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________________ काम वासना है दूसरे की खोज महावीर मनुष्य को एक यंत्र की भांति देखते हैं और निन्यानबे प्रतिशत आदमी यंत्र हैं। तो महावीर कहते हैं, यंत्रवत आदमी का जो जीवन है वह वहीं रोक दिया जाना चाहिए जहां से चीजों की शुरुआत होती है। __ क्या इस बात की संभावना है कि अगर एक व्यक्ति को काम के समस्त अनुभवों, परिस्थितियों से बाहर रखा जा सके, तो उसके जीवन में काम का प्रवाह पैदा नहीं होगा? __ इस बात की संभावना नहीं है कि काम का प्रवाह पैदा नहीं होगा। एक दिन बच्चा युवा होगा, शक्ति से भरेगा, ऊर्जा आयेगी, शरीर का यंत्र शक्ति देगा, काम ऊर्जा भर उठेगी। काम से, काम की ऊर्जा से, सारी परिस्थितियां भी रोक ली जायें, तो भी बच्चा भरेगा। लेकिन, एक फर्क पड़ेगा। उस बच्चे के पास आदतों के सुनिश्चित मार्ग न होंगे। ऊर्जा भर जायेगी, लेकिन आदतों के बहने के लिए कोई निर्मित मार्ग न होंगे। उस बच्चे की ऊर्जा को किसी भी दिशा में रूपांतरित करना आसान होगा। जिनके मार्ग निर्मित हो गये हैं, उन्हें नये मार्ग बनाना कठिन होता है। क्योंकि ऊर्जा पुराने मार्ग पर बिना श्रम के बहती है। अगर कोई भी मार्ग निर्मित न हो, तो नया मार्ग निर्मित करना बहुत आसान होता है; क्योंकि ऊर्जा बहना चाहती है। और कोई भी मार्ग मिल जाये तो गति से उस मार्ग पर अग्रसर हो जाती है। ___ महावीर की यही दृष्टि है। वे कहते हैं, काम का अनुभव खतरे में ले जायेगा, फिर ब्रह्मचर्य की तरफ आना मुश्किल होता चला जायेगा। इसलिए अनुभव से बचना । ___ इसे ध्यान से समझ लें-अनुभव से बचना दमन नहीं है, रिप्रेशन नहीं है। जिसको फ्रायड ने दमन कहा है, वह अनुभव से बचना दमन नहीं है। महावीर के लिए अनुभव से बचना ऊर्जा को दबाना नहीं है, अनुभव से बचना ऊर्जा को नया मार्ग देना है। जो ऊर्जा नीचे की तरफ बह रही है, उसे अगर ऊपर की तरफ ले जाना है, तो नीचे की तरफ बहने का अनुभव न हो तो ऊपर की तरफ मार्ग बनाना आसान होगा। लेकिन तब, तंत्र की ओर महावीर के योग की सारी प्रक्रियाएं विपरीत हो जायेंगी, सारी प्रक्रियाएं। तंत्र जो भी करेगा, महावीर के लिए वह गलत हो जायेगा और महावीर जो भी करेंगे, वह तंत्र के लिए गलत होगा। ___ मेरी दृष्टि में दोनों मार्गों से पहुंचना संभव है। दोनों मार्गों पर अलग-अलग बात पर जोर है ऊपर से, लेकिन भीतर एक ही बात पर जोर है, वह भी आपसे कह दूं। __ वह जोर, तंत्र कहता है रस से मुक्ति होगी, अनुभव से। महावीर कहते हैं, रस लेना ही मत, तो मुक्ति होगी। लेकिन रस से मुक्ति दोनों में केंद्रीय है। रस से मुक्ति कैसे होगी इन बातों में, दोनों में भेद है। इसलिए तंत्र, उन लोगों के लिए आसान पड़ेगा जो होश जगाने में लगे हैं। जो लोग होश को जगाने में नहीं लगे हैं, उनके लिए तंत्र खतरनाक होगा। इसलिए तंत्र बहुत थोड़े से लोगों के काम की बात मालूम पड़ती है। इसलिए तंत्र का व्यापक प्रभाव नहीं हो सका। लेकिन भविष्य में तंत्र का व्यापक प्रभाव होगा, क्योंकि वह सारा समाज का, जीवन का ढांचा रोज-रोज तंत्र के ज्यादा अनुकूल आता जा रहा है। और लोग अनुभव से, रसविहीन होते चले जा रहे हैं। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि जिन देशों में यौन की जितनी स्वतंत्रता है, यौन के प्रति उतनी ही विरक्ति, पैदा होती जा रही है। जिन मुल्कों में यौन की जितनी...जितनी गुलामी है, जितनी परतंत्रता है, उतनी यौन के प्रति उत्सुकता है। अगर सारा जगत ठीक से समृद्ध हुआ, समृद्ध होने का मतलब दो ही होता है, क्योंकि आदमी की दो ही भूख हैं-एक शरीर की भूख है, जो रोटी से पूरी होती है, मकान से पूरी होती है, सामान से पूरी होती है। और एक यौन की भूख है, जो प्रेम से पूरी होती है। अगर इन दोनों का अतिरेक हो गया तो तंत्र की सार्थकता बढ़ती चली जायेगी। लेकिन अभी भी वह अतिरेक हुआ नहीं है। 409 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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