है पूरे वक्त कि हमें सुनो। लड़के कहीं बाहर देख रहे हैं, कहीं पक्षियों को सुन रहे हैं, कहीं कुछ और कर रहे हैं, और शिक्षक कह रहा है, हमें सुनो। वह तो सारा, तीन हजार साल का शिक्षक और विद्यार्थी का झगड़ा है जो अब अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है कि हमें सुनो। और लोरेंजोव कहता है कि इसीलिए तो दो साल लग जाते हैं सिखाने में । क्योंकि जब कोई व्यक्ति सचेतन रूप से सुनता है, तो उसका ऊपरी मन सुनता है। तो वह कहता है, ऊपरी मन को तो लगा दो संगीत सुनने में। तब उसका भीतरी मन का द्वार सुनता 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy