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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 है। लेकिन अगर कोई सजग हो, तो इसे तोड़ना कठिन नहीं है। हम...हम हमेशा ही जान सकते हैं, देख सकते हैं कि हमारे भीतर दो तल तो नहीं हैं। दो तल का मतलब यह होता है कि ऊपर आप कुछ समझा रहे हैं अपने को, भीतर से बात कुछ और है। ___ एक आदमी उपवास कर रहा है, ऊपर से समझा रहा है कि यह साधना है। लेकिन उसे जांचना चाहिए, कहीं उसे खुद को भूखा मारने में किसी तरह का गर्हित रस तो नहीं आ रहा है! ऐसे लोग हैं जो खुद को सताने में रस लेते हैं। और जब तक वे अपने को न सतायें उन्हें किसी तरह का आनंद नहीं आता। खुद को सताने में उन्हें ऐसे ही मजा आने लगता है, जैसे कुछ लोगों को दूसरों को सताने में मजा आता है। अब खुद के साथ एक फासला कर लेते हैं। मेसोच एक बड़ा लेखक हुआ। वह जब तक अपने को कोड़े न मार ले रोज, कांटे न चुभा ले, तब तक उसको रस ही न आये। इसलिए उसी के नाम पर मैसोचिज्म, आत्मपीड़न सिद्धांत का निर्माण हो गया। कोई आदमी कांटे बिछाकर उस पर लेटा हुआ है, वह अपने को कितना ही कहे कि हम कोई साधना कर रहे हैं, लेकिन कांटों पर लेटने में यह उसे जांच करनी चाहिए कि कहीं कुल रस इतना ही तो नहीं है कि मैं अपने को सता सकता हूं। जब आप अपने को सताते हैं तो आपको लगता है कि आप अपने मालिक हो गये। जब आप अपने को सताते हैं तो आपको लगता है, कि अब यह शरीर आपके ऊपर मालिक नहीं रहा। और अगर इसे सताने में भीतरी सुख मिलने लगे, जैसे कि कोई खाज को खुजलाता है और सुख मिलता है, ऐसा ही सताने में सुख ता है और सुख मिलता है, ऐसा ही सताने में सुख मिलने लगे, तो समझना कि आप पैथोलाजिकल, रुग्ण दिशाओं में यात्रा कर रहे हैं। ___ यही तंत्र के बाबत भी सच है। आदमी कह सकता है कि मैं तो सिर्फ इसलिए कामवासना में उतर रहा हूं, ताकि कामवासना से मुक्त हो सकू। लेकिन यह दूसरों को धोखा देने में कोई अड़चन नहीं है, खुद तो जानता ही रहेगा कि मैं सच में कामवासना से मुक्त होने के लिए उतर रहा हूं या यह सिर्फ एक बहाना है, एक एक्सक्यूज है, और मैं उतरना चाहता हूं कामवासना में। यह खुद के सामने निरीक्षण सदा बना रहे, तो आज नहीं कल, थोड़ी बहुत भूल-चूक करके आदमी उस रास्ते को पा जाता है, जो मंजिल तक पहुंचाने वाला है। __कौन-सा रास्ता आपके लिए मंजिल तक पहुंचाने वाला है, आपके अतिरिक्त निर्णय करना दूसरे को कठिन होगा। अड़चन होगी। लेकिन आप अगर अपने को धोखा ही देते चले जायें तो आपको भी बहुत अड़चन होगी। लेकिन जो अपने को धोखा देने में लगा है, उसका धर्म से कोई संबंध ही नहीं है। अभी साधना से उसका कोई जोड़ नहीं बैठा है। आदत भी तोड़ी जा सकती है, अनुभूति भी बदली जा सकती है-ये दो छोर हैं-आदत, अभिव्यक्ति मार्ग; अनुभूति, भीतर बहने वाली ऊर्जा। ऐसा समझें कि यह बिजली का बल्ब जल रहा है। यहां अंधेरा करना हो तो दो उपाय हैं-या तो बिजली बल्ब तक न आने दी जाये, बटन बंद कर दी जाये, तो अंधेरा हो जाये, या बटन चलती भी रहे तो बल्ब तोड़ दिया जाये, तो भी अंधेरा हो जाये। तंत्र का प्रयोग, वह जो भीतर ऊर्जा बह रही है, उसको बदलने का है। महावीर का प्रयोग वह जो बाहर अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया. उसे तोड देने का है। दोनों से पहचा जा सकता है। लाकन जब भा एक माग का काइबात करगा, ता दूसरमागका सकता है। लेकिन जब भी एक मार्ग की कोई बात करेगा, तो दूसरे मार्ग के विपरीत उसे बोलना पड़ता है, अन्यथा समझना बिलकुल कठिन और असंभव हो जाये। अगर तंत्र पढ़ेंगे तो लगेगा कि महावीर जैसा व्यक्ति कभी नहीं पहंच सकता। अगर महावीर को पढ़ेंगे तो लगेगा कि तांत्रिक कभी नहीं पहुंचे होंगे। जो जिस मार्ग की बात कर रहा है वह 426 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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