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ब्रह्मचर्य : कामवासना से मुक्ति उस मार्ग के लिए पूरा स्पष्ट कर रहा है। और सभी मार्ग अपने आप में पूरे हैं। उनसे पहुंचा जा सकता है। लेकिन उससे यह सिद्ध नहीं होता कि विपरीत से नहीं पहुंचा जा सकता है। महावीर का यह सूत्र हम समझें। 'शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन पांच प्रकार के काम गुणों को भिक्षु सदा के लिए त्याग दे।' तंत्र कहता है, समस्त इंद्रियों का पूरा अनुभव। महावीर कहते हैं, समस्त इंद्रियों का अवरोध, समस्त इंद्रियों का निषेध । कामवासना सिर्फ कामवासना ही नहीं है, और कामेन्द्रिय सिर्फ कामेन्द्रिय ही नहीं है, सभी इंद्रिय कामेन्द्रिय हैं। जब आप किसी को हाथ से छूते हैं किसी के शरीर को, तभी छूते हैं, ऐसा नहीं। जब आप आंख से छूते हैं, तब भी छूते हैं। आंख भी छूती है किसी के शरीर को, हाथ भी छूता है। और जब किसी की आवाज आपको प्रीतिकर और मधुर लगती है, उत्तेजक लगती है, तब कान भी छूता है, और जब पास से गुजर जाते किसी के शरीर की गंध आपको आंदोलित कर जाती है, तो नाक भी
छूती है।
__ हाथ बहुत स्थूल रूप से छूते हैं, आंख बहुत सूक्ष्म रूप से छूती है; लेकिन स्पर्श सभी इंद्रिय करती हैं। जननेन्द्रिय गहनतम स्पर्श करती है, लेकिन सभी स्पर्श हैं। ___ तो महावीर कहते हैं, अगर वासना से पूरी तरह छूटना है, तो स्पर्श की जो कामना है अनेक-अनेक रूपों में, वह सभी त्याग देनी चाहिए। आंख से भी भोग न हो, कान से भी भोग न हो, स्वाद से भी भोग न हो। भोग की वृत्ति इंद्रियों के द्वार से बाहर यात्रा न करे। जब आप किसी को देखना चाहते हैं, कामवासना शुरू हो गयी। किसी की आवाज सुनना चाहते हैं, कामवासना शुरू हो गयी। कामवासना यौन ही नहीं है, यह खयाल में ले लें।
और जिसने यह समझा हो कि यौन ही कामवासना है, वह गलती में पड़ेगा। यौन तो उसकी चरम निष्पति है, लेकिन यात्रा का प्रारंभ तो दूसरी इंद्रियों से शुरू हो जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि आंख जब देखना चाहे, तब भीतर से ध्यान को आंख से हटा लेना। आंख को देखने देना, लेकिन भीतर जो रस ध्यान लेता है देखने का, उसे हटा लेना, यह...यह संभव है। इसकी पूरी साधना
आप एक फूल को देख रहे हैं, फूल सुंदर है। अगर महावीर को ठीक से समझना हो, आप बड़े हैरान होंगे जान कर कि जहां-जहां सौंदर्य दिखायी पडता है. वहां-वहां यौन उपस्थित होता है।
फूल है क्या? वृक्ष का यौन है, वृक्ष का सेक्स है। कोयल गीत गा रही है, कान को मधुर लगता है, लेकिन कोयल का गीत है क्या? कोयल का यौन है। मोर नाच रहा है, उसके पंख आकाश में छाता बनकर फैल गये हैं, इंद्रधनुष बना दिया है, सुंदर लगता है। लेकिन मोर के पंख हैं क्या? यौन है। ___ जहां-जहां आपने सौंदर्य देखा है, वहां-वहां यौन छिपा है। इसलिए जब आप किसी स्त्री के चेहरे की प्रशंसा करते हैं, तो शायद मन में थोड़ा संकोच भी होता हो कि करें, न करें। लेकिन जब आप कहते हैं, कितना सुंदर मोर है, तब आपको जरा भी खयाल नहीं होता कि भेद कुछ भी नहीं है। वह जो मोर पंख फैला कर नाच रहा है वह यौन आकर्षण का निमंत्रण है। वह जो कोयल कहक रही है, वह साथी की तलाश है, वह जो फूल सुगंध फेंक रहा है और खिल गया है आकाश में, वह निमंत्रण है कि उस फूल में छिपे हुए वीर्य-कण हैं, मधुमक्खियां आयें, तितलियां आयें, उन वीर्य-कणों को ले जायें और छितरा दें दूसरे फूलों पर। ___ अगर हम चारों तरफ जगत में गहरी खोज करें, तो जहां-जहां हमें सौंदर्य का अनुभव होता है वहां-वहां छिपी हुई कामवासना होगी। सुगंध अच्छी लगती है, लेकिन आपको अंदाजा नहीं होगा, बायोलाजिस्ट कहते हैं कि सुगंध का जो बोध है वह यौन से जुड़ा
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