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महावीर वाणी भाग : 1
हुआ है।
शुगंध से ही आकर्षित होते हैं, इसलिए पशु एक मादा... नर-मादा एक दूसरे की योनि गंध लेते हुए दिखायी पड़ेंगे। वे गंध से आकर्षित होते हैं। गंध ही निर्णायक है। जब मादाएं पशुओं की कामातुर होती हैं तो उनकी योनि से विशेष गंध फैलनी शुरू हो जाती है। वही गंध निमंत्रण है, वह गंध दूर तक फैल जाती है। और नर को आकर्षित करती है। जैसे ही वह गंध मिलती है, नर आकर्षित हो जाता है।
आदमी भी गंध का बहुत उपयोग करता है। स्त्रियां जानती हैं कि गंध कीमती है और गंध आकर्षण निर्मित कर लेती है। गंध का आदमी दो तरह से उपयोग करता है—एक तो आकर्षित करने को, एक शरीर की गंध को छिपाने के लिए। क्योंकि शरीर की गंध भी यौन निमंत्रण है। उसे छिपाना जरूरी है ।
संभोग के क्षण में स्त्री-पुरुषों के शरीर की गंध बदल जाती है, क्रोध के क्षण में स्त्री-पुरुषों के शरीर की गंध बदल जाती है। प्रेम के क्षण में स्त्री-पुरुषों के शरीर की गंध बदल जाती है। आपके शरीर में एक-सी गंध नहीं रहती चौबीस घंटे। आपका मन बदलता शरीर की गंध बदल जाती है ।
अगर हम ऐसा समझें तो कुछ कठिनाई न होगी जैसे जननेंद्रिय ने आंख को निर्मित किया है कि
गंध है, स्वाद है, रस है, ध्वनि है, वे सभी के सब कामवासना से जुड़े हुए हैं। कि जननेंद्रिय केंद्रीय इंद्रिय है और सारी इंद्रियां उसके उपांग हैं। उसकी शाखाएं हैं। खोजो मेरे लिए रूप । जैसे जननेंद्रिय ने कान को निर्मित किया है कि खोजो मेरे लिए ध्वनि । जननेंद्रिय ने सारी इंद्रियों को निर्मित किया है, वे उसके द्वार हैं। जहां से वह जगत में प्रवेश करती है। जहां से वह जगत में तलाश करती है, जहां से वह जगत में खोजती है ।
कामवासना इंद्रियों के द्वार से जगत में फैलती है, हर इंद्रिय काम-इंद्रिय है। यह महावीर की बात ठीक से खयाल में ले लेनी जरूरी है। इसलिए महावीर कहते हैं, भिक्षु, वह जो साधना में लीन हुआ है- साधक, वह समस्त इंद्रियों से अपने ध्यान को हटा । अगर समस्त इंद्रियों से ध्यान को हटा लिया जाये तो काम-इंद्रियों का नब्बे प्रतिशत द्वार अवरुद्ध हो जाता है, वह बाहर नहीं बह सकती। आप थोड़ा सोचें। आपकी आंखें बंद हों, तो सौंदर्य का कितना अर्थ समाप्त हो जायेगा !
अंधा आदमी भी सौंदर्य का अनुभव करता है, लेकिन हाथ से छूकर ही कर पाता है।
लेकिन हाथ से जो छुएगा, उसके सौंदर्य का हिसाब बदल जायेगा। आंख से देखे हुए सौंदर्य की बात और है। आपकी सारी इंद्रियां बंद हो गयी हों, तो आपके लिए सौंदर्य का क्या अर्थ होगा? कोई भी अर्थ नहीं रह जायेगा। सारा अर्थ इंद्रियों का अनुदान है।
महावीर कहते हैं, अपने को सिकोड़ लेना, केंद्र पर रोक लेना, किसी इंद्रिय से बाहर नहीं जाना। इंद्रियां जबर्दस्ती किसी को बाहर नहीं ले जातीं। हम जाना चाहते हैं, इसलिए जाते हैं। जब हम नहीं जाना चाहते, इंद्रियां व्यर्थ हो जाती हैं।
आपके घर में आग लगी है और एक सुंदर स्त्री सामने से निकलती है, बिलकुल दिखायी नहीं पड़ती। आंख देखेगी, आंख का काम देखना है, लेकिन आप आंख के पीछे मौजूद नहीं हैं, अभी, ध्यान मकान में लगी आग की तरफ चला गया है। कोई दिखायी नहीं पड़ेगा। कोई सुंदर गीत गा रहा हो, सुनाई नहीं पड़ेगा। कोई आकर चारों तरफ गुलाब की सुगंध छिड़क दे, नाक को पता नहीं चलेगा। क्या हुआ है? सारा ध्यान आग की तरफ आकर्षित हो गया। अभी आग इतनी महत्वपूर्ण हो गयी है कि ध्यान बंट नहीं सकता, और इंद्रियों की तरफ ध्यान नहीं जा सकता।
महावीर कहते हैं, जिसे ब्रह्मचर्य इतना महत्वपूर्ण हो गया हो कि वही उसे मुक्ति का मार्ग है, ऐसी प्रतीति हो रही हो, उसे कठिन नहीं
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